कर्म और आचरण : कर्मों में कुशलता लाना सहज योग है। भगवान श्रीकृष्ण ने 20 आचरणों का वर्णन किया है जिसका पालन करके कोई भी मनुष्य जीवन में पूर्ण सुख और जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकता है। 20 आचरणों को पढ़ने के लिए गीता पढ़ें। भाग्यवादी नहीं कर्मवादी बनें। यहां प्रस्तुत है 20 आचरणों के नाम अर्थ सहित।
ये है 20 आचरण :
1. अमानित्वं: अर्थात नम्रता।
2. अदम्भितम: अर्थात श्रेष्ठता का अभिमान न रखना।
3. अहिंसा: अर्थात किसी जीव को पीड़ा न देना, 4. क्षान्ति: अर्थात क्षमाभाव।
5. आर्जव: अर्थात मन, वाणी एवं व्यव्हार में सरलता।
6. आचार्योपासना: अर्थात सच्चे गुरु अथवा आचार्य का आदर एवं निस्वार्थ सेवा।
7. शौच: अर्थात आतंरिक एवं बाह्य शुद्धता।
8. स्थैर्य: अर्थात धर्म के मार्ग में सदा स्थिर रहना।
9. आत्मविनिग्रह: अर्थात इन्द्रियों वश में करके अंतःकरण कों शुद्ध करना।
10. वैराग्य इन्द्रियार्थ: अर्थात लोक परलोक के सम्पूर्ण भोगों में आसक्ति न रखना।
11. अहंकारहीनता: झूठे भौतिक उपलब्धियों का अहंकार न रखना।
12. दुःखदोषानुदर्शनम्: अर्थात जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दुःख में दोषारोपण न करना।
13. असक्ति: अर्थात सभी मनुष्यों से समान भाव रखना।
14. अनभिष्वङ्गश: अर्थात सांसारिक रिश्तों एवं पदार्थों से मोह न रखना।
15. सम चितः अर्थात सुख-दुःख, लाभ-हानि में समान भाव रखना।
16. अव्यभिचारिणी भक्ति : अर्थात परमात्मा में अटूट भक्ति रखना एवं सभी जीवों में ब्रम्ह के दर्शन करना।
17. विविक्तदेशसेवित्वम: अर्थात देश के प्रति समर्पण एवं त्याग का भाव रखना।
18. अरतिर्जनसंसदि: अर्थात निरर्थक वार्तालाप अथवा विषयों में लिप्त न होना।
19. अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं : अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना।
20. आत्मतत्व: अर्थात आत्मा का ज्ञान होना, यह जानना की शरीर के अंदर स्थित मैं आत्मा हूं शरीर नहीं।