सनातन धर्म के अनुसार शिव आदिदेव हैं। शिव परम् ब्रह्म हैं। रुद्राक्ष शिव भक्ति का सूचक है। रुद्राक्ष और भगवान शिव एक दूसरे के प्रतिरूप माने जाते हैं। रुद्राक्ष धारण से धारणकर्ता रुद्र बन जाता है। श्रीमद् देवी भागवत पुराण में भगवान शिव अपने पुत्र कार्तिकेय जी को रुद्राक्ष की उत्पत्ति के विषय में बताते हैं कि प्राचीन काल में त्रिपुर नाम असुर से देवताओं को मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने एक हजार दिव्य वर्षों तक तप किया। एक हज़ार दिव्य वर्षों तक उनकी आंखें खुलीं रहीं। शिव की आकुल आंखों से जल की कुछ बूंदें टपककर धरती पर गिर पड़ीं जहां-जहां जलरूपी अश्रु की बूंदें गिरी वहां-वहां रूद्राक्ष का जन्म हुआ।
इसी प्रकार शिव पुराण में भगवान शिव रुद्राक्ष की महिमा और उसकी उत्पत्ति के विषय में माता पार्वती जी से कहते हैं कि एक हजार वर्षों तक घोर तपस्या करने के पश्चात एक दिन उनका मन क्षुब्ध हो उठा। उस समय लीलावश ही उन्होंने अपने दोनों नेत्र खोले, नेत्र खुलते ही जल की कुछ बूंदें पृथ्वी पर जा गिरी जिससे रुद्राक्ष की उतपत्ति हुई।
भगवान शिव रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए पार्वती जी से कहते हैं कि जहां कहीं भी रुद्राक्ष का पूजन किया जाता है, वहां से लक्ष्मी जी कभी दूर नहीं जाती। रुद्राक्ष को धारण करने वाले मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शिवपुराण के अनुसार सभी आश्रमों, समस्त वर्णों, स्त्रियों को भगवान शिव की आज्ञानुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
शिवपुराण में भगवान शिव ने 14 प्रकार के रुद्राक्ष का वर्णन किया है जिसमें एकमुखी से चौदहमुखी तक भिन्न प्रकार के पाए जाते हैं, जिनका गुण धर्म एवं महिमा भिन्न-भिन्न है।
इनके अतिरिक्त विशेष प्रकार के रुद्राक्ष जैसे गौरीशंकर रुद्राक्ष, गर्भ-गौरी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष भी मिलते हैं। जो मनुष्य की विशिष्ट मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। इस वर्ष अधिकमास सावन मास में आने के कारण 2 शिवरात्रि रहेंगी। पहली शिवरात्रि 15 जुलाई को तथा दूसरी सावन शिवरात्रि 14 अगस्त को मनाई जाएगी। इस दिन सोमवार व्रत का शुभ संयोग भी रहेगा। सावन शिवरात्रि का विशेष महत्व होने के कारण इस दिन रुद्राक्ष धारण करने से अभीष्ट फल की अतिशीघ्र प्राप्ति होती है। 14 प्रकार के रुद्राक्ष के अतिरिक्त विशेष रुद्राक्ष का भी विशेष महत्व है जिन्हें सावन मास में धारण कर जातक भगवान शिव की अनुकम्पा प्राप्त कर सकता है। कुछ अभीष्ट सिद्धि के रुद्राक्ष निम्न है---
1-गौरीशंकर रुद्राक्ष-
गौरीशंकर रुद्राक्ष भगवान शिव और पार्वती जी का संयुक्त प्रतिरूप है। यह रुद्राक्ष वंश वृद्धि और सृष्टि का विकास करता है यदि जातक अविवाहित है, उसके विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा है, विवाह तय होने के पश्चात भी विवाह नहीं हो पा रहा है, तो ऐसे जातक अथवा जातिका को गौरीशंकर रूद्राक्ष सावन की शिवरात्रि अथवा सावन के किसी भी सोमवार को धारण करना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे पति पत्नी जिनका संबंध आपस में ठीक नहीं है एक दूसरे के साथ सामंजस्य नहीं है, सम्बन्धों में कटुता रहती है तो ऐसी स्थिति में पारिवारिक अशांति एवम आपसी रिश्तों को सुधारने के लिए गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। पति-पत्नी के रिश्ते आपस में कलह विवाद को समाप्त करने लिए गौरीशंकर रूद्राक्ष पति एवं पत्नी दोनों को धारण करना चाहिए। सावन शिवरात्रि अथवा सावन सोमवार को ॐ नमः शिवाय के जाप के साथ लाल धागे में धारण किया जा सकता है।
2- गर्भगौरी रुद्राक्ष-
गर्भगौरी रुद्राक्ष भी एक विशेष प्रकार का रुद्राक्ष है। ऐसे जातक जो निःसन्तान है, सन्तान प्राप्ति में बाधा हो रही है। गर्भधान में कठिनाई हो रही है, अनायास गर्भपात हो रहा है अथवा पूर्ण गर्भकाल तक गर्भ नहीं टिक रहा हो, रक्त की कमी अथवा अन्य किसी कारण से सन्तानोंत्पत्ति में कठिनाई हो तो गर्भगौरी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसके धारण से मनुष्य की संतानोंत्पत्ति संबंधी कठिनाइयां दूर होती हैं। गर्भगौरी रुद्राक्ष दो दानों से मिलकर बना होता है। जिसमें एक रुद्राक्ष दूसरे रुद्राक्ष से छोटा होता है। इन्हे माता पार्वती व गणेश जी का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि विधि विधान से व्रत का पालन करते हुए विशेष संकल्प लेकर सावन मास में गर्भगौरी रूद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की संतान संबंधी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। प्रसव संबंधी कठिनाइयों तथा नवजात शिशु के उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी इसे धारण किया जाता है।
3-गणेश रुद्राक्ष-
गणेश रुद्राक्ष भी एक विशेष प्रकार का रुद्राक्ष है जिसमें गणेश जी की सूंड की तरह उभार बना होता है। ऐसी मान्यता है कि इसको शिव जी के साथ-साथ गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त है। यह रुद्राक्ष विशेष रूप से विद्यार्थी, प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले बालक/बालिकाओं के लिए उपयोगी है। यदि आपकी संतान का मन पढ़ाई में नहीं लगता, एकाग्रता की कमी है,स्मरण शक्ति कमजोर है, कुछ भी स्मरण नहीं रहता हो तो गणेश रुद्राक्ष को लाल धागे में बुध की होरा में पहनाना चाहिए। गणेश भगवान बुद्धि और विवेक के देवता है। साथ ही इस रुद्राक्ष पर बुद्ध ग्रह का आधिपत्य माना जाता है। यह रुद्राक्ष मानसिक तनाव और मानसिक समस्याओं को दूर करता है।
शिव पुराण में रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान शिव कहते हैं कि रुद्राक्ष मालाधारी मनुष्य को देखकर शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। यूं तो रुद्राक्ष को वर्ष भर नक्षत्र, तिथि एवं शुभ मुहुर्त देखकर धारण किया जा सकता है। परन्तु सावन की शिवरात्रि अथवा सावन के सोमवार को धारण किए जाने से विशिष्ट फल जल्द प्राप्त होता है और मनोकामना की पूर्ति होती है। इन विशिष्ट रूद्राक्ष के अतिरिक्त मुख्य रूप से एक मुखी से 14 मुखी रूद्राक्ष धारण किए जाते हैं। उनमें राशि के अनुसार भी रूद्राक्ष धारण किए जा सकते हैं।
निम्न तालिका के अनुसार राशि अथवा लग्नानुसार रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
मेष राशि : शुभ ग्रह मंगल, गुरु हैं। त्रिमुखी और पंचमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
वृष राशि : शुभ ग्रह बुध, शनि हैं। चतुर्मुखी, सप्तमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
मिथुन राशि : बुध, शुक्र शुभ ग्रह हैं। चतुर्मुखी, षष्टमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
कर्क राशि : शुभ ग्रह चन्द्र और मंगल हैं। त्रिमुखी, द्विमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
सिंह राशि : सूर्य, मंगल शुभ ग्रह हैं। त्रिमुखी, और द्वादशमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
कन्या राशि : बुध शुभ ग्रह है। चतुर्मुखी, षष्टमुखी रुद्राक्ष मनोकामनाके लिए धारण कर सकते हैं।
तुला राशि : शुभ ग्रह शुक्र, शनि हैं। षटमुखी, सप्तमुखी, एकादशमुखी, अथवा चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
वृश्चिक राशि : शुभ ग्रह गुरु, चन्द्रहैं। ऐसे जातकों को द्विमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
धनु राशि : शुभ ग्रह गुरु और रवि हैं। पंचमुखी, द्वादशमुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए ।
मकर राशि : शुभ ग्रह शनि, शुक हैं। षष्टमुखी, सप्तमुखी, एकादशमुखी और चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
कुंभ राशि : शनि, शुक्र शुभ ग्रह है। षष्टमुखी, सप्तमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
मीन राशि : गुरु, मंगल शुभ ग्रह हैं। त्रिमुखी और पंचमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतीक स्वरूप है इसका फल हमेशा सकारात्मक होता है इसलिए राशि के अनुसार रुद्राक्ष धारण किए जा सकते हैं। परन्तु रुद्राक्ष धारण करने वाले मनुष्य को सात्विक नियमों का पालन अनिवार्य है।
रूद्राक्ष धारण करने वाले मनुष्य को तामसिक वस्तुओं का प्रयोग वर्जित है। सुतक-पातक काल में रूद्राक्ष काल प्रयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा रूद्राक्ष का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।