अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान दुनिया को यह जताने की कोशिश कर रहा है कि उसकी नीतियां बदल गई हैं। भले ही तालिबान नेता यह कहने और जताने में लगे हों कि वे बदल गए हैं और उनसे किसी को घबराने या फिर डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन उन पर भरोसा करने का कोई कारण नहीं।
अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को तालिबान गोलियों से दबा रहा है। महिलाओं को अधिकारों के लिए आवाज उठाने पर तालिबानी डंडे पड़ रहे हैं। अमेरिका के मोस्ट वॉन्टेड टेरेरिस्ट लिस्ट में शामिल सिराजुद्दीन हक्कानी को होम मिनिस्ट्री दी गई है, तालिबान के आंतक भरे मंसूबों को दिखाता है। सबसे बड़ा सवाल तो यह कि तालिबान की इस 'आतंकी' सरकार को दुनिया के कितने देश अपनी स्वीकार्यता देते हैं?
तालिबान सरकार के सामने भी अफगानिस्तान को लेकर कई चुनौतियां हैं जिनमें सबसे पहली है देश को पटरी पर लाना। सरकार चलाने के लिए तालिबान को हर क्षेत्र के काबिल लोगों की आवश्यकता होगी। फिर चाहे वो नौकरशाह हों, एक्सपर्ट्स, डॉक्टर्स, कानून के जानकार या फिर कुछ और। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि तालिबान ऐसे अनुभवी लोग कहां से लाता है?
तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। महिलाएं अपने अधिकारों की मांग को लेकर सड़क पर हैं। अपनी पुरानी छवि को बदलना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना पाना भी तालिबान के लिए चुनौती है। अपनी अंतरिम सरकार में तालिबान ने किसी महिला को जगह नहीं दी है। इससे यह साबित होता है कि महिलाओं पर पाबंदियों को लेकर उसकी रीति-नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।