निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 5 मई के तीसरे एपिसोड में आकाशवाणी सुनकर कंस कहता है कि देवता भी जिसकी पदचाप सुनकर थर्राने लगते हैं। देवकी का आठवें गर्भ की संतान मुझे मार डालेगी। यह कहते हुए कंस अट्टाहास करता है। तब कंस कहता है कि ना रहेगी देवकी और ना होगी उसकी आठवीं संतान। यह कहते हुए वह तलवार निकाल लेता है।
तब देवकी उनके चरणों में गिर पड़ती है और वसुदेव तलवार को पकड़ कर कहते हैं कि आप ये जघन्य अपराध कैसे कर सकते हैं? एक तो स्त्री, दूसरा आपकी बहन और तीसरा नवविवाहिता। इसकी हत्या करना धर्म के विरुद्ध है। वसुदेव उन्हें कई तरह से समझाते हैं, लेकिन कंस नहीं समझता है तो वसुदेव कहते हैं कि देवकी से आपको भय नहीं लेकिन उसकी संतान से है तो मैं उसकी प्रत्येक संतान के जन्म लेते ही आपको लाकर दे दूंगा। यह मेरा वचन है।
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कंस कहते हैं कि मुझे धोखा देकर मथुरा से भाग जाना चाहते हो? वसुदेव वचन देते हैं कि मैं मथुरा में ही रहूंगा। तब कंस कहता है सेनानायक को कि इन दोनों को कुमार भवन में कैद कर दो। देवकी और वसुदेव को वहां उस भवन में कैद कर दिया जाता है और कहा जाता है कि आज से यह बंदीगृह है।
वहां पहुंचकर वसुदेव कहते हैं देवकी से कि आपका इस भवन में स्वागत है। दोनों के बीच संदेवनापूर्ण संवाद होता है। इधर, कंस के पिता उग्रसेन को यह पता चलता है तो वह कंस से पूछते हैं कि क्या यह सत्य है कि तुम देवकी का वध करने जा रहे थे? कंस कहता है कि हां यह सत्य है। दोनों पिता-पुत्र के बीच वाद-विवाद होता है। उग्रसेन कंस को आज्ञा देते हैं कि दोनों के महल के आसपास जो पहरा बिठा दिया है उसे आज ही हटा दिया जाए।
कंस अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ विचार-विमार्श करता है कि पिताश्री महाराज उग्रसेन का क्या किया जाए? तब उसका मंत्री चाणूर उसे सलाह देता है कि आपके दो मित्र हैं महाराज बाणासुर और भोमासुर। उनसे सहायता मांगों। कंस कहता है कि हम गुप्त तरीके से दोनों से मिलकर कोई योजना बनाएंगे।
दूसरी ओर, अक्रूरजी वसुदेवजी के पिता के पास जाकर वसुदेव और देवकी को मुक्त कराने की योजना बनाते हैं। अक्रूरजी जाकर वसुदेव और देवकी को यह बताते हैं कि आपको किस तरह मुक्त करने की योजना बनाई है। वसुदेव कहते हैं कि यदि भविष्यवाणी सही है तो फिर हमारी सुरक्षा की चिंता छोड़ दो अक्रूर। मैं मथुरा छोड़कर नहीं जाऊंगा। क्योंकि यदि मेरी आठवीं संतान ही कंस का वध करेगी तो जिसने आकाशवाणी की है वही हमारी रक्षा भी करेगा और मैं वचन से बंधा हूं।
उधर, कंस अपने मित्र वाणासुर और भौमासुर से मिलकर बताता है कि किस तरह मैं अपने पिता उग्रसेन के समक्ष विवश हूं। मथुरा के सैनिक और जनता महाराज उग्रसेन की भक्त है। तब तीनों मिलकर योजना बनाते हैं। इधर, मथुरा में उग्रसेन के समर्थकों को पता चल जाता है कि कंस ने वाणासुर और भौमासुर से मिलकर महाराज उग्रसेन को अपने रास्ते से हटाने की कोई योजना बनाई है।
एक दिन जब माता देवकी गर्भ धारण करती है तो वसुदेव के माता-पिता उसके लिए वस्त्र आभूषण आदि भेजते हैं।
फिर एक दिन गुप्त स्थान पर वाणासुर और भौमासुर के सैनिक एकत्रित होते हैं। गुप्त स्थान पर पहुंचकर कंस बताता है कि किस तरह महाराजा जरासंध ने हमारी सहायता के लिए अपनी सेना की एक टूकड़ी भेज दी है। उन्हें पहुंचने में समय लगेगा। तब तक हमें इंतजार करना होगा।
फिर उधर, खुशी की खबर आती है। देवकी के गर्भ से पुत्र का जन्म होता है। वचन अनुसार वसुदेव अपने पुत्र को ले जाकर कंस को सौंप देता हैं। कंस उसे गोद में लेकर पूछता है कि क्या नाम रखा है इसका? वसुदेव कहते हैं कीर्तमान। कंस इस पर हंसते हुए कहता है कि हम तुम्हारी प्रतिज्ञा पालन से प्रसन्न है। लो इसे वापस ले जाओ। हमें इस बालक से कोई भय नहीं। आकाशवाणी ने तो आठवीं संतान की बात कही थी। ये तो प्रथम संतान है। हम इस बालक की हत्या नहीं करेंगे, ले जाओ इसे। परंतु याद रखना जब तक हमारा वचन पालते रहोगे तब तक हमारी दया के पात्र रहोगे अन्यथा नहीं, ले जाओ इसे ले जाओ।
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