काशी जिसे वाराणसी नाम से भी जाना जाता है, उसे भगवान शंकर की नगरी भी कहते हैं। ये वो नगरी है, जहां से नरेन्द्र मोदी सांसद चुने गए और उनके नाम के आगे 'प्रधानमंत्री' लगा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहे जाने लगे, जो कि देश की राजनीति का सर्वोच्च पद है।
अब वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते जिले की आठों विधानसभा सीटों व आसपास के क्षेत्रों में भी मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस पर पूरे देश के राजनीतिज्ञों की निगाहें भी लगी है, जो कि मोदी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में एक ऐतिहासिक फैसला नोटबंदी का लिया था। अब इसका कितना असर हुआ है? इसका फैसला भी करने का समय है।
अंतिम चरण की 40 सीटों में से कई सीटों पर भाजपा में टिकट वितरण को लेकर मनमुटाव भी रहा लेकिन चुनाव के अंतिम समय में स्थिति को काफी नियंत्रित कर लिया गया है और शायद इसीलिए चुनाव के अंतिम दिनों में मोदी उनके विश्वसनीय सिपहसालारों सहित संसदीय क्षेत्र में जमे हुए हैं जिसका कितना असर दिखता है? यह भी मायने रखेगा।
गत विधानसभा चुनाव में जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर, भदोही व सोनभद्र की 32 सीटों में से केवल 1 सीट जौनपुर जिले के मुंगरा बादशाहपुर ही हाथ लगी व अन्य 5 जिलों की 31 सीटों पर भाजपा का खाता तक नहीं खुला था जिसे कि मोदी इस बार हासिल करना चाहेंगे।
इसके लिए इन सभी जिलों से प्रतिनिधित्व कर जो केंद्र सरकार का हिस्सा बने हैं उनमें से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय, अपना दल की अनुप्रिया पटेल, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री मनोज सिन्हा आदि को जिम्मेदारी दी गई है।
अंतिम चरण के चुनाव में 8 मार्च को 7 जिलों की 40 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा। इन 7 जिलों में लगभग 30 लाख से अधिक गरीब परिवार हैं व 1.41 करोड़ मतदाता, जो कि करीब 40% हैं तथा वे गरीबी झेल रहे हैं। ये दलित व पिछड़े हैं जिन्हें देखते हुए मोदी ने गत वर्ष 8 मार्च को बलिया जिले में गरीबों के लिए एलपीजी उज्ज्वला योजना का शुभारंभ भी किया था।
मोदी के ये सभी प्राथमिकता में किए गए कार्य व नोटबंदी का फैसला कितना उनकी प्रतिष्ठा के लिए हितकर होगा? ये देखने वाली बात होगी।