निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 7 मई के पांचवें एपिसोड में कंस अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर गुप्त स्थान पर कैद कर देता है जिसका जनता को पता नहीं चलता। और उधर, अक्रूरजी नगर के गुप्त स्थान पर उग्रसेन के समर्थकों से चर्चा करते हैं और कहते हैं कि मैं और मित्रसेन आज ही कुमार वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी को रातोंरात यहां से निकालकर गोकुल में नंदराय के पास छोड़ आएंगे। कुमार वसुदेव और नंदरायजी एक ही दादा की संतान हैं।
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फिर अक्रूरजी की योजना के तहत सभी लोग रात के अंधेरे में दासियों के भेष में घड़ा लेकर जल भरने के बहाने यमुना की ओर चल देते हैं। मार्ग में कुछ सैनिक उन्हें रोकते हैं लेकिन वे उन्हें जल भरने का कहकर निकल जाते हैं। बाद में दो सैनिकों को उन पर शक होता है तो वे उनको खोजते हैं। रोहिणी और उसे ले जा रहे दो लोग एक झाड़ी के पीछे छिप जाते हैं। वे उन दोनों सैनिकों की हत्या करके वहां से भाग निकलते हैं। फिर वे एक नाव में नदी के उस पार चले जाते हैं। वहां रोहिणी को एक रथवान रथ में बिठाता है और कहता है कि नाव लेकर साथ-साथ गोकुल तक आओ और देखना कोई पीछा तो नहीं कर रहा है।
रथवान कोई और नहीं अक्रूरजी ही रहते हैं जो रोहिणी को लेकर नंदराय के द्वार पर पहुंचते हैं। नंदराय दरवाजा खोलते हैं और पूछते हैं कि कौन है? तब अक्रूजजी अपना परिचय देकर कहते हैं कि रोहिणी आई है। नंदराय के पीछे से यशोदा मैया कहती हैं क्या कहा, दीदी आई हैं?
फिर नंदराय और यशोदा रोहिणी के चरण स्पर्श करके उन्हें अंदर ले जाते हैं। अक्रूरजी अपने पीछे खड़े उन दोनों सहयोगियों को कहते हैं कि तुम दोनों थोड़ी दूर तक जाकर देखो कि किसी ने हमारा पीछा तो नहीं किया। दोनों चले जाते हैं और अक्रूरजी भीतर आकर दरवाजा बंद कर लेते हैं।
फिर नंदराजय को अक्रूरजी मथुरा की स्थिति बताते हैं और कहते हैं कि देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया गया है इसलिए मैं इन्हें यहां ले आया। नंदराय और यशोदा कहते हैं कि आपने अच्छा किया। दीदी यहां सुरक्षित रहेंगी और यहां सभी तरह की सुविधाएं हैं। ये उनका ही घर है।
फिर रोहिणी रोते हुए अपने दुख व्यक्त करती है। तब अक्रूरजी कहते हैं कि आप चिंता न करें भाभी। आपका स्वतंत्र और सुरक्षित रहना हम सभी के हित में है। आप शूरवंश के राजकुल की बहु हैं। आपके पिता महान पुरुवंश के राजा हैं। अत: आपको अब राजधर्म का पालन करना होगा भाभी। फिर अक्रूरजी कहते हैं, नंदरायजी अब भाभी की सुरक्षा का जिम्मा आप पर है। नंदराय कहते हैं कि आप बिल्कुल निश्चिंत रहें अक्रूरजी। गोकुल के सारे ग्वाले अपने प्राण न्योछावर कर देंगे।
उधर, कंस अपनी सभा में हंसते हुए बताता है कि देखा किस तरह किसी ने चूं तक नहीं किया। कई तो चूहों की भांति दूम दबाकर अपने अपने बिल में घुस गए और कुछ डर के मारे अपने स्त्री बच्चों को लेकर रातोंरात भाग गए। बाणासुर कहता है कि इतनी बड़ी सफलता पर तुम्हें हार्दिक बधाई है मित्र। महाराज जरासंध को इसकी सूचना भिजवाई की नहीं? तभी कंस की पत्नी कहती है हां भिजवा दी। तब बाणासुर कहता है कि अब तो तुम अपने राज्याभिषेक में उनके आने का निमंत्रण भी भेजो मित्र। यह सुनकर कंस गदगद हो जाता है और पूछता है कि इससे राज्य में जनता और वृष्णीवंशी सरदार विद्रोह नहीं करेंगे?
तब वाणासुर, भौमासर और चाणूर उन्हें समझाते हैं कि इससे मत डरो। अब कोई नहीं बोलेगा। सोचो मत और राज्याभिषेक का डंका बजा दो। तब धूपधाम से राज्याभिषेक की तैयारी होती है। दरबार सजता है। कंस राजदरबार में बताता है कि पिताश्री की आज्ञा से यह राज्याभिषेक हो रहा है।
तब एक दरबारी पूछता है कि ये निर्णय महाराज ने स्वयं लिया है। तब कंस वह चौंककर उत्तर देता है....हां। दूसरा दरबारी पूछता है क्यूं? तब कंस कहता है कि हमारे कुल की परंपरा अनुसार वृद्धावस्था में राजा संन्यास लेकर भक्ति में लीन हो जाते हैं और राज्य का भार अपने पुत्रों को सौंप देते हैं। हमारे पिता हमारे पूज्य राजपुरोहित के साथ अब एकांत में रहेंगे। मैंने उनकी कुटिया बनाकर वहां सब इंतजाम कर दिया है। हम उनका दर्शन दूर से ही करेंगे जिससे उनका ध्यान विचलित ना हो। इस पर एक दरबारी पूछता है कि क्या हम भी उनका दर्शन कर सकते हैं?
इस प्रश्न पर कंस चौंक जाता है। फिर वह कहता है कि हम जानते थे कि प्रजा उनके दर्शन के लिए ललायित होगी। इसलिए हमने राजमहल के बड़े फाटके के बाहर इसकी व्यवस्था कर दी है। दर्शनार्थी फाटक के बाहर से ही उनकी कुटिया के दर्शन कर सकते हैं। यदि उनकी इच्छा होगी तो वे कुटिया से ही आप सभी को आशीर्वाद देंगे।
तभी एक दरबारी तलवार निकालने का प्रयास करता है लेकिन दूसरा दरबारी ऐसा करने से रोक देता है। बाद में कंस कहता है कि अब हम आपकी आज्ञा से इस सिंहासन पर बैठने की आज्ञा चाहता हूं। आप सब मुझे आशीर्वाद दें। तभी कंस द्वारा नियुक्त राज्य का प्रधानमंत्री नारे लागता है। महाराज कंस की जय। सभी जय-जय कार करते हैं।
कंस के पास बाणासुर और भौमासुर पहुंचकर उसे आदरपूर्वक सिंहासन पर बिठाते हैं। तब कंस द्वारा नियुक्त एक दूसरे राजपुरोहित उनका राज्याभिषेक करते हैं। अंत में उसे राजमुकुट पहनाया जाता है। यह दृश्य देखकर उग्रसेन के निष्ठावान सरदार मन मसोककर रह जाते हैं।
दूसरी ओर रात्रि में घोड़े पर सवार होकर अक्रूरजी वहां पहुंचते हैं जहां राजा उग्रसेन के सभी समर्थक पहले से ही एकत्रित रहते हैं। अक्रूरजी बताते हैं कि अब कंस राजा बन गया है और अब वह किसी के भी साथ नरमी नहीं बरतेगा। अब हमें सबकुछ देखते हुए भी चुपचाप रहना होगा। यह समय विद्रोह का नहीं है। हमें अब भीतर ही भीतर अपने लोगों को संगठित करना होगा। हम सभी को एक साथ मथुरा नहीं छोड़ना है जिससे वह हमारी ओर से आश्वस्त हो जाए कि हम कुछ नहीं करने वाले हैं। मुझे तो बस एक बात की चिंता है। मुझे चिंता है राजकुमार वसुदेव और देवकी की। यदि हम सभी मथुरा से बाहर चले जाएंगे तो उनकी सुरक्षा कौन करेगा?
तब एक सरदार कहता है कि हम मथुरा छोड़ते वक्त क्यों न वसुदेव और देवकी को भी छुड़ा ले जाएं। दूसरा सरदार करता है कि इसके लिए एक योजना है। बंदीग्रह की एक दीवार यमुनाजी के जल में डूबी हुई है। अमावस्या की रात में हम उस दीवार में छेद कर सकते हैं। जिसमें से देवकी और वसुदेवजी जो निकालकर नदी के रास्ते से मथुरा से बाहर ले जाएंगे। यह सुनकर सभी कहते हैं वाह।
अक्रूरजी कहते हैं कि योजना तो सुंदर है लेकिन राजकुमार वसुदेव हमारी बात नहीं मानेंगे। तब एक सरदार कहता हैं कि कल ही वसुदेव के पास गुप्त रूप से मित्रसेन को भेजा जाए और उनसे अनुमति ली जाए। अक्रूरजी कहते हैं कि यदि राजकुमार वसुदेव हमारी बात मान लेंगे तो हमारी चिंता दूर हो जाएगी।
वसुदेव को उस पत्र से राज्य की स्थिति और अपनी पत्नी रोहिणी के गोकुल में चले जाने का पता चलता है। फिर मित्रसेन उन्हें यहां से निकलने की योजना बनाते हैं। लेकिन वसुदेव इसके लिए इनकार कर देते हैं। देवकी कहती है कि परंतु वह हमारे सभी पुत्रों को मार देगा। तब वसुदेव कहते हैं कि यदि उद्धारक को लाना है तो यह कष्ट सहना ही होगा।
उधर, श्रीकृष्ण से राधा कहती है कि धन्य है प्रभु आपके भक्त। जय श्रीकृष्णा।
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