श्राद्ध पक्ष में अमावस्या का बड़ा महत्व है। आश्विन मास की अमावस्या पितरों की शांति का सबसे अच्छा मुहूर्त है। जिन लोगों ने अपने पूर्वजों का तीन वर्ष तक श्राद्ध न किया हो, उनके पितर पितृ योनि से वापस प्रेत योनि में आ जाते हैं अत: उनकी शांति के लिए तीर्थस्थान में त्रिपिण्डी श्राद्ध किया जाता है। इस कार्य में कोताही नहीं करना चाहिए अन्यथा पितृ शाप के लिए तैयार रहना चाहिए।
पितरों की शांति के निमित्त तर्पण, ब्राह्मण भोजन, साधा (कच्चा अन्न), वस्त्र, भूमि, गोदान, स्वर्ण दान इत्यादि कर्म किए जाते हैं।
गोदान पांच प्रकार का होता है।
प्रथम- ऋण धेनु
द्वितीय- पापापनोदधेनु
तृतीय- उत्क्रांति धेनु
चतुर्थ- वैतरणी धेनु
पंचम- मोक्ष धेनु
जो भी दान करना हो, हाथ में त्रिकुश, जल, अक्षत, पुष्प तथा कुछ द्रव्य (धन) लेकर संकल्प कर जल छोड़ें। दक्षिणा का संकल्प भी करें।
संकल्प : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु नम: परमात्मने पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् अद्य ब्रह्मणो द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे भरत खण्डे... क्षेत्रे... पराभव नाम संवत्सरे उत्तरायणे/ दक्षिणायने,---- ऋतौ, --- मासे, ---पक्षे, ---तिथौ (तिथि),---वासरे (दिन) ---गौत्र: शर्मा/ वर्मा/ गुप्तोअहं। शास्त्रोक्त फल प्राप्ति द्वारा मम समस्त पितृ शान्त्यर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं... दान (या गौ/ भूमि इत्यादि) निष्क्रय द्रव्यं चाहं करिष्ये।' ॐ तत्सत्।
इस प्रकार संकल्प में गौ भूमि इत्यादि देने के पहले जल छोड़ें।
यदि विदेश इत्यादि स्थान हो तो रेखांकित स्थान भारतवर्ष के स्थान पर अपने रहने के स्थान का नाम (देश, प्रदेश, मोहल्ला) इत्यादि उच्चारण करें तथा सूर्य का स्थान, ऋतु, मास का नाम, पक्ष, तिथि, दिन, अपना गौत्र इत्यादि उच्चारण करें।
यह करना कठिन लगे तो अपनी भाषा में कार्य, अपना नाम, गोत्र इत्यादि बोलकर जल छोड़ें।
पितृपक्ष में श्रीमद् भागवत का मूल पाठ करवाएं। गयाजी में पिंडदान करवाएं। यह सभी कार्य पितरों की शांति के लिए उत्तम उपाय है।