ऐसा क्या कारण है कि देवाधिदेव स्वयं इतने पावन पवित्र हो कर भी इतनी अपवित्र जगह पर रहते हैं? यदि हम विचार करें तो तो इसमें बड़ा गूढ़ रहस्य मिलता है। ब्रह्मा, विष्णु की भांति ही शिवजी का का भी सारा पौराणिक वर्णन अध्यात्मपरक है और उन्हीं में से एक है यह श्मशान वास।
श्मशान का अर्थ है ‘संसार’। वहां पर शंकर का वास होने से सांसारिक समस्त नीच मनोवृत्तियां भस्म हो जाती हैं।जैसे श्मशान में मृत शरीरों के भस्म हो जाने पर उनके सड़-गल के दुर्गन्ध और रोग उत्पन्न करने का डर नहीं रहता वैसे ही सांसारिक नीच मनोवृत्ति रूप पदार्थों के शंकर की योगाग्नि द्वारा भस्म हो जाने पर चित्त निर्मल हो जाता है और योगाग्नि की ज्वाला से योगी दिव्य शरीर धारण कर मोक्ष को प्राप्त होता है। पीछे उसमें ममत्व अथवा नीच वृत्ति का लवलेश भी नहीं रहता। इस दृष्टि से देखने पर यह बात बेहतर तरीके से हम समझ सकते हैं कि हमारे पूज्य अराध्य शंकर का निवास श्मशान क्यों है और उन्हें संहारकर्ता क्यों कहा जाता है।