पितृपक्ष में की जाती नारायणबलि व नागबलि पूजा, जानिए इनका राज
अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेतीं। वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।
यह दोष पीढ़ी-दर-पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ियों को भी यह कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है, जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।
क्या है नारायणबलि और नागबलि?
नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि 2 अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि को करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एकसाथ ही संपन्न करना पड़ता है।
इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा
जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो, उनकी आगामी पीढ़ियों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए। प्रेत योनि से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है। परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो, आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।
क्यों की जाती है यह पूजा?
शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि व नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है, जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं, वे भी यह विधान कर सकते हैं। संतान प्राप्ति, वंशवृद्धि, कर्जमुक्ति व कार्यों में आ रहीं बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भधारण से 5वें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म 1 साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी 1 साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।
कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि व नागबलि?
नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिन्धु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है। धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृत्तिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये 6 नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।
पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय
नारायणबलि व नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी-सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा 3 दिनों की होती है।