Shri Krishna 20 July Episode 79 : रुक्मिणी का श्रीकृष्ण को पत्र भेजना और शिशुपाल का बारात लेकर आना

अनिरुद्ध जोशी

सोमवार, 20 जुलाई 2020 (22:10 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 20 जुलाई के 79वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 79 ) में रुक्मी अपने सेनापति को एक पत्र लिखकर देता है और कहता है कि जाओ शिशुपाल और जरासंध को विवाह का निमंत्रण दो और जरासंध को भी इसकी सूचना देकर कहो कि इस विवाह में श्रीकृष्ण और यादवों की सेना इसमें विघ्न डाल सकती तो आप सभी अपनी-अपनी सेना लेकर बारात में आएं। जरासंध यह पत्र प्राप्त करके कहता है कि हमें ये रिश्ता स्वीकार है शिशुपाल, हम अवश्य बारात लेकर जाएंगे और विदर्भ को अपनी सेना से घेर कर सुरक्षित कर लेंगे। अब आगे...
 
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रुक्मी कहता है मैं तुम्हें इसलिए भेज रहा हूं ताकि ये सूचना गुप्त रहे और शत्रु को तैयारी करने के मौका भी नहीं मिले जाओ। यह घटना श्रीकृष्ण अपनी मेरा से देख लेते हैं।...फिर उधर, जरासंध अपने दत्तक पुत्र शिशुपाल सहित अपने सभी साथियों के साथ बारात लेकर विदर्भ के के कुंडलपुर के लिए निकल जाता है।
 
उधर, रुक्मिणी यह सोचती है कि इस संकट के मार्ग से कैसे निकला जाए तब वह अपने दासी के साथ घोड़े पर सवार होकर रात्रि में गुप्त रूप से एक ऋषि के आश्रम जाती हैं। रुक्मिणी अपने गुरुदेव महर्षि शतानंद के पास जाकर श्रीकृष्ण के लिए एक पत्र देकर कहती हैं कि आपको श्रीकृष्ण के पास मेरा ये संदेश ले जाना है। मैं ये संदेश किसी दूत के हाथ भी भिजवा सकती थीं परंतु ये एक हल्की बात लगती। इसलिए आप जैसी महान विभूति के हाथ भिजवान चाहती हूं इसे ले जाएं गुरुदेव और कहें कि मेरा धर्म संकट में हैं। फिर रुक्मिणी श्रीकृष्‍ण से अपने लगाव की बात करती है और कहती है कि मैंने देवी गौरी को साक्षी मानकर मन, वचन और कर्म से उनको पति माना है। यदि वे मुझे स्वीकार नहीं करते हैं तो उनसे कहपा कि मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार करें। मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। इस तरह रुक्मिणी महर्षि ने अपनी सहायता करने की प्रार्थना और निवेदन करती हैं। गुरुदेव इसके लिए मान जाते हैं और कहते हैं तुम निश्चिंत रहो पुत्री मैं तुम्हारे धर्म की रक्षा करूंगा। मैं तुम्हारा संदेश श्रीकृष्ण के पास अवश्य ले जाऊंगा।
 
गुरुदेव शतानंद वह पत्र लेकर श्रीकृष्ण के पास चले जाते हैं। श्रीकृष्ण को वह पत्र देते हैं जिसे पढ़कर वे सोचने लगते हैं तो वे पूछते हैं प्रभु आप किस सोच में पड़ गए है। तब श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि इस पत्र में लिखा है कि शिशुपाल की बारात कुंडलपुर पहुंचने वाली है और हम अभी तक द्वारिका में ही हैं। यही सोच रहा हूं कि वहां पर ठीक समय पर पहुंचने के लिए मैं कौनसा वाहन प्रयोग करूं और दूसरी बात ये है कि राजकुमारी रुक्मिणी इस समय अपने अंतरंग महल में होगी सो उसे वहां से लाने के लिए। हमें विदर्भ नरेश के रंग महल तक जाना होगा। सोच रहा हूंकि कि एक राजा के अंतरंग महल पर आक्रमण करना क्या विरोचित कार्य होगा या इससे विरता पर लाज लग सकती है। तब गुरुदेव कहते हैं कि राजकुमारी तक पहुंचने का एक सरल उपाय भी है। तब श्रीकृष्ण पूछते हैं वो क्या? तब गुरुदेव कहते हैं कि राजकुल की परंपरा है कि विवाह से पूर्व राजकुमारी गौरी मंदिर जाती हैं और वह मंदिर नगर के बाहर है। जब वह गौरी पूजन के लिए आएगी तब वही समय होगा आपके वहां पहुंचने का। परंतु अब सोचने का समय नहीं है जो भी करना हो शीघ्र कीजिये। 
 
तब श्रीकृष्ण एक घंटा बजाते हैं तो वहां तीन सैनिक आते हैं तो वे उन्हें आदेश देते हैं कि जाओ हमारे सारथी दारुक को नींद से जगाओ और कहो कि तुरंत हमारा रथ तैयार कर दें और उनके पास जो सबसे तेज और शीघ्रगामी घोड़े हो उनको हमारे रथ में जोतें। हमें इसी समय रातोंरात प्रस्थान करना है। तीनों सैनिक आज्ञा पाकर चले जाते हैं।
 
फिर श्रीकृष्ण एक रथ पर सवार होकर एक ऋषि के साथ विदर्भ के लिए निकल पड़ते हैं। 
 
उधर, बलराम कहते हैं- वह रातोंरात अकेले ही रथ में सवार होकर द्वारिका से बाहर चला गया और मुझे किसी ने बताया तक नहीं। यह सुनकर महामंत्री गर्दन नीचे झुका लेता है। बलराम क्रोधित होकर कहता है जब उन्होंने अपने सारथी को बुला भेजा था तभी उनकी सूचना मिलना चाहिए थी मुझे। आखिर उनकी सुरक्षा का दायित्व मुझ पर है। तुम लोगों ने उन्हें अकेले जाने कैसे दिया? कोई सुरक्षा सैनिक या कोई घुड़ सवार भी नहीं था उनके साथ। और कोई था उनके साथ रथ में? 
 
इस पर एक सैनिक कहता है- जी रथ जब नगर के बाहर निकल तो एक पुरोहित थे उनके साथ। यह सुनकर बलराम कहते हैं कौन पुराहित, कहां से आया था? वह उनसे महल में मिला था या बाहर? यह सुनकर सैनिक कहता है जी हम नहीं जानते।.. तब बलराम कहते हैं उनके कक्ष में चलते हैं। उनके सेवकों को अवश्य पता होगा कि रात उनसे कोई मिलने आया था या नहीं।
 
बलराम कक्ष में जाते हैं तो उनके सिंहासन पर एक पत्र रखा होता है जिसे वे पढ़ते हैं और कहते हैं हूं तो ये बात है। क्या समझता है वो, वो उसे अकेले ही ले आएगा? इस समय वहां पर जरासंध, शिशुपाल, शल्यराज, चेदि नरेश और स्वयं रुक्मी की सेनाएं होंगी। वो समय उसे आसानी से विदर्भ राजकुमारी का हरण करने नहीं देंगे।...महामंत्री समस्त सेना नायकों को तत्काल एकत्रित करो। चुटकी बजाने में सारी सेना तैयार हो जाए और कुंदनपुर की ओर कूच करें। जब तक हम श्रीकृष्ण के पास नहीं पहुंच जाते तब तक विश्राम करना मना है।...फिर बलरामजी अक्रूरजी के साथ अपनी सेना के साथ निकल पड़ते हैं। 
 
उधर, बारात राजमहल में प्रवेश कर जाती है। शिशुपाल और जरासंध आदि का स्वागत किया जाता है। उधर, रुक्मिणी की दासी आकर रुक्मिणी से कहती हैं कि बारात राजमहल में प्रवेश कर चुकी है। रुक्मिणी कहती हैं गुरुदेव का कुछ संदेशा आया क्या? इस पर दासी कहती हैं नहीं, महारानीजी ने कहा है कि आपका श्रृंगार आरंभ किया जाए।
 
महर्षि शतानंद और श्रीकृष्‍ण रथ पर सवार होकर जा रहे होते हैं तभी उनके पीछे बलराम और यादव सेना पहुंच जाती हैं। इस पर ऋषि कहते हैं भगवन संभवत: कोई शत्रु पीछे आ रहा है तब श्रीकृष्ण हंसते हुए कहते हैं नहीं दाऊ भैया है उन्हें मेरी सुरक्षा की बहुत चिंता लगी रहती हैं ना।
 
उधर, शिशुपाल जब बारात लेकर विदर्भ के महल में पहुंच जाता है तो रुक्मिणी का श्रृंगार किया जाता है। रुक्मिणी के महल के एक द्वार पर दासी पहरेदारों को देखती है और फिर रुक्मिणी की ओर संकेत से कहती हैं कि गुरुदेव अभी तक नहीं आए। ऐसा दो तीन बार होता है।
 
महल में बारात के रुकने के स्थान पर शिशुपाल और जरासंध अपने शल्य आदि साथियों के संग शरबत आदि पीकर आनंद लेते हैं। बारातियों का जोरदार स्वागत किया जाता है। भीष्मक पूछता है जरासंध से बहुत लंबी यात्रा से आए हैं कोई कष्ट तो नहीं हुआ रास्ते में? जरासंध कहता है समधी जी बेटे का विवाह करने जा रहा हूं यह सोचकर मन इतना प्रसन्न था कि कब इतना लंबा रास्ता कट गया पता ही नहीं चला। यह सुनकर सभी हंसने लगते हैं।
 
इधर, रुक्मिणी की बेचैनी बढ़ती जाती है वह द्वार पर खड़ी दासी की ओर देखती हैं तो दासी गर्दन हिलाकर मना कर देती हैं।...फेरे के लिए यज्ञ वेदी की तैयारी करते हुए बताते हैं। रुक्मिणी फिर से दासी की ओर देखती है तो दासी निराश होकर गर्दन हिलाकर मना कर देती हैं कि गुरुदेव अभी तक नहीं आए हैं।
 
उधर, दुल्हा बने शिशुपाल से रुक्मी मिलकर कहता है कि तुम्हारा स्वागत है मित्र। कितने वर्षों से मेरे मन में ये चाहत थी कि मेरी बहन का विवाह तुम जैसे पराक्रमी राजकुमार के साथ हो, आज वह भी पुरी हो गई। यह सुनकर शिशुपाल कहता है कि पुरी हुई नहीं है मित्र यूं कहो की पूरी होने वाली है। यह सुनकर रुक्मी कहता है शिशुपाल तुम्हारी बात में संदेह झलकर रहा है। क्या तुम्हें पूर्ण विश्वास नहीं कि मैंने जो वचन दिया है उसे मैं पूरी तरह निभाऊंगा?
 
इस पर शिशुपाल कहता है नहीं मित्र नहीं, मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है परंतु ना जाने क्यूं आज बार-बार मेरे बाएं अंग फड़कर रहे हैं। इसलिए किसी अनहोनी की आशंका रह-रह कर मेरे मन में उठ रही है। यह सुनकर रुक्मी कहता है कि ऐसे शकुन और अपशकुन देखना वीर पुरुष का स्वभाव नहीं होता है। जिन्हें अपने भुजबल पर विश्वास हो वे ऐसी बातों से विचलित नहीं होते और तुम इतनी लंबी यात्रा से यहां तक पहुंच गए हो तो मेरी तो सारी चिंताएं दूर हो गई है। अब तो ब्रह्मा भी इस विवाह में विघ्न नहीं डाल सकते।
 
तभी वहां पर गुरुदेव शतानंद पथार जाते हैं। सभी उनको प्रणाम करते हैं। गुरुदेव फिर सभी को आशीर्वाद देने की मुद्रा में चारों ओर गुप्तचर की नजरों से देखते हैं तभी उन्हें रुक्मिणी के महल के द्वार पर खड़ी एक दासी नजर आती है वे उसे संकेत से हाथ और गर्दन हिलाते हैं जैसे आशीर्वाद दे दे रहे हों। दासी यह देखकर प्रसन्न हो जाती है।जय श्रीकृष्‍ण। 
 
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