Shri Krishna 20 May Episode 18 : जब बालकृष्ण को देखने महादेव वेश बदल कर पधारे

अनिरुद्ध जोशी

बुधवार, 20 मई 2020 (22:10 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 20 मई के 18वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 18 ) में नारद मुनिजी भगवान शंकर के पास जाकर प्रणाम कर कहते हैं, आप तो जानते ही हैं कि मैं इस वक्त मृत्युलोक में ही रहकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला को देखकर भाव विभोर हो जाता हूं। नारद से बाललीला का वर्णन सुनकर भगवान शंकर कहते हैं कि अब हमारे हृदय में भी उनने बालरूप को स्वयं धरती पर जाकर देखने की लालस जागृत हो उठी है। यह कहकर महादेवजी अंतर्ध्यान हो जाते हैं।

रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
उधर, श्रीकृष्ण देवी योगमाया से कहते हैं, सावधान त्रिभुवनपति भगवान शंकर गोकुल पधार रहे हैं। तब योगमाया गोकुल की एक वृद्ध काकी का रूप धारण करके गोकुल पहुंच जाती हैं। भगवान शंकर भी तपस्वी वेश में गोकुल में नंद के द्वार पर अलख निरंजन की अलख जगाते हैं। 
 
तभी योगमाया एक वृद्ध काकी के वेश में द्वार पर पहुंचकर कहती है कि यहां तो कोई नहीं दिखाई देता। आप मेरे यहां चले मैं आपको भिक्षा देती हूं। तब महादेवजी कहते हैं कि नहीं हमारा नियम है कि हम एक ही जगह से भिक्षा लेते हैं। मिले तो सही, नहीं मिले तो भूखे ही रह जाते हैं। तब योगमाया कहती है ठीक है अंदर जाकर यशोदा को कहती हूं कि भिक्षा ले आएं।
 
यशोदा मैया भीतर लल्ला को पालने में झुला रही होती है। वृद्ध काकी बनी योगमाया अंदर चली जाती है तो इधर महादेवजी कहते हैं कि प्रभु दर्शन दो। दर्शन किए बगैर तो मैं यहां से जाने वाला नहीं हूं।
 
योगमाया अंदर यशोदा मैया से कहती है यशोदारानी तेरे द्वार पर एक जोगी कब से भिक्षा के लिए पुकार रहा है। तुने उसकी आवाज नहीं सुनी क्या? यशोदा भैया कहती है नहीं तो काकी। तब वृद्ध काकी बनी योगमाया कहती है अरे जल्दी से उसे भिक्षा दो, कोई बड़ा महात्मा लगता है। यशोदा कहती है अच्छा! फिर वह एक सेविका से कहती है जरा लल्ला का ध्यान रखना मैं अभी आई। 
 
योगमाया और यशोदा दोनों ही रसोई में चली जाती है। वहां योगमाया बताती है कि बड़ा ही तपस्वी योगी लगता है। यशोदा मैया कहती है कि काकी मैं आटा, दाल, चावल सब कुछ ले लिया है चलो। तब काकी बनी योगमाया कहती है अरे दक्षिणा के लिए थोड़ा धन भी रख लें। बड़ी दिव्य मूर्ति है। उसे प्रसन्न कर ले आशीर्वाद पाएगी। तब यशोदा मैया बहुमूल्य मोती की माला को भी थाल में रख लेती है।
 
इधर, भगवान शंकर आकाश में देखकर श्रीकृष्ण से कहते हैं प्रभु दर्शन देने में इतना संकोच? तब श्रीकृष्ण कहते हैं धन्यभाग जो आप अपने सेवक के घर पथारे। सेवक का प्रणाम स्वीकार करें। तब भगवान शंकर कहते हैं कि कौन सेवक है और कौन प्रभु इसके निर्णय का ये समय नहीं है। आप तो हमें अपना परमभक्त जानकर अपने बालरूप के दर्शन करा दीजिये बस। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि बालरूप तो इस समय माता यशोदा के पास गिरवी रखा है। उन्हीं से मांगना पड़ेगा। तब श्रीकृष्ण कहते हैं आह लीजिए मैया आ गई।
 
तब तपस्वी बने भगवान शंकर द्वार की ओर देखते हैं। मां यशोदा मैया थाली में भिक्षा लेकर आ जाती है। पीछे काकी खड़ी रहती है। भगवान शंकर यशोदा मैया को देखकर भाव विभोर होकर उसे आशीर्वाद देते हैं तो यशोदा मैया कहती हैं कि विलंब के लिए क्षमा करें भगवन मैं अपने बालक के श्रृंगार में व्यस्त थीं।
 
तब भगवान कहते हैं कि धन्य हो तुम, जिसे ऐसे दिव्य बालक की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माता हमें भी उस परम शिशु के दर्शन करवा दो। तब यशोदा मैया कहती हैं क्षमा करें बाबा। अभी अभी नहलाया है उसे। इस समय मैं उसे बाहर नहीं ला सकती। ठंडी हवा लग जाएगी। तब भगवान शंकर कहते हैं कि मैया हवाओं का चलना और न चलना जिसके संकल्प मात्र पर निर्भर है उसके लिए ये व्यर्थ की शंका मत करो। उसे एक बार हमारे पास ले आओ। उसके दर्शनों की लालसा में ही हम तेरे द्वार तक आएं हैं।
 
तब यशोदा मैया कहती हैं कि नहीं जोगी बाबा। मैं उसे बाहर नहीं ला सकती। इसलिए आप ये भिक्षा ग्रहण कीजिए और मुझे क्षमा कीजिए। यह सुनकर भगवान शंकर कुछ देर रुककर कहते हैं मैया ये हीरे मोती, ये पत्थर के टूकड़े हमारे किस काम के? हमें इनका लोभ नहीं। चाहो तो ऐसे मोती-माणक हमसे ले लो। तभी भगवान शंकर के भिक्षा पात्र में सुंदर सुंदर मोती-माणक आ जाते हैं। यह देखकर यशोदा आश्चर्य करती है।... 
 
भगवान वे उन मोतियों को यशोदा मैया की थाल में डालकर कहते हैं लो रख लो इन्हें। हमें तो केवल अपने लाल के दर्शन करवा दो। वही हमारी भिक्षा है।
 
थाल में मोतियों को देखकर यशोदा को शंका हो जाती है। वह पलटकर चिंतित मुद्रा में काकी बनी योगमाया से कहती है, काकी ये कोई असली साधु नहीं ये तो कोई मायावी है। काकी गर्दन हिला देती है तब यशोदा मैया आंखों में आंसू भरकर रोते हुए कहती हैं, देखो जोगी बाबा तुम जैसे कई मायावी पहले भी आ चुके हैं। सभी इसी प्रकार की चिकनी चुपड़ी बाते करते हैं। तेरा लाल तो बड़ा दिव्य बालक है। उसके दर्शन करा दे। हमारी गोद में बैठा दे और फिर सबके सब उसका अनिष्ट करने की चेष्ठा करते हैं। मेरे लाल ने आप लोगों का क्या बिगाड़ा है जो आप लोग उसके शत्रु बन गए हैं? भिक्षा चाहिए तो लीजिए अन्यथा अपने स्थान को पथारिये। मैं बालक को बाहर नहीं लाऊंगी।
 
यह सुनकर भगवान शंकर कहते हैं मैया। ऐसी कठोर मत बनो। हम बहुत दूर कैलाश पर्वत से आए हैं। तब यशोदा मैया थोड़ा क्रोधित होकर कहती है कैलाश में थे तो वहीं भगवान शिव के साक्षात दर्शन कर लेते। यहां क्या काम है? तब भगवान शंकर कहते हैं, भोली मैया। भगवान के साक्षात दर्शन तो करना कोई कठिन कार्य नहीं है परंतु उनके बाल स्वरूप के दर्शन करना कठिन कार्य है। उसी की लालसा में हम तेरे द्वार पर आएं हैं। कई युगों के पश्चात ये दर्शन मिलते हैं।
 
तब यशोदा मैया कहती है। नहीं नहीं, मैं उसे बाहर नहीं ला सकती। मेरे पति की आज्ञा है कि किसी भी अनजान व्यक्ति के सामने उसे मत लाना। तभी पीछे से एक वृद्ध महिला आकर कहती है कि ये अनजान व्यक्ति नहीं है यशोदा। ये अनजान व्यक्ति नहीं है। मैंने कहा था न कि गोकुल में आने के पहले मैं काशी में रहती थी। वहीं इनके दर्शन किए थे। यह सुनकर भगवान शंकर प्रसन्न हो जाता है और उनके मन में आशा की किरण जागृत हो जाती है। फिर वह कहती हैं ये सचमुच परम दिव्य शक्ति है। शक्तिपति है। ऐसा कहकर काकी उनके झुककर उनके चरणों में अपना माथा टेककर रोते हुए कहती हैं शक्तिपति हैं। शक्तिपति हैं। 
 
यह देखकर मैया यशोदा आश्चर्य करने लगती है। 
 
फिर वह कहती है यशोदा इन्हें लल्ला के दर्शन करा दे यशोदा रानी। इनका आशीर्वाद पाकर तेरा लल्ला भी बड़ा प्रसन्न हो जाएगा। यह सुनकर यशोदा मैया कहती है, पूरणमासी बुआ क्या तुम सच कह रही हो? तुम इन्हें जानती हो? तब पूरणमासी कहती है कि हां यशोदा भलिभांति जानती हूं। ये तो तेरा सौभाग्य है कि तेरे लल्ला का प्रेम इन्हें तेरे द्वार पर ले आया।
 
तब यशोदा मैया कहती है परंतु इनकी वेशभूषा तो देखिये, लल्ला तो इन्हें देखकर वैसे ही डर जाएगा। ना बाबा ना। तभी पूरणमासी कहती है नहीं यशोदारानी नहीं। इनके दर्शन मात्र से समस्त भयों का नाश हो जाता है। समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं। हां, मुझ पर विश्वास कर। मैं कभी झूठ नहीं बोलती। तभी काकी बनी योगमाया भी कहती है। हां ये पूरणमासी बुआ कभी झूठ नहीं बोलती है। तब यशोदा मैया बोलती है पर मैं बालक को इनके हाथ में नहीं दूंगी। तब पूरणमासी कहती है ये दूर से ही आशीर्वाद दे देंगे, जा लल्ला को ले आ।
 
यशोदा मैया बहुत ही संकोच से भीतर जाती है।फिर भगवान शंकर ऊपर आसमान में श्रीकृष्ण को देखते हैं तो वे मुस्कुरा रहे होते हैं।
 
यशोदा मैया भीतर से लल्ला को गोद में उठारकर ले आती है और कहती है लो जोगी बाबा। इसे देख लो और आशीर्वाद दे दो। भगवान शंकर बालरूप कृष्ण को देखकर विस्मित और भाव विभोर हो जाते हैं। लल्ला भी भगवान शंकर को एकटक देखकर मुस्कुरा रहा होता है। भगवान शंकर उनका हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। यह दृश्य देखकर काकी और पूरणमासी दोनों की आंखों में आंसू भर आते हैं।
 
तब भगवान शंकर कहते हैं कि मैया आज्ञा हो तो एक बार इनके चरणों पर अपना मस्तक रख दूं? यह सुनकर यशोदा मैया डरकर कहती हैं नहीं..नहीं। मैं इसे छूने नहीं दूंगी। तब पूरणमासी तपस्वी भगवान शंकर से कहती हैं कि पहले अपनी चरणरज तो दीजिए प्रभु। फिर वह भगवान शंकर के पैरों को छूकर वही हाथ लल्ला के कपाल पर लगा देती है। ऊपर बैठे भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं धन्यवाद प्रभु कोटिश: धन्यवाद।
 
तब भगवान शंकर कहते हैं कि ये कहां का न्याय है स्वामी कि हम इतनी दूर से आकर आपके बालरूप का आलिंगन भी न कर सकें। जिन चरणों से निकली गंगा हम अपने शीश पर धारण करते हैं उन चरणों को एक बार तो छू लेने दीजिए। तब श्रीकृष्ण कुछ भी नहीं कह पाते हैं।
 
फिर भगवान शंकर आंख बंदकर हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है और फिर अपने सूक्ष्म रूप से बालकृष्ण के चरण स्पर्श करते हैं। फिर वे आंखें खोलकर कहते हैं जुग जुग जिए तेरा लाल मैया। फिर वे जाने लगते हैं तो यशोदा मैया कहती है जोगी बाबा अपनी भिक्षा तो लेते जाइये। तब भगवान शंकर कहते हैं कि जोगी हो गया मालामाल निरख मुख तेरे लाल का। अब ये हीरे मोती मेरे किस काम के। 
 
फिर भगवान शंकर आंगन से जब बहार निकलने लगते हैं तो काकी और पूरणमासी दोनों ही उन्हें प्रणाम करते हैं। भगवान शंकर के चरणों के निशान की जगह फूल बिछते जाते हैं। वे द्वार के बाहर निकलक जाते हैं तभी नंदरायजी वहां पहुंच जाते हैं जो तपस्वी साधु के वेश में भगवान शंकर को जाते हुए देखते हैं। फिर वे नीचे देखते हैं चरण निशान की जगह फूल बिछे हैं।
 
पूरणमासी भी चरण निशान की जगह उन फूलों को देखकर भाव विभोर हो जाती है और वह उनके समक्ष अपना माथा टेककर कहती है जय हो प्रभु।
 
द्वार पर खड़े नंदराय यह सब देखकर आश्चर्य करते हैं कि आखिर यहां हुआ क्या था? तब वे कहते हैं, पूरणमासी बुआ आप ये किसे प्रणाम कर रही हो? और ये साधु कौन थे? तब वह कहती है कि वे त्रिभुव के पति और लल्ला की ओर देखकर कहती है इनके सखा। नंदबाबा इस धरती को प्रणाम करो जहां उनके चरण पड़े थे। नंदबाबा यह सुनकर उस जगह को प्रणाम करते हुए कहते हैं ये तो सचमुच कोई देवता थे। तब यशोदा मैया लल्ला से कहती है तू कौन है रे? तुझसे मिलने कभी राक्षस आते हैं कभी देवता। बोल ना तू कौन है रे?

उसके बाद बालकृष्ण को थोड़ा बड़ा बताते हैं। वह घुटने घुटने चलने लगता है। माता यशोदा उन्हें माखन खिलाती हैं। फिर माता यशोदा उन्हें पहली बार नदी के घाट पर ले जाती हैं जहां लल्ला को वह एक जगह बिठाकर खुद नदी में स्नान करने चली जाती हैं। इस दौरान माता धरती आकर बालकृष्ण को प्रणाम करके खुद को कृतघ्न मानती हैं। फिर लल्ला माता धरती का सम्मान रखने के लिए नैवेद्य के रूप में मिट्टी का सेवन करने लग जाते हैं। गोपियां ये देखकर माता यशोदा मैया से कहती हैं कि यशोदा तेरा लल्ला मिट्टी खा रहा है देख। जय श्रीकृष्णा। 
 
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