हमारे शास्त्रों ने धन का अभाव होने पर श्राद्ध सम्पन्नता के नियम सुनिश्चित किए हैं। जिसमें अन्न-वस्त्र के अभाव में केवल शाक के द्वारा श्राद्ध करने का विधान बताया गया है।
"तस्माच्छ्राद्धं नरो भक्त्या शाकैरपि यथाविधि।"
शाक के अभाव में दक्षिणाभिमुख होकर आकाश केवल दोनों भुजाओं को उठाकर निम्न प्रार्थना करने से भी श्राद्ध की सम्पन्नता होती है।
"न मेस्ति वित्तं धनं च नान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्न्तोस्मि।
- हे मेरे पितृगण..! मेरे पास श्राद्ध के उपयुक्त न तो धन है, न धान्य आदि। हां मेरे पास आपके लिए श्रद्धा और भक्ति है। मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं। आप तृप्त हों। मैंने शास्त्र के निर्देशानुसार दोनों भुजाओं को आकाश में उठा रखा है।