हर दिन लगभग 37 माताएं युद्ध में अपनी जान गंवा रही हैं, जिनके पीछे उनके बिखरे हुए परिवार रह जाते हैं और उनके बच्चों की हिफ़ाज़त ग़ायब हो जाती है। एजेंसी का कहना है कि अगर युद्ध मौजूदा दर से जारी रहता है तो, हर दिन औसतन 63 महिलाओं की मौत होती रहेगी।
अकाल की आशंका : इस सप्ताह, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने सुरक्षा परिषद की एक बैठक में, ग़ाज़ा में आसन्न अकाल की चेतावनी दी थी, जहां पूरी आबादी यानि लगभग 23 लाख लोग, जल्द ही खाद्य असुरक्षा के गम्भीर स्तर का सामना करेंगे।
गम्भीर स्तर के खाद्य अभाव का सामना करने वाले लोगों की ये अभी तक की सबसे बड़ी संख्या होगी।
संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था ने, फ़रवरी में 120 महिलाओं का एक त्वरित मूल्यांकन किया था जिसमें 84 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उनका परिवार, युद्ध शुरू होने से पहले की तुलना में भोजन की आधी या उससे भी कम मात्रा खाता है।
वैसे तो भोजन जुटाने की ज़िम्मेदारी, माताओं और वयस्क महिलाओं पर होती है मगर वहीं सबसे अन्त में, कम और सबसे कम ख़ुराक खाती हैं।
छूट रही हैं माताओं की ख़ुराकें : अधिकांश महिलाओं ने संकेत दिया कि उनके परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को, पिछले सप्ताह के दौरान भोजन छोड़ना पड़ा।
यूएन महिला संगठन ने कहा है, उनमें से 95 प्रतिशत मामलों में, माताएं भोजन खाए बिना ही रहती हैं, उन्हें अपने बच्चों का पेट भरने के लिए कम से कम एक समय की ख़ुराक छोड़नी पड़ रही है। लगभग 10 में से नौ यानि 90 प्रतिशत महिलाओं ने यह भी बताया कि उन्हें, पुरुषों की तुलना में भोजन मिलना अधिक कठिन है।
कुछ महिलाएं अब मलबे के नीचे या कूड़ेदानों में भोजन ढूंढने या अन्य उपायों का सहारा ले रही हैं।
मानवीय युद्धविराम तुरन्त लागू हो : युद्ध के लैंगिक पहलुओं पर, संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन की, जनवरी में जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि ग़ाज़ा में, 12 महिला संगठनों में से, 10 ने अपना संचालन आंशिक रूप से जारी होने की सूचना दी थी।
एजेंसी ने कहा, अगर तत्काल मानवीय युद्धविराम लागू नहीं होता है तो आने वाले दिनों और सप्ताहों में, बहुत से अन्य लोग मारे जाएंगे
ग़ाज़ा में हत्याएं, बमबारी और आवश्यक बुनियादी ढांचे का विनाश बन्द होना होगा। पूरे ग़ाज़ा क्षेत्र मे मानवीय सहायता तुरन्त उपलब्ध करानी होगी'