राधाष्टमी : राधा-कृष्ण के अमर प्रेम की 5 अनूठी-अनसुनी कथाएं

अनिरुद्ध जोशी
राधा और श्रीकृष्‍ण का प्रेम अमर है। राधा ने श्रीकृष्‍ण से और श्रीकृष्ण ने राधा से नि:स्वार्थ और आत्मिक प्रेम किया था। इसी प्रेम का कारण आज श्रीकृष्ण के नाम के आगे राधा लगता है...राधे कृष्ण। कोई रुक्मिणी कृष्ण क्यों नहीं कहता जबकि रुक्मिणी भी तो राधा की तरह प्रेम करती थीं। आओ जानते हैं राधा कृष्ण प्रेम की अनसुनी बातें।
 
 
1. अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार राधा श्रीकृष्ण से पांच वर्ष बड़ी थी। राधा ने श्रीकृष्ण को पहली बार जब देखा था जबकि उनकी मां यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था। उन्हें देखकर राधा बेसुध सी हो गई थी और उनके प्रेम में पड़ गई थी। उन्हें लगा था कि यह किसी पूर्व जन्म का रिश्ता है। कुछ लोग कहते हैं कि वह पहली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थीं तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था और कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी। जो भी हो लेकिन जब राधा ने कृष्ण को देखा तो वह उनके प्रेम में पागल जैसी हो गई थी और कृष्ण भी उन्हें देखकर बावरे हो गए थे। दोनों में प्रेम हो गया था।
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के अनुसार एक बार नंदबाबा श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले थे। उसी दौरान राधा और उनके पिता भी वहां पहुंचे थे। दोनों का वहां पहली बार मिलन हुआ। उस दौरान दोनों की ही उम्र बहुत छोटी थी। उस स्थान को सांकेतिक तीर्थ स्थान कहते हैं। संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। कहते हैं कि यहीं पर गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का गंधर्व विवाह करवाया था। यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है। 
 
2. ब्रह्मवैवर्त पुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के साथ राधा गोलोक में रहती थीं। एक बार उनकी अनुपस्थिति में श्रीकृष्ण अपनी दूसरी पत्नी विरजा के साथ घूम रहे थे। तभी राधा आ गईं, वे विरजा पर नाराज होकर वहां से चली गईं। श्रीकृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को राधा का यह व्यवहार ठीक नहीं लगा और वे राधा को भला बुरा कहने लगे। राधा ने क्रोधित होकर श्रीदामा को अगले जन्म में शंखचूड़ नामक राक्षस बनने का श्राप दे दिया। इस पर श्रीदामा ने भी उनको पृथ्वी लोक पर मनुष्य रूप में जन्म लेकर 100 वर्ष तक कृष्ण विछोह का श्राप दे दिया। राधा को जब श्राप मिला था तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा था कि तुम्हारा मनुष्य रूप में जन्म तो होगा, लेकिन तुम सदैव मेरे पास रहोगी। यही कारण था कि राधा और श्रीकृष्ण का बचपन में विछोह हो गया था।
 
 
3. राधा श्रीकृष्ण की मुरली सुनकर बावरी होकर नाचने लगती थी और वह उनसे मिलने के लिए बाहर निकल जाती थी। जब गांव में कृष्ण और राधा के प्रेम की चर्चा चल पड़ी तो राधा के समाज के लोगों ने उसका घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। फिर एक दिन श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से कहा कि माता मैं राधा से विवाह करना चहता हूं। यह सुनकर यशोदा मैया ने कहा कि राधा तुम्हारे लिए ठीक लड़की नहीं है। पहला तो यह कि वह तुमसे पांच साल बड़ी है और दूसरा यह कि उसकी मंगनी (यशोदे के भाई रायाण) पहले से ही किसी ओर से हो चुकी है और वह कंस की सेना में है जो अभी युद्ध लड़ने गया है। जब आएगा तो राधा का उससे विवाह हो जाएगा। इसलिए उससे तुम्हारा विवाह नहीं हो सकता।  लेकिन कृष्ण जिद करने लगे। तब यशोदा ने नंद से कहा। कृष्‍ण ने नंद की बात भी नहीं मानी। गर्ग ऋषि ने कृष्ण को समझाया कि तुम्हारा जन्म किसी खास लक्ष्य के लिए हुआ है। इसकी भविष्यवाणी हो चुकी है कि तुम तारणहार हो। इस संसार में तुम धर्म की स्थापना करोगे। तुम्हें इस ग्वालन से विवाह नहीं करना चाहिए। तुम्हरा एक खास लक्ष्य है। गर्ग मुनि हर तरह से समझाते हैं लेकिन कृष्ण नहीं समझते हैं तब गर्ग मुनि उन्हें एकांत में यह रहस्य बता देते हैं कि तुम यशोदा और नंद के पुत्र नहीं देवकी और वसुदेव के पुत्र हो और तुम्हारे माता पिता को कंस ने कारागार में डाल रखा है। यह सुनकर श्रीकृष्ण के जीवन की दशा बदल जाती है।
 
 
4. राधा के परिवार को जब पता चला कि यह श्रीकृष्‍ण की मुरली सुनकर उनके प्रेम में नाचती हुई उनके पास पहुंच जाती है तो उन्होंने राधा को घर में ही कैद कर दिया था। तब श्रीकृष्ण ने अपने साथियों सहित एक दिन उन्हें रात में कैद से मुक्त कराकर उद्धव और बलराम सहित अन्य सखियां के साथ रातभर नृत्य किया था। यह रात पूर्णिमा की रात थी जब महारास हुआ था। बाद में राधा की मां राधा के कक्ष में गई तो राधा उन्हें वहां सोते हुए मिली।
 
 
कहते हैं कि उस वक्त श्रीकृष्ण को 2 ही चीजें सबसे ज्यादा प्रिय थीं- बांसुरी और राधा। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर राधा के जैसे प्राण ही निकल जाते थे। कई जन्मों की स्मृतियों को कुरेदने का प्रयास होता था और वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंची चली आती थी। भगवान श्रीकृष्ण के पास एक मुरली थी जिसे उन्होंने राधा को छोड़कर मथुरा जाने से पहले दे दी थी। राधा ने इस मुरली को बहुत ही संभालकर रखा था और जब भी उन्हें श्रीकृष्ण की याद आती तो वह यह मुरली बजा लेती थी। श्रीकृष्ण उसकी याद में मोरपंख लगाते थे और वैजयंती माला पहनते थे। श्रीकृष्ण को मोरपंख तब मिला था जब वे राधा के उपवन में उनके साथ नृत्य कर रहे मोर का पंख नीचे गिर गया था तो उन्होंने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था और राधा ने नृत्य करने से पहले श्रीकृष्ण को वैजयंती माला पहनाई थी।
 
 
5. जब कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए, तब राधा के लिए उन्हें देखना और उनसे मिलना और दुर्लभ हो गया। कहते हैं कि राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है, जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं। राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थीं। इसका जिक्र पुराणों में मिलता है। इसके बाद राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
 
कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

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