विश्व भर में पांच वर्ष से कम उम्र के क़रीब 40 करोड़ बच्चों, यानि इस आयु वर्ग में हर 10 में से छह बच्चों को घर पर नियमित रूप से मनोवैज्ञानिक आक्रामकता या शारीरिक दंड का सामना करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के एक नए विश्लेषण के अनुसार लगभग 33 करोड़ बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए हिंसक तौर-तरीक़ों से दंडित किया जाता है।
Globally, 6 in 10 children under 5 face psychological aggression or physical punishment at home.
Many children are also deprived of play with their parents and caregivers.
मनोवैज्ञानिक आक्रामकता से यहां तात्पर्य, बच्चे पर चिल्लाने, चीखने और उन्हें अपमानजनक शब्दों, जैसेकि बुद्धू या आलसी जैसे नामों से पुकारना है। वहीं शारीरिक दंड से अर्थ उनके हाथों, बाँह, पाँव पर इस तरह से मारना है, जिससे उन्हें दर्द या असहजता हो मगर वे घायल ना हों।
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने बताया कि जब बच्चों के साथ शारीरिक या शाब्दिक दुर्व्यवहार किया जाता है, या फिर उन्हें सामाजिक व भावनात्मक देखभाल से वंचित रखा जाता है, तो यह उनके विकास व स्वयं के लिए नज़रिये पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
यूनीसेफ़ ने अपना यह विश्लेषण मंगलवार 11 जून, को प्रथम अन्तरराष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर जारी किया है, जोकि खेल को संरक्षित करने, उसे बढ़ावा व प्राथमिकता देने पर केन्द्रित है, ताकि सभी व्यक्ति, विशेष रूप से बच्चे उससे लाभान्वित हों और अपनी पूर्ण सम्भावनाओं को साकार कर सकें।
यूएन एजेंसी का कहना है कि अनेक युवा बच्चों को खेलने, अपने अभिभावकों या उनकी देखभाल करने वाले व्यक्तियों के साथ समय गुज़ारने से वंचित रखा जाता है।
इसके मद्देनज़र यूएन एजेंसी ने देशों की सरकारों से क़ानूनी फ़्रेमवर्क को मज़बूत करने और तथ्य-आधारित अभिभावक कार्यक्रमों और बच्चों के खेलने के लिए स्थल सुनिश्चित करने में निवेश की अपील की है।
हिंसक अनुशासन : विश्लेषण दर्शाता है कि ऐसे देशों की संख्या बढ़ रही है, जहां बच्चों को घर पर शारीरिक दंड दिए जाने पर पाबन्दी लगाई जा रही है। मगर पांच वर्ष से कम आयु के क़रीब 50 करोड़ बच्चे अब भी पर्याप्त क़ानूनी संरक्षण उपायों के दायरे से बाहर हैं। बच्चों के पालन-पोषण के तौर-तरीक़ों में हानिकारक सामाजिक मानंदडों का सहारा लिया जाता है और अक्सर इसमें हिंसक तौर-तरीक़ों का भी इस्तेमाल हो सकता है। लगभग हर चार में से एक मां और प्राथमिक देखभालकर्मी का मानना है कि बच्चों के लालन-पोषण में शारीरिक दंड की अहम भूमिका है।
डेटा के अनुसार दो से चार वर्ष की आयु में हर 10 में से लगभग छह बच्चों को घर पर गतिविधि के लिए पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे वे भावनात्मक उपेक्षा का शिकार हो सकते हैं जोकि बड़े होने पर उन्हें विरक्ति, असुरक्षा और व्यवहार सम्बन्धी परेशानियों की ओर ले जा सकता है।
वहीं, हर 10 में से एक बच्चा उनकी देखभाल करने वाले व्यक्तियों के साथ उन गतिविधियों से वंचित है, जो उनके विकास के लिए बेहद अहम है, जैसेकि पढ़ना, कहानी सुनना व सुनाना, गाना और चित्रकारी करना।
विश्लेषण दर्शाता है कि बड़ी संख्या में बच्चों के पास घर पर खेलने के लिए खिलौने नहीं हैं और ना ही वे उनकी देखभाल करने वाले व्यक्तियों के साथ खेलते हैं।
प्रथम अन्तरराष्ट्रीय खेल दिवस : मंगलवार 11 जून, को पहली बार मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर, संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक रूप से मानव विकास में खेल की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया है। यूनीसेफ़ की शीर्ष अधिकारी कैथरीन रसैल ने कहा कि खेल से परिपूर्ण लालन-पोषण के ज़रिये, बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं, कौशल सीखते हैं और अपने आस-पास की दुनिया में अपने क़दम बढ़ाते हैं।
मगर, विकलांगता, लैंगिक भेदभाव, हिंसक टकराव, और सीखने-सिखाने के अवसरों के अभाव से बच्चों के खेलने की योग्यता के लिए अवरोध खड़े हो सकते हैं। इस पृष्ठभूमि में, यूनीसेफ़ ने देशों की सरकारों से इन चुनौतियों से निपटने, एक बेहतर क़ानूनी व नीतिगत फ़्रेमवर्क तैयार करने का आग्रह किया है ताकि घर पर बच्चों के विरुद्ध हिंसा के सभी रूपों का अन्त किया जा सके।