यह वह समय था जबकि देवी देवकी, देवी रोहिणी और देवी यशोदा के गर्भ में तीन महानतम शक्तियों का वास होता हैं। देवी देवकी के गर्भ में श्रीकृष्ण, मैया यशोदा के गर्भ में योगमाया और देवी रोहिणी के गर्भ में बलराजी। आओ जानते हैं कि किस तरह बलरामजी देवी रोहिणी के गर्भ से जन्म लेकर संकर्षण कहलाएं।
श्रीकृष्ण के आदेश से योगमाया प्रकट होकर अपनी माया से देवकी के गर्भ को ले जाकर रोहिणी के गर्भ में डाल देती है। देवकी के पेट से गर्भ को खींचकर निकालकर उसे रोहिणी के गर्भ में डालने की इस क्रिया को संकर्षण कहा जाता है। गर्भ से खींचे जाने के कारण ही बलरामजी का नाम संकर्षण पड़ा। माता रोहिणी के यहां पुत्र के जन्म की खुशियां मनाई जाती हैं। देवताओं में हर्ष व्याप्त हो जाता है। वे सभी रोहिणी के पुत्र संकर्षण अर्थात बलराम की स्तुति गाते हैं।...लोकरंजन करने के कारण बलरामजी राम कहलाए और बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण वे बलराम कहलाए। वे अपने साथ हमेशा एक हल रखते थे इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता था।
यह कार्य करने के बाद स्वयं योगमाया यशोदा मैया के गर्भ में उनकी पुत्री रूप में स्थापित हो गई और जन्म लेने के बाद वसुदेवजी यशोदा मैया के पास बालकृष्ण को रख गए और योगामाया को उठाकर कारागार में लेजाकर देवकी के पास सुला दिया। कंस को जब यह पता चला कि देवकी ने किसी बालक को जन्म दिया है तो वह कारागार में गया और यह देखकर हैरान रह गया कि यह तो बालक नहीं बालिका है। फिर भी उसने उस बालिका का वध करने का प्रयास किया, परंतु वह बालिका उसके हाथ से छूटकर आकाश में स्थित होकर पुन: अपने स्वरूप (योगमाया) में प्रकट होकर बोलने लगी कि रे दुष्ट! तु मेरा क्या वध करेगा, तेरा वध करने वाला तो जन्म ले चुका है।