शिक्षक दिवस विशेष संस्मरण : आदर-सम्मान की भावना

स्कूली जीवन की अनगिनत यादों को आज जब याद करते हैं, तो बचपन की यादों में खोकर मुस्कान चेहरे पर आ जाती है। गुरु अपने ज्ञान और अनुभव को सभी विधार्थियों में बांटते थे तो हम सभी ध्यान पूर्वक पढ़ते और समझते थे।



गुरु जब कक्षा में आते,  तो सब खड़े होकर उनका अभिवादन करते और जब परिवार के साथ बाजार में जाते और रास्ते में गुरु मिल जाए तो पापा-मम्मी के संग गुरु को नमस्कार करते। यही आदर -सम्मान की भावना गुरु से हमसे स्कूल जीवन में सीखी थी, जो आज हमारे दिल में बड़े होने एवं बड़े पद पर विधमान होने पर सजीव है।

चुनाव का वाक्या याद आता है, जब मुझे पीठासीन अधिकारी पद और मेरे गुरु जिन्होंने मुझे पढ़ाया था, उन्हें मेरे अंडर में पोलिंग अधिकारी नंबर 1 पर नियुक्त किया गया। चुनाव में और भी अधिकारी मेरी चुनाव संबंधी सहायता हेतु मेरे साथ थे । चुनाव सामग्री  पद के हिसाब से संभालने  का दायित्व था और  हम सभी अपनी -अपनी सभी सामग्री लेकर बस की और चलने लगे। मैंने देखा की ये तो अपने गुरूजी हैं जिन्होंने मुझे पढ़ाया था। वे बुजुर्ग हो चुके थे और उनसे उनकी सभी सामग्री और स्वयं का भारी बेग भी उठाए नहीं जा रहा था।

मैंने गुरूजी से कहा - "सर यह सब आप मुझे दीजिए में लेकर चलता हूं "। गुरूजी ने कहा कि -" आप तो हमारे अधिकारी हैं आप से कैसे उठवा सकता हूं " मैंने कहा आपने तो हमें शिक्षा के साथ सिखाया था  "आदर सम्मान का पाठ " आप की शिक्षा के बदौलत ही मैं आज बड़े पद पर नौकरी कर रहा हूं, यह क्या कम है? मैंने मेरे गुरु की चुनावी सामग्री और बैग उठा लिए।

गुरु की आंखों में आंसू छलक पड़े और मेरे मन में साहस का हौंसला भर गया।आदरणीय मेरे गुरु आज भी मेरे साथ हैं, जिनसे ज्ञान और अनुभव अब भी प्राप्त करता रहूंगा। यही मेरी गुरु सेवा और सहायता अच्छे कार्य हेतु सदैव जीवन भर मेरे साथ रहेगी व प्रेरणा देती रहेगी ।

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