लाहौर में एक बहुत अनुभवी चिकित्सक रहता था। वह श्री गुरु गोविंदसिंहजी के दर्शन करने आनंदपुर आया। गुरुजी ने उसे गुरुमंत्र दिया- जाओ, दुखियों की सेवा करो, सुख पाओगे।
ध्यान छूटा, पाठ छूटा और सामने गुरुजी थे। दोनों में से किसको छोडूं? इसका निर्णय करने में उसने गुरुजी के पूर्व कथन पर विचार किया- 'दुखियों की सेवा करना सबसे पहला काम है। इस सेवा का ही फल है कि आज गुरुजी मेरे पास आए हैं।'