निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक का प्रसारण बीच में अयोध्या की रामलीला बताने के लिए 16 अक्टूबर के बाद से रोक दिया गया था। इसके बाद 26 अक्टूबर से पुन: प्रसारण हुआ। 26 अक्टूबर के 168वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 168) शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह दुर्योधन को बताते हैं कि अर्जुन बहुत ही शक्तिशाली है तुम्हारे सामने ही उसने अपने तीर से गंगा माता को प्रकट किया था उसके पास पाशुपतास्त्र भी है इसलिए अब भी वक्त है कि तुम अपने शेष भाइयों को बचाने के लिए पांडवों से समझौता कर लो। परंतु दुर्योधन पितामह की सालाह नहीं मानता है।
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उधर, संजय इस घटना क्रम को बताते हुए कहता है कि महाराज पितामह के पतन होने के बाद आज ऐसा लग रहा है कि जैसे हस्तिनापुर अनाथ हो गया है। यह सुनकर धृतराष्ट्र रोते हुए कहता है कि तुम सच कह रहे हो संजय। आज ये हस्तिनापुर अनाथ हो गया है। पितामह भीष्म के पतन के बाद दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य को कौरव सेना का सेनापति बना देता है। द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को बंद बनाने के लिए गुरुढ़ व्यूह की रचना करने की योजना बनाते हैं। यह खबर पांडव पक्ष में पहुंच जाता है।
तब भीम पूछता है कि और यदि शत्रु मकर व्यूह की रचना करे तो? तब अभिमन्यु कहता है कि शैम व्यूह या क्रोंच व्यूह की रचना करना चाहिए। यह सुनकर सभी पांडव कहते हैं वाह अभिमन्यु वाह। तब भीम कहता है कि अभिमनयु तुम तो जन्म से ही द्वारिका में पले और बढ़े हुए हो। बलरामजी से गदा चलाने और युद्ध के दांवपेंच की शिक्षा लेने की बात तो समझ में आती है परंतु ये व्यूह और प्रतिव्यूह की बातें अवश्य तुमने अपने छोटे मामाश्री द्वारिकाधीश से सीख होगी?
यह सुनकर अभिमन्यु कहता है कि नहीं ताउश्री यह शिक्षा मैंने अपने मामाश्री ने नहीं ली है। यह तो मैंने अपने पिताश्री पार्थ अर्जुन से ली है। यह सुनकर अर्जुन प्रसन्न हो जाता है तब अभिमन्यु बताता है कि किस तरह जब मैं गर्भ में था तब पिताजी माता सुभद्रा को व्यूह रचना की बारे में बताते थे।
फिर श्रीकृष्ण पांडवों को बताते हैं कि भीष्म पितामह के पतन के बाद कर्ण को युद्ध में उतारा जाएगा। इस पर भीम कहते हैं कि उसे तो मैं अपनी गदा से स्वर्ग लोग पहुंचा दूंगा। इस पर अर्जुन कहता है कि नहीं वह मेरा शिकार है। इस तरह सभी मैं कर्ण को लेकर चर्चा होती है तब श्रीकृष्ण कर्ण के कवच कुंडल की बातें बताते हैं।
उधर, पितामह के पतन होने और द्रोणाचार्य के सेनापति बनने के बाद कर्ण को युद्ध में उतारा जाता है। कर्ण कहता है कि अर्जुन ने तो पितामह को शरशैया पर लिटाया है परंतु मैं अर्जुन को मृत्यु शैया पर लिटा दूंगा।
इसके बाद कर्ण के पिता सूर्यदेव श्रीकृष्ण के पास जाते हैं तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिस तरह इंद्रदेव ने अर्जुन की सहायता की है तुम भी अपने पुत्र की सहायता करो। तब सूर्यदेव कर्ण को बताते हैं कि इंद्रदेव तुमसे दान में तुम्हारे कवच कुंडल लेने आएंगे तो तुम सतर्क रहना। इस पर कर्ण कहता है कि मैं एक योद्धा हूं। दान देना मेरा धर्म है और मैं अपने धर्म से डिग नहीं सकता।
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