भगवान श्रीकृष्ण को मोर मुकुट धारी कहा जाता है क्योंकि वे अपने मुकुट पर मोर पंख धारण करते थे। मोरपंख धारण करने के पांच कारण बताए जाते हैं, लेकिन हमें तो मात्र एक कारण ही समझ में आता है। आओ जानते हैं मोर पंख धारण करने की कथा।
1. राधा की निशानी : महारास लीला के समय राधा ने उन्हें वैजयंती माला पहनायी थी। कहते हैं कि एक बार श्रीकृष्ण राधा के साथ नृत्य कर रहे थे तभी उनके साथ ही झूमकर नृत्य कर रहे एक मोर का पंख भूमि पर गिर गया तो प्रभु श्रीकृष्ण ने उठाकर उसे अपने सिर पर धारण कर लिया। जब राधाजी ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधाजी का प्रेम दिखता है। कहते हैं कि श्री राधा रानी के यहां बहुत सारे मोर थे। यह भी कहा जाता है कि बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर इस मोर पंख को सजाती थीं।वैजयंती माला के साथ ही मोर पंख धारण करने की एक बड़ी वजह राधा से उनका अटूट प्रेम है। मात्र इस एक बात के अलवा अन्य बातें सिर्फ मनमानी है।
2. जीवन के सभी रंग : मोरपंख में सभी रंग समहाहित है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कभी एक जैसा नहीं रहा। उनके जीवन में सुख और दुख के अलावा कई अन्य तरह के भाव भी थे। मोरपंख में भी कई रंग होते हैं। यह जीवन रंगीन है लेकिन यदि आप दुखी मन से जीवन को देखेंगे तो हर रंग बेरंग लगेगा और प्रसन्न मन से देखेंगे तो यह दुनिया बहुत ही सुंदर है बिल्कुल मोरपंख की तरहा।
3. ग्रह दोष : कई ज्योतिष विद्वान मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने यह मोरपंख इसलिए धारण किया था क्योंकि उनकी कुंडली में काल सर्प दोष था। मोर पंख धारण करने से यह दोष दूर हो जाता है, लेकिन जो जगत पालक है उसे किसी काल सर्प दोष का डर नहीं।