Shradh Paksha 2025: 7 सितंबर 2025 रविवार चंद्र ग्रहण वाले दिन 16 श्राद्ध प्रारंभ हो रहे हैं जो 21 सितंबर सर्वपितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण के दौरान समाप्त होंगे। ऐसा संयोग करीब 122 वर्षों के बाद बना है। जानिए श्राद्ध पक्ष की संपूर्ण तिथियां और किस तिथि को कौनसा श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष भी कहते हैं और इस दिन पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और पंचबलि कर्म किया जाता है। जानिए संपूर्ण जानकारी।
21 सितंबर 2025, रविवार: सर्व पितृ अमावस्या (पितृ पक्ष का अंतिम दिन)
श्राद्ध पक्ष 2025 की संपूर्ण तिथियां:-
7 सितंबर: पूर्णिमा श्राद्ध।
8 सितंबर: प्रतिपदा श्राद्ध।
9 सितंबर: द्वितीया श्राद्ध।
10 सितंबर: तृतीया श्राद्ध।
10 सितंबर: चतुर्थी श्राद्ध।
11 सितंबर: पंचमी श्राद्ध।
12 सितंबर: षष्ठी श्राद्ध।
13 सितंबर: सप्तमी श्राद्ध।
14 सितंबर: अष्टमी श्राद्ध।
15 सितंबर: नवमी श्राद्ध।
16 सितंबर: दशमी श्राद्ध।
17 सितंबर: एकादशी श्राद्ध।
18 सितंबर: द्वादशी श्राद्ध।
19 सितंबर: त्रयोदशी श्राद्ध।
20 सितंबर: चतुर्दशी श्राद्ध।
21. सितंबर: सर्वपितृ अमावस्या।
कैसे करें श्राद्ध कर्म विधि-
श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करना चाहिए।
पूर्णिमा के दिन दूध-चावल की इलायची-केसर युक्त, शकर और शहद मिलाकर खीर तैयार कर लें।
अब गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्ज्वलित कर लें।
उक्त कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दें।
भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें।
इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराकर तपश्चात उन्हें यथायोग्य दक्षिणा दें।
उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
पितृ पक्ष में जीरा, काला नमक, चना, दाल, लौकी, खीरा, सरसों का साग आदि कुछ चीजों को खाने की मनाई है।
1. तर्पण: इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है। तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
2. पिंडदान: चावल को गलाकर और गलने के बाद उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल पिंड बनाए जाते हैं। पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदादा। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं। जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर और दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडो को पितरों को अर्पित करने को ही पिंडदान कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि चावल से बने पिंड से पितर लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं। पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, 'इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा' के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी अंगुली के मध्य से छोड़ें। पिंडदान करने के बाद पितरों का ध्यान करें और पितरों के देव अर्यमा का भी ध्यान करें। अब पिंडों को उठाकर ले जाएं और उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
3. पंचबलि: पिंडदान के बाद पंचबलि कर्म करें। अर्थात पांच जीवों को भोजन कराएं। गोबलि, श्वान बलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि। गोबलि अर्थात गाय को भोजन, श्वान बलि अर्थात कुत्ते को भोजन, काकबलि अर्थात कौवे को भेजन, देवादिबलि अर्थात देवी और देवताओं को भोग लगाना, पिपलिकादि बलि अर्थात पीपल के पेड़ में भोजन को अर्पण करना। इस भोजन को चींटी और अन्य जंतु खाते हैं।