गीता के अलावा भी हैं ये 12 गीताएं

महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच जो संवाद हुआ था उसे भगवद्गीता कहा जाता है। श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से वेद और उपनिषदों के ज्ञान को अनूठी शैली में सार रूप में प्रस्तुत किया था। इस ज्ञान को गीता ज्ञान भी कहा जाता है। परंतु गीता के इस ज्ञान के अलावा भी प्रचलित हैं और भी कई गीताएं। जरूरी नहीं है कि गीता की तरह के अन्य ज्ञान में गीता शब्द का ही उपयोग किया गया हो। उनमें से कुछ तो महाभारत में ही है और कुछ महाभारत के इतन अन्य ग्रंथों में हमें मिलती है। आओ उन्हीं में से जानते हैं 10 के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
1. संजय और शिवजी की गीता : उल्लेखनीय है कि गीता के ज्ञान को संजय की दृष्टि से सुनना या भगवान शिवजी की दृष्‍टि सुनना बहुत ही अलग है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के मुख से गीता को अर्जुन के बाद संजय ने सुनी थी। इस दौरान संजय न केवल गीता के ज्ञान को सुना रहे थे बल्कि वे युद्ध की स्थिति का भी वर्णन कर रहे थे। उसी तरह भगवान शंकर जब गीता सुन रहे थे तो उन दौरान माता पार्वती के मन में इस ज्ञान को लेकर भी कई के प्रश्न उठ रहे थे जिस तरह की अर्जुन के मन में उठ रहे थे। अर्जुन के प्रश्नों का समाधान श्रीकृष्ण ने अपने तरीके से किया परंतु माता पार्वती के प्रश्नों का समाधन भगवान शंकर ने अपने तरीके से करके एक अद्भुत ही गीता की रचना कर दी। इस तरह संजय और शिव से लेकर अब तक कई तरह से गीता को लोगों ने पढ़ा और समझा।
 
 
2. अनु गीता : यह गीता भी श्रीकृष्ण द्वार अर्जुन को दिया गया वह ज्ञान है तो युद्ध के बाद दिया गया था। यह ज्ञान उस वक्त दिया गया था जब पांडव हस्तिनापुर में राज कर रहे थे।
 
2. यक्ष प्रश्न : यक्ष और युद्धिष्ठिर के बीच हुए संवाद को यक्ष प्रश्न कहा जाता है। यह भी गीता की ही तरह विख्‍यात है। भारतीय इतिहास ग्रंथ महाभारत में 'यक्ष-युधिष्ठिर संवाद' नाम से एक बहु चर्चित प्रकरण है। संवाद का विस्तृत वर्णन वनपर्व के अध्याय 312 एवं 313 में दिया गया है। यक्ष ने युद्धिष्ठिर से लगभग 124 सवाल किए थे। यक्ष ने सवालों की झड़ी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली। अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे और उत्तरों से संतुष्ट हुए। अंत में यक्ष ने चार प्रश्न युधिष्ठिर के समक्ष रखे जिनका उत्तर देने के बाद ही उन्होंने मृत पांडवों (अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) को जिंदा कर दिया था। यह सवाल जीवन, संसार, सृष्टि, ईश्‍वर, प्रकृति, नीति, ज्ञान, धर्म, स्त्री, बुराई आदि अनेकों विषयों के संबंधित थे।
 
3. विदुर नीति : 'महाभारत' की कथा के महत्वपूर्ण पात्र विदुर को कौरव-वंश की गाथा में विशेष स्थान प्राप्त है। विदुर हस्तिनापुर राज्‍य के शीर्ष स्‍तंभों में से एक अत्‍यंत नीतिपूर्ण, न्यायोचित सलाह देने वाले माने गए हैं। उनके और धृतराष्ट्र के बीच जो भी संवाद हुए हैं वे भी बहुत ही महत्वपूर्ण है।
 
4. भीष्म नीति : भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद हमें भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है, जिसे भीष्म नीति के नाम से जाना जाता है। इसमें केवल 2 अध्याय (167 और 168) हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, युधिष्ठिर की भीष्म से बात, भीष्म का प्राणत्याग, युधिष्ठिर द्वारा उनका अंतिम संस्कार किए जाने का वर्णन है।
 
5. पराशर गीता : महाभारत के लेखक वेद व्यास के पिता ऋषि पराशर हैं। महाभारत के शंति पर्व में भीष्म और युधिष्ठिर के संवाद में युधिष्ठिर को भीष्म राजा जनक और पराशर के बीच हुए वार्तालाप को प्रकट करते हैं। इस वर्तालाप को पराशर गीता नाम से जाना जाता है। इसमें धर्म-कर्म संबंधी ज्ञान की बाते हैं। दरअसल, शांति पर्व में सभी तरह के दर्शन और धर्म विषयक प्रश्नों के उत्तर का विस्तृत वर्णन मिलता है।
 
6. व्याथ गीता : इस गीता में मार्केण्डेय ऋषि युधिष्ठिर को ज्ञान देते हैं। यह गीता में महाभारत का हिस्सा है।
 
7. उद्धव गीता : उद्धव गीता भागवत पुराण का हिस्सा है। यह ज्ञान श्रीकृष्‍ण अपने सौतेले भाई उद्धव को देते हैं। इसे हंस गीता भी कहा जाता है। इसमें लगभग 1000 से अधिक छंद है।
 
8. गुरु गीता : यह महाभारत के रचयिता वेद व्यास द्वारा लिखे गए स्कंद पुराण का हिस्सा है। इसमें शिवजी माता पार्वती को गुरु का अर्थ और महत्व समझाते हैं। 
 
9. गणेश गीता : यह गीता गणेश पुराण के क्रीड़ा खंड का हिस्सा है। इस गीता में भगवान गणेशजी गजानन का रूप धारण करके वरेण्य नामक राजा को ज्ञान देते हैं।
 
10. अष्टावक्र गीता : यह माता सीता के पिता राजा जनक और ऋषि अष्‍टावक्र के बीच हुए संवाद पर आधारित है। अष्टावक्र ऋषि भगवान राम के काल में हुए थे।
 
11. राम गीता : जब लक्ष्मणजी अयोध्या से माता सीता को वाल्मिकी आश्रम के वन में छोड़कर आते हैं तो वे बहुत दुखी रहते हैं। तब श्रीराम जी उन्हें सांत्वना देते हैं। श्रीराम के इन्हीं प्रवचनों को राम गीता कहा गया। 
 
12. अवधूत गीता : यह गीता भगवान दत्तात्रेय के प्रवचन के रूप में संकलित है। इसमें नाथ परंपरा के प्रथम गुरु सत्य को गाकर समझाते हैं। 

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