सूडान: बच्चे हड्डी के ढांचों में तब्दील, हालात बेहद ख़राब

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

बुधवार, 6 अगस्त 2025 (12:37 IST)
Darfur children become mere skeletons: सूडान के उत्तर दारफ़ूर के ज़मज़म शिविर में एक साल पहले, अकाल की घोषणा की गई थी। मगर, तब से अभी तक, हालात में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है। वहां न तो राहत सामग्री के ट्रक पहुंच पाए हैं, न ही नज़दीकी शहर अल-फ़शर की घेराबन्दी ख़त्म हुई है। दारफ़ूर में खाद्य पदार्थों की क़ीमतें देश के अन्य हिस्सों की तुलना में चार गुना ज़्यादा हैं।
 
यह सूडान के लिए एक और भयावह मोड़ है, जो कि इस समय दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकट का सामना कर रहा है। लेकिन धन सहायता की कमी, महत्वपूर्ण इलाक़ों तक पहुंच का अभाव और बढ़ती हिंसा की वजह से ऐसी स्थिति सामान्य बनती जा रही है। सूडान में यूनीसेफ़ के प्रतिनिधि शेल्डन येट्ट ने चेतावनी दी कि "यह कोई कल्पना नहीं है, यह एक निकट आता महाविनाश है।" 
 
महिलाएं और बच्चे मुसीबत में : इस युद्ध ने महिलाओं और बच्चों को अधिक मुसीबत में डाला है, जो पहले ही कई बार विस्थापित हो चुके हैं और जिन्हें साफ़ पानी, भोजन और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं। सूडान में मानवाधिकार मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ रधुआन नोइसेर ने कहा कि सूडान में युद्ध जारी रहने से, हर दिन निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं, समुदाय बिखर रहे हैं और यह मानसिक आघात, आने वाली पीढ़ियों को सताता रहेगा।
 
सूडान में संकट का सबसे गहरा असर बच्चों पर पड़ा है। अगले एक साल में पांच साल से कम उम्र के 32 लाख बच्चे गम्भीर कुपोषण से ग्रस्त हो सकते हैं। शेल्डन यैट्ट ने ख़ारतूम के जेबेल औलिया क्षेत्र की हालिया यात्रा के दौरान बताया कि "बहुत से बच्चे तो सिर्फ़ हड्डियों का ढांचा भर रह गए हैं। बहुत से बच्चे 4-5 बार विस्थापित हो चुके हैं और तीन-चौथाई से ज़्यादा बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं।
 
उन्होंने कहा कि बच्चे भावनात्मक रूप से बेहद टूट चुके हैं, बच्चों को नहीं मालूम कि उनका अगला ठिकाना कहां होगा… वे अपने ही देश में अजनबी महसूस कर रहे हैं।  एक मां ने बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद, उनकी बेटी बिल्कुल चुप हो गई है और मैं डर की वजह से तेज़ दौड़ती उसकी धड़कन को महसूस कर सकती हूं। 
 
एक लैंगिक आपदा : सूडान में गहराते भूख और विस्थापन संकट का, सबसे तकलीफदेह चेहरा महिलाएं और लड़कियां बनती जा रही हैं। देश के कई हिस्सों में, हालात अकाल के कगार पर पहुंच चुके हैं। यूएन वीमेन की सूडान प्रतिनिधि साल्वाटर नकरुंज़िज़ा ने इसे एक "लैंगिक संकट" बताया है, जो लैंगिक हालात में सहायता करने वाली नीति की विफलता का परिणाम है। उन्होंने जिनीवा में एक प्रैस वार्ता में कहा, "यह केवल खाद्य संकट नहीं है, बल्कि महिलाओं की उपेक्षा का गम्भीर नतीजा है।" 
 
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, महिला-नेतृत्व वाले परिवार, पुरुष-नेतृत्व वाले परिवारों की तुलना में तीन गुना अधिक खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं, युद्ध, पुरुषों की मौत, जबरन ग़ायब कर दिए जाने और विस्थापन के हालात में, अकेले ही घर चला रही हैं। रिपोर्ट बताती है कि 75 प्रतिशत महिला-प्रधान परिवार, अपनी बुनियादी खाद्य ज़रूरतें तक पूरी नहीं कर पा रहे हैं।
 
रिपोर्ट में कहा गया, “महिला-प्रधान परिवार तेज़ी से भुखमरी की ओर बढ़ रहे हैं। उनके पास आय के साधन कम हैं, सामाजिक सुरक्षा कमज़ोर है और वे पहले से भी अधिक व्यवस्थागत चुनौतियों से जूझ रही हैं।” हालांकि, नकरुंज़िज़ा ने यह भी याद दिलाया कि महिलाएं केवल पीड़िता नहीं, बल्कि संकट के समय बदलाव की वाहक भी हैं। महिला-नेतृत्व वाले संगठन राहत केन्द्रों और सूप किचन के ज़रिए लोगों को खाना बांट रहे हैं, विस्थापित परिवारों की मदद कर रहे हैं। इसके बावजूद, उन्हें नीति निर्माण में शामिल नहीं किया जा रहा है।

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