मास्टर या रिंग मास्टर

सरकस में रिंग मास्टर होता है और बड़े स्कूल यानी हायर सेकंडरी में पीटी मास्टर। हाल ही में समाचार-पत्रों में 'सचित्र समाचार' छपा जिसे देख-पढ़कर सबने दाँतों तले उंगलियां दबा ली। उंगलियां-हाथों को दबाते हुए मोटरसाइकल गुजारना पीटी मास्टर का नया करतब था।

बच्चों को रैली तक में ले जाने पर प्रतिबंध है। इधर विद्यालय परिसर में ही बहादुरी भरा करतब दिखा डाला। बहादुरी बच्चों की भी कम नहीं आंकी जानी चाहिए। आज मोटरसाइकल गुजरी है। कल से कार-जीप गुजारेंगे। इन कारगुजारियों को सरकार देख रही है। क्या पता इन्हें राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त करना हो!

पीटी मास्टर को कोई प्रशंसा नहीं मिलती, शायद उसी के वशीभूत यह साहसिक करतब कर दिखाया हो। कोई अर्जुन या एकलव्य कैसे बोलता? जबकि विज्ञान, गणित, इतिहास, भूगोल के अलावा हिन्दी, अंगरेजी, संस्कृत के भाषाविद भी देखते रहे। संस्था प्राचार्य तो वहाँ होंगे नहीं। उन्हें मीटिंग, बजट, बैठक, निरीक्षण से फुरसत कब मिलती है? स्कूल का काम इंचार्ज ही करता रहता है। वह पीरियड की व्यवस्था में ही मगन रहता है। चिड़िया बैठा-बैठा कागज को आगे बढ़ाता रहता है।

इधर पीछे लंबे-चौड़े मैदान में पीटी मास्टर हाथों पर से मोटरसाइकल गुजारता है या साइकल, मोटर कार सरकार जाने। इंचार्ज ने कोई ठेका तो लिया नहीं है। अब उस कारनामे की जांच स्वयं जिला शिक्षाधिकारी या कलेक्टर महोदय करेंगे। जांच के क्या परिणाम होंगे, यह सब जानते हैं। बच्चे साफ कह देंगे कि ऐसा नहीं हुआ।

मोटरसाइकल हाथों पर नहीं चलाई गई। इसमें किसी फोटोग्राफी मिक्सिंग का हाथ है। पीटी मास्टर बच्चों को सबसे प्रिय हैं।

मोटरसाइकल हाथों पर क्या चढ़ाएंगे, वे तो मोटरसाइकल पर बैठाकर घुमाते हैं। वे कभी-कभी मोटरसाइकल लाते हैं। वैसे वे साइकल से आते-जाते हैं। सबसे पहले आते हैं और बाद में जाते हैं। पढ़ाई के दौरान वे क्यों दिखें? साइकल पर प्रदूषणहीनता का संदेश देते हैं। पौधे लगाते हैं। गीत-संगीत, नाटक में सहयोग करते हैं। अब वे जुल्म कैसे करेंगे? बाहर खेलकूद टूर में जाते हैं।

बयान सुनकर उस प्रेस रिपोर्टर को तलब किया जाएगा। वह लंबी छुट्टी पर चला जाएगा। जाते-जाते माफीनामा दे जाएगा कि हूबहू पीटी मास्टर जैसे व्यक्ति को जानकर गलती हो गई। आगे से त्रुटि नहीं होगी। बस यही होना है।

फिर यह किया क्यों गया? महज सनसनी के लिए। अखबार की संख्या बढ़ाने के लिए। सरकारी स्कूलों की पोल खोलने के लिए। मैं कोई वकील नहीं हूं कि फैसला कर लिया जाए। मामूली व्यंग्यकार के नाते सही या गलत हो सकता हूं। सही में प्रतिष्ठा मिलेगी। गलत तक याद कौन रखेगा?

देश में बड़े कांड हो रहे हैं। किसे जाकर सजा मिली? याददाश्त हरेक की कमजोर है। कोई पहाड़ नहीं टूटता। भूस्खलन होता रहता है। बाकी सब खैरियत से हैं। चलो, एक मजाक खूब खिंचा। अब छोड़िए भी इसका दामन।

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