Telangana Assembly Elections 2023: मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना पर पकड़ अब ढीली पड़ती नजर आ रही है। तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिलवाने में अहम भूमिका निभाने वाले और 2 बार के मुख्यमंत्री राव की इस विधानसभा चुनाव में राह आसान नहीं लग रही है। 2018 के चुनाव में 5 सीटों पर सिमटी कांग्रेस इस बार मुकाबले में पूरी ताकत के साथ खड़ी दिखाई दे रही है। पिछले कुछ सर्वेक्षणों और विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस इस बार राज्य की सत्ता पर काबिज भी हो सकती है।
तेलंगाना की 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए 30 नवंबर को मतदान होना है, इसलिए चुनावी माहौल ने अभी गति नहीं पकड़ी है। लेकिन, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अमित शाह जैसे बड़े नेता राज्य का दौरा कर चुके हैं। जिस तरह से कांग्रेस और बीआरएस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, उससे लग रहा है कि मुख्य मुकाबला इन्हीं 2 पार्टियों के बीच है। हालांकि भाजपा भी राज्य की कमान केन्द्रीय मंत्री किशन रेड्डी को सौंपकर पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतर रही है।
हाल ही में राहुल गांधी ने बीआरएस को भाजपा की 'बी-टीम' कहा था, जवाब में बीआरएस नेता केटी रामाराव ने कांग्रेस को सी-टीम यानी 'चोर टीम' तक कह दिया था। प्रियंका द्वारा परिवारवाद का मुद्दा उठाए जाने पर राव की बेटी कविता ने यह कहकर निशाना साधा कि मोतीलाल नेहरू की पर-प्रपौत्री, जवाहर लाल नेहरू की प्रपौत्री, इंदिरा गांधी की पोती और राजीव गांधी की बेटी प्रियंका गांधी परिवार की राजनीति के बारे में बात कर रही हैं। यह सबसे मजेदार बात है। वहीं, भाजपा ने यह कहकर दोनों प्रमुख दलों पर निशाना साधा कि कांग्रेस को वोट देने का अर्थ बीआरएस को वोट देना है।
विधानसभा चुनाव 2018 की दलीय स्थिति
बीआरएस
98
एआईएमआईएम
07
कांग्रेस
05
भाजपा
03
अन्य
03
तेलंगाना के प्रमुख हिन्दी अखबार स्वतंत्र वार्ता हैदराबाद के संपादक धीरेन्द्र प्रताप सिंह वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि कहते हैं पिछले चुनाव में बीआरएस का एकतरफा प्रभाव दिखाई दिया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। बीआरएस और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है। परिणाम कुछ भी हो सकता है। कांग्रेस बीआरएस को पटखनी देकर राज्य में सरकार बना भी सकती है। हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी भी होगी क्योंकि मतदान में अभी एक महीने से भी ज्यादा का वक्त है। इस बीच कई समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे भी।
सिंह कहते हैं कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। वह एक बार फिर चौथे स्थान पर सिमट सकती है। भाजपा ने पिछले चुनाव में 3 सीटें जीती थीं। यदि कांग्रेस मजबूत होती है और सरकार बीआरएस की बनती है तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है और उसकी सीटों की संख्या 10 से 15 तक पहुंच सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार सिंह कहते हैं कि भाजपा का सबसे माइनस पॉइंट यह है कि उसका ग्रामीण इलाकों और तेलुगू भाषियों के बीच कोई प्रभाव नहीं है, जबकि बीआरएस और कांग्रेस की इस वर्ग में अच्छी पैठ है। शहरों में जरूर मारवाड़ी व्यापारी और उत्तर भारतीय लोगों का झुकाव भाजपा की तरफ है। वहीं, मुस्लिम इलाकों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का अच्छा प्रभाव है साथ ही उसका सत्तारूढ़ बीआरएस के साथ गठबंधन भी है। इसका दोनों ही दलों को फायदा मिलता है। 2018 के चुनाव में एआईएमआईएम को 7 सीटें मिली थीं।
हाल ही में एवीपी-सी वोटर के सर्वे में भी कांग्रेस और बीआरएस के बीच कड़ी टक्कर बताई गई है। इस ओपिनियन पोल के मुताबिक सत्तारूढ़ बीआरएस 43 से 55 सीटें मिल सकती है, जबकि कांग्रेस 48 से 60 सीटें जीत सकती हैं। भाजपा के खाते में 5 से 11 सीटें जा सकती हैं, जबकि अन्य 5 से 11 सीटें जीत सकते हैं।
इस पोल के मुताबिक बीआरएस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है, जबकि कांग्रेस और भाजपा को फायदा होता दिखाई दे रहा है। हालांकि अनुमान और अटकलें मतदान के दिन तक जारी रहेंगी, लेकिन मतदाता के मन में क्या है यह परिणाम के दिन ही पता चल पाएगा।