Bhasmarti Aarti sawan somvar: उज्जैन के कालों के काल महाकाल बाबा के मंदिर में प्रतिदिन अलसुबह भस्म आरती होती है। शिवजी भस्म धारण करके सभी को यही बताना चाहते हैं कि इस देह का अंतिम सत्य यही है। महाकाल की 6 बार आरती होती हैं, जिसमें सबसे खास मानी जाती है भस्म आरती। आओ जानते हैं भस्मार्ती के बारे में 10 रहस्य।
1. महाकाल की 6 बार आरती होती हैं, पहली आरती भस्मारती में भगवान शिव को घटा टोप स्वरूप दिया जाता है।
2. भस्म आरती यहां भोर में 4 बजे के करीब होती है। एक सूती कपड़े में भस्म को बांधकर उसे शिवलिंग पर बिखेरते हुए आरती की जाती है।
3. इस आरती में महिलाओं के लिए साड़ी पहनना जरूरी है।
4. जिस वक्त शिवलिंग पर भस्म चढ़ती है उस वक्त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है।
5. मान्यता है कि उस वक्त भगवान शिव दिगंबर स्वरूप में होते हैं और इस रूप के दर्शन महिलाएं नहीं कर सकती।
6. पुरुषों को भी इस आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती है। वह भी साफ-स्वच्छ और सूती होनी चाहिए।
7. पुरुष इस आरती को केवल देख सकते हैं और करने का अधिकार केवल यहां के पुजारियों को होता है।
8. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार दूषण नाम के एक राक्षस की वजह से अवंतिका में आतंक था। नगरवासियों के प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसको भस्म कर दिया और उसकी राख से ही अपना श्रृंगार किया। तत्पश्चात गांव वालों के आग्रह पर शिवजी वहीं महाकाल के रूप में बस गए। इसी वजह से इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर रख दिया गया और शिवलिंग की भस्म से आरती की जाने लगी।
9. ऐसा भी कहते हैं कि यहां श्मशान में जलने वाली सुबह की पहली चिता से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है, परंतु इसकी हम पुष्टि नहीं कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस भस्म के लिए पहले से लोग मंदिर में रजिस्ट्रेशन कराते हैं और मृत्यु के बाद उनकी भस्म से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। इसकी भी हम पुष्टि नहीं रकते हैं।
10. हालांकि यह भी कहा जाता है कि श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो तो वह लौकिक भस्म कही जाती है। विरजा हवन की भस्म सर्वोत्कृष्ट मानी है।
हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है। इसी तरह की भस्म से आरती भी होती है।