निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 19 मई के 17वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 17 ) में कंस से महर्षि गर्ग कहते हैं कि हम आपकी समस्त धृष्टता को क्षमा करते हैं और आपको आशीर्वाद देते हैं जिससे आपको सद्बुद्धि मिले। यह कहकर महर्षि गर्ग मुनि वहां से चले जाते हैं। कोई उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
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महर्षि गर्ग मुनि दूर तक चले जाते हैं तब कंस कहता है सैनिक उस बूढ़े को बाल सहित घसिटकर हमारे समक्ष ले आओ। वह राजमहल से बाहर नहीं जाना चाहिए। सैनिक जाने लगते हैं तभी महामंत्री सैनिकों को रोककर कहता है, क्षमा करें महाराज ये हमारे हित में नहीं होगा। कंस कहता है कि एक भिखमंगा साधु राजा की शक्ति को चुनौति देकर चला गया और तुम उसे रोकना भी नहीं चाहते। राजा के राजदंड की मर्यादा कहां रह गई? तब महामंत्री कहता है कि राजन आप नहीं जानते उस तपस्वी के पास राजदंड से बड़ा ब्रह्मदंड है। कंस कहता है ब्रह्मदंड?
महामंत्री बताता है कि आपने वह कथा तो सुनी होगी कि किस प्रकार ऋषि वशिष्ठ ने विश्वामित्र की सारी सेना को ब्रह्मदंड के माध्यम से नाश कर दिया था? महर्षि गर्ग उसी श्रेणी के सिद्ध योगी है। यह सुनकर कंस भयभीत हो जाता है। फिर महामंत्री कहता है, उनकी शक्ति को ललकारना हमारे हित में नहीं होगा। हमारी ये चाल ही गलत थी। ऐसे महात्माओं से सहायता के लिए उनकी दया और करुणा को जगाना चाहिए। इस पर कंस कहता है कि कंस किसी से दया भी भीख नहीं मांगता। उसे अपनी शक्ति पर भरोसा है। यह कहकर कंस वहां से चला जाता है।
बाद में वह अपने मित्र बाणासुर को बताता है कि किस तरह एक बालक ने हमें चकरा रखा है। ऊपर से एक समस्या यह भी है कि देवकी का अष्टम पुत्र कौन है यह हमें अभी तक नहीं मालूम। वो विष्णु हमारे साथ छल कर रहा है। तब मित्र बाणासुर समझाता है कि सामने जो यशोदा का पुत्र कृष्ण है पहले उससे निपट लो। जब अष्टम संतान सामने आएगी तो उससे भी निपट लेंगे। मैं अपने मित्र के लिए एक शक्तिशाली अस्त्र लाया हूं और ये अस्त्र अमोघ है। कंस कहता है कहां है वह अस्त्र? तब बाणासुर कहता है आओ दिखाता हूं। वह कंस को महल की गैलरी में ले जाता है और आवाज लगाता है तृणावर्त। तभी भूमि से चक्रवात के रूप में एक विशालकाय राक्षस प्रकट होता है और कहता है क्या आज्ञा है स्वामी।
तब बाणासुर कहता है कि तृणावर्त तनिक हमारे मित्र को भी दिखाओ कि तुम क्या कर सकते हो। राक्षस कहता है जो आज्ञा स्वामी। कंस उस राक्षस को आश्चर्य और प्रसन्नता से देखता है। वह राक्षस थोड़ा दूर जाकर भयंकर चक्रवात खड़ा कर देता है जिसके चलते मकान के मकान उड़ने लगते हैं। यह देखकर कंस दंग रह जाता है। फिर वह राक्षस अपना प्रदर्शन दिखाने के बाद कहता है महाराज क्या आज्ञा है? बाणासुर कहता है धृणावर्त आप गोकुल में जाकर हमारे मित्र का कार्य पूर्ण करते आओ।...राक्षस कहता है जो आज्ञा महाराज। और वह हंसता हुआ चला जाता है।
उधर गोकुल में लल्ला आंगन में पालने में झुलते रहते हैं। सेविकाएं उन्हें झुलाती रहती है और सेवक धान कूटने और अन्य कार्य करते रहते हैं। तभी गोकुल में चक्रवात तूफान की शुरुआत हो जाती है। गांव चौपाल पर बैठे-खड़े लोग भागने लगते हैं। सारे गांव में हाहाकार मच जाती है। चक्रवात तूफान रूप में राक्षस लल्ला के आंगन में भी पहुंच जाता है। यशोदा मैया अपने लल्ला को बचाने के लिए आंगन में दौड़ती है।
बड़ी मुश्किल से यशोदा मैया पालने के पास पहुंच पाती है और लल्ला को उठाकर वह घर के भीतर जाने लगती है। तभी वह राक्षस तृणावर्त वहीं पर चक्रवात पैदा करने लगता है। मां यशोदा और लल्ला चक्रवात की चपेट में जा जाते हैं। दूर खड़े नंदबाबा यह दृश्य देख कर दंग रहा जाते हैं। रोहिणी भी भीतर से निकल कर यशोदा की ओर दौड़ती है लेकिन वह यशोदा मैया तक नहीं पहुंच पाती है। तभी राक्षस अपनी माया से लल्ला को माता यशोदा के हाथ से ऊपर खींच लेता है और वह बालरूप श्रीकृष्ण को ऊपर उड़ता हुआ ले जाता है। नंदबाबा बड़ी मुश्किल से यशोदा मैया को संभालते हैं। रोहिणी, यशोदा और नंदबाबा उस चक्रवात तूफान के पीछे पीछे भागते हैं, लेकिन वह दूर आसमान में निकल जाता है।
राक्षस तृणावर्त की गोद में बालकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं। वह राक्षस लल्ला को गोगुल के आकाश में बहुत ऊपर ले जाता है तभी लल्ला उस राक्षस का कंठ पकड़ लेते हैं। वह राक्षस चीखने लगता है और फिर धीरे-धीरे वह गायब हो जाता है। लल्ला आसमान से नीचे गिरने लगते हैं और वन में एक फूलों की सेज पर बैठ जाते हैं। माता यशोदा, रोहिणी और नंदबाबा सहित कई ग्रमीण रोते हुए उन्हें ढूंढते हुए वहां पहुंचते हैं। लल्ला को फूलों के साथ खेलते हुए देखकर आश्चर्य और प्रसन्नता से सभी के चेहरे खिल उठते हैं। माता यशोदा अपने लल्ला को कृष्णा कृष्णा कहते हुए छाती से लगा लेती हैं। नंदबाबा और रोहिणी भी हाथ जोड़कर प्रभु को धन्यवाद देते हैं कि तुने कृष्णा को बचा लिया।
उधर, कंस और बाणासुर को जब यह पता चलता है कि धृणासुर मारा गया तो वे सन्न रह जाते हैं। कंस कहता है महाराज बाणासुर कहो, कहो अब क्या कहते हो? अब कोई और अस्त्र है जिसका प्रयोग किया जाए? तब बाणासुर कहता है हां है मित्र। तब कंस पूछता है कौनसा? तब बाणासुर कहता है प्रतीक्षास्त्र। कंस पूछता है प्रतीक्षास्त्र अर्थात? तब बाणासुर समझाता है कि जब विपरित समय चल रहा हो तो अच्छा समय आने की प्रतीक्षा करें। एक दिन ये बुरा समय समाप्त हो जाएगा। तब कंस कहता है कि परंतु बुरा समय समाप्त हो गया और अच्छा समय आ गया इसका पता कैसे चलेगा? तब बाणासुर कहता है कि अच्छा समय जब आता है तो उसके लक्षण चारों और स्वत: ही दिखाई देने लगते हैं और वहीं समय होता है फिर से पुरुषार्थ करने का।
तब कंस कहता है कि तब तक क्या करूं? बाणासुर कहता है कि सबसे पहला काम ये करें कि उस बालक को भूल जाइये। कंस कहता है लो भूल गया फिर? बाणासुर कहता है कि अपने राजकाज के काम में लग जाइये। वैसे राजाओं के पास तो मनोरंजन के सैंकड़ों साधन होते हैं। उसमें रत हो जाइये। चलिए हम आपको अपने राज्य में आखेट पर आने का निमंत्रण देते हैं। कुछ समय के लिए हम आपका इस प्रकार मनोरंजन करेंगे कि आप सबकुछ भूल जाएंगे। यह सुनकर कंस प्रसन्न हो जाता है।
उधर कारागार में देवकी और वसुदेव को बताते हैं। देवकी वसुदेवजी से कहती है कि मेरा लल्ला कितना बड़ा हो गया होगा? अब तो दीदी भी उसे कृष्णा नाम से पुकारती होगी? तब वसुदेवजी कहते हैं तनिक धीरे बोलो कोई सैनिक सुन लेगा तो कंस को पता चल जाएगा कि कृष्ण नाम का कोई बालक है जिसे तुम पुकारती हो। तब देवकी कहती हैं, हां अब मैं उसे मन में ही पुकारा करूंगी। तब देवकी कृष्णा की कल्पना में खो जाती है। वह एक तकिये को गोद में लेकर उसे ही लल्ला समझकर लौरी गाने लगती है। आसमान से श्रीकृष्ण और राधा ये सब देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।
उधर, नारद मुनिजी भगवान शंकर के पास जाकर प्रणाम कर कहते हैं, आप तो जानते ही हैं कि मैं इस वक्त मृत्युलोक में ही रहकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला को देखकर भाव विभोर हो जाता हूं। नारद से बाललीला का वर्णन सुनकर भगवान शंकर कहते हैं कि अब हमारे हृदय में भी उनकी बाललीला को स्वयं धरती पर जाकर देखने की लालस जागृत हो उठी है। यह कहकर महादेव जी अंतरध्यान हो जाते हैं।
उधर श्रीकृष्ण देवी योगमाया से कहते हैं, सावधान त्रिभुवनपति भगवान शंकर गोकुल पधार रहे हैं। तब योगमाया एक वृद्धा का रूप धारण करके गोकुल पहुंच जाती है। जय श्रीकृष्णा।
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