उन्होंने इसी समयावधि में गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र और घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु के बाद गुरु तेग बहादुर जी को नौवां गुरु बनाया गया था। रणनीति, आचार-नीति, राजनीति, कूटनीति, शस्त्र, शास्त्र, संघर्ष, वैराग्य और त्याग आदि कई संयोग एक ही ज्योत में समाने वाले मध्ययुगीन साहित्य व इतिहास में बिरला नाम रखने वाले गुरु तेग बहादुर सिंह में निष्ठा, समता, करुणा, प्रेम, सहानुभूति, त्याग और बलिदान जैसे विशेष गुण विद्यमान थे। उन्होंने अपने जीवन काल में 15 रागों में 116 शबद यानी श्लोकों सहित उनकी रचित बाणी आज भी श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं।