Mangala Gauri Vrat : श्रावण मास में सावन के सोमवार की तरह की मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार मंगला गौरी व्रत बहुत ही फलदायी माना गया है। अखंड सुहाग और संतान की रक्षा तथा संतान प्राप्ति की कामना रखने वाली महिलाओं के लिए भी यह व्रत बहुत महत्व रखता है। यह व्रत करने से दांपत्य जीवन की समस्या दूर होकर घर में चल रहे कलह तथा समस्त कष्टों से मुक्ति देता हैं।ALSO READ: श्रावण मास में नहीं करना चाहिए भूलकर भी ये 5 काम, पछताना पड़ेगा
हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार 22 जुलाई को श्रावण मास का प्रथम सोमवार रहेगा। इसके बाद 23 जुलाई को मंगलवार के दिन मंगला गौरी का व्रत रखा जाएगा। सावन के हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है, जो कि पार्वती जी का ही नाम है। इस बार श्रावण मास में कुल 4 मंगला गौरी व्रत पड़ रहे हैं। जहां सोमवार भगवान शिव का दिन है वहीं मंगलवार मां पार्वती का दिन माना जाता है। अत: श्रावण के मंगलवार को शिवजी माता गौरी, हनुमानजी, मंगल देव और कार्तिकेय का पूजन करने का विशेष महत्व है।
पूजा के शुभ मुहूर्त :
ब्रह्म मुहूर्त: प्रत: 04:15 से 04:56 तक।
प्रातः सन्ध्या: प्रात: 04:36 से 05:38 तक।
अमृत काल : सुबह 10:47 से 12:15 तक।
अभिजित मुहूर्त : दोपहर 12:00 से 12:55 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:44 से 03:39 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 07:17 से 07:38 तक।
सायाह्न सन्ध्या : शाम 07:17 से 08:19 तक।
निशिता मुहूर्त : रात्रि 12:07 से 12:48 तक।
द्विपुष्कर योग: प्रात: 05:38 से 10:23 तक।
मंगला गौरी और मंगलवार का संबंध : देवी मंगला आदिशक्ति गौरी का ही मंगल स्वरूप है यानी इस स्वरूप में गौरी माता अपने भक्तों का मंगल ही मंगल करती हैं। माता गौरी का यह मंगलकारी स्वरूप सिंदूरी आभा लिए हुए तथा इसका संबंध मंगल ग्रह और महिलाओं के अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति तथा संतान की रक्षा से है। देवी मंगला गौरी सुहाग और गृहस्थ सुख की देवी मानी जाती हैं। यह माता का 8वां स्वरूप है। इन्हें अष्टमी की देवी भी कहा जाता है। दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है।ALSO READ: श्रावण मास में नागपंचमी का त्योहार कब मनाया जाएगा, क्या हैं शुभ मुहूर्त?
कैसे करें मंगला गौरी व्रत?
श्रावण मास के दौरान आनेवाले हर मंगलवार को ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।
नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा कोरे (नवीन) वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए।
मां मंगला गौरी (पार्वतीजी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें।
अर्थ- ऐसा माना जाता है कि मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं।
तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं। दीपक ऐसा हो जिसमें 16 बत्तियां लगाई जा सकें।
तत्पश्चात-
'कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्...।।'
यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करें। माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां तथा मिठाई अर्पण करें। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि चढ़ाएं।
इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है। शिवप्रिया पार्वती को प्रसन्न करने वाला यह सरल व्रत करने वालों को अखंड सुहाग तथा पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है। मंगला गौरी व्रत विशेष तौर पर मध्यप्रदेश, पंजाब, बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हिमाचलप्रदेश में प्रचलित है।