नई दिल्ली। घरेलू बाजार में पिछले 6 महीने के दौरान इस्पात की कीमतें करीब 40 प्रतिशत गिरकर 57,000 रुपए प्रति टन पर आ गई। लौह और इस्पात उद्योग से जुड़ी मूल्य समेत अन्य जानकारी देने वाली कंपनी स्टीलमिंट ने कहा कि 15 फीसदी निर्यात शुल्क लगाने की वजह से निर्यात में नरमी से कीमतों में यह गिरावट आई है।
इस साल की शुरुआत में हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की कीमतों में बढ़ोतरी दिखना शुरू हो गई थी। एचआरसी की बढ़ती कीमतें उपयोगकर्ता उद्योगों के लिए चिंता का विषय था, क्योंकि इस्पात की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर रियल एस्टेट और आवास, बुनियादी ढांचे तथा निर्माण, वाहन और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे उद्योगों पर पड़ता है।
स्टीलमिंट के अनुसार घरेलू बाजार में इस्पात की कीमतें अप्रैल, 2022 में 78,800 रुपए प्रति टन पर पहुंच गई थी वहीं 18 प्रतिशत जीएसटी के बाद कीमत लगभग 93,000 रुपए प्रति टन हो गई थी। अनुसंधान कंपनी के आंकड़ों के अनुसार कीमतें अप्रैल के अंत से गिरनी शुरू हुई और जून के अंत तक घटकर 60,200 रुपए प्रति टन पर आ गई। जुलाई और अगस्त में भी कीमतों में गिरावट जारी रही और सितंबर के मध्य तक यह घटकर 57,000 रुपए प्रति टन पर आ गई। हालांकि सभी कीमतों में 18 फीसदी जीएसटी शामिल नहीं है।
स्टीलमिंट ने इस्पात की कीमतों में गिरावट के मुख्य कारण इस्पात उत्पादों पर सरकारी कर, विदेशों से मांग में कमी, उच्च मुद्रास्फीति और ऊर्जा लागत को बताया है। इसने परिदृश्य के बारे में कहा कि घरेलू एचआरसी की कीमतें अगली तिमाही में सीमित दायरे में बनी रहेंगी। चूंकि इस्पात का निर्यात सामान्य से कम रहने और इन्वेंट्री दबाव बने रहने की भी संभावना है। ऐसे में मिलों के अगले 2 महीनों में कीमतों में वृद्धि की संभावना नहीं है।
सरकार ने 21 मई को लौह अयस्क के निर्यात पर 50 प्रतिशत तक और कुछ इस्पात मध्यवर्तियों पर 15 प्रतिशत तक शुल्क बढ़ा दिया। इस कदम का उद्देश्य घरेलू निर्माताओं के लिए इन कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाना था।