बजट 2010-11 में सर्विस टैक्स एक्ट में सर्विस का दायरा बढ़ाते हुए अस्पताल द्वारा मरीजों के बिल का पेमेंट सीधे हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी/नियोक्ता से प्राप्त होने पर उसे सर्विस के दायरे में शामिल कर लिया गया है। यदि संसद में यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो अस्पतालों को उक्त सर्विस से प्राप्त राशि पर निर्धारित दर (वर्तमान दर 10.3 प्रश) से सर्विस टैक्स अदा करना होगा। इसका सीधा भार मरीजों पर पड़ेगा।
वर्तमान में भी हेल्थ इंश्योरेंस के तहत ऐसे कई खर्चे हैं, जिनका भुगतान इंश्योरेंस कंपनी नहीं करती है। सामान्यतः इन खर्चों में नर्सिंग केयर चार्जेस, रजिस्ट्रेशन शुल्क आदि खर्चे होते हैं, जो कि कुल खर्चों का लगभग 10 से 20 प्रश होते हैं। सरकार के इस कदम से मरीजों को उक्त शुल्क के अलावा 10.3 प्रश अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा।
गौरतलब है कि भारत में हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कैशलेस सुविधा गत कई वर्षों से चली आ रही है। इसके बावजूद यह व्यवस्था पूर्ण रूप से कामयाब नहीं हो पाई है, जिसका मुख्य कारण अस्पतालों द्वारा निर्धारित राशि से अधिक राशि के बिल बनाया जाना रहा है। अस्पतालों के ऐसे कृत्य से इंश्योरेंस कंपनियों पर भार बढ़ा है। इसके कारण इंश्योरेंस कंपनियों को मजबूरन कई अस्पतालों से इस सुविधा का टाइ-अप खत्म करना पड़ा है। अब ऐसे अस्पतालों में मरीजों को पहले स्वयं बिल का भुगतान करना होता है एवं बाद में इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम की राशि प्राप्त कर पाते हैं। इस प्रक्रिया में लगभग 30-40 दिन तक का समय लग जाता है।
बढ़ी हुई मेडिकल कॉस्ट एवं महँगाई के इस दौर में आम जनता के लिए हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कैशलेस सुविधा बहुत ही आवश्यक है। स्वास्थ्य हमारी मूल एवं सर्वोच्च प्राथमिकताओं में आता है एवं स्वास्थ्य के लिए यदि खर्चा करना पड़े तो व्यक्ति कहीं से भी रुपयों की जुगाड़ करके अपना अथवा अपने परिजनों का इलाज करवाता है। कई बार लोगों को मजबूरन 2.5 प्रश से 3 प्रश प्रतिमाह के साहूकारी ब्याज पर भी पैसा लेकर इलाज करना पड़ता है एवं कई लोग तो पैसे के अभाव में इलाज कराने से भी वंचित रह जाते हैं। ऐसे में सरकार का यह कदम कहाँ तक उचित है?