उत्तर प्रदेश में होने वाले 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। यह बात दीगर है कि यूपी में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह तो मतदाता का तय करेंगे। लेकिन मेरठ की 7 विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी तेजी से जोर पकड़ रही है। यहां के 26 लाख वोटर 7 विधायकों की किस्मत तय करेंगे।
आइए आज मेरठ शहर विधानसभा सीट (Meerut City Assembly Seat) का सामाजिक-राजनीतिक गणित के साथ चुनावी मुद्दे समझते हैं। मेरठ जिले में 7 विधानसभा सीट हैं।
2017 विधानसभा चुनाव में मेरठ शहर एकमात्र सीट पर समाजवादी पार्टी काबिज हो पाई थी, अन्य सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने अपना परचम पहराया था। शहर विधानसभा सीट पर सपा के रफीक अंसारी ने भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कद्दावर नेता डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हार का स्वाद चखाया था। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी अब तक आठ बार विधानसभा चुनाव लड़े है और चार बार जीते भी है।
लक्ष्मीकांत वाजपेयी शहर सीट से पहली बार 1989 में भारतीय जनता पार्टी से विधायक बने। लेकिन 1993 में लक्ष्मीकांत को हराकर जनता दल प्रत्याशी हाजी अखलाक ने शहर सीट जीत ली। 1996 और 2002 में लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने चुनाव जीता लेकिन 2007 में यूडीएफ से चुनाव लड़ते हुए हाजी याकूब ने वाजपेयी को हरा दिया। वही 2012 में वाजपेयी चौथी बार शहर सीट से विधायक की कुर्सी पर बैठे, लेकिन 2017 के चुनाव में वह हार गए और सपा के रफीक अंसारी जीत गए।
2022 के चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर से सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच होगा। मेरठ शहर विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या 3 लाख 11 हजार 727 है। मेरठ की अन्य 6 विधानसभाओं के मतदाताओं की तुलना में यह यहां सबसे छोटा क्षेत्र है। यहां पर 1 लाख 69 हजार 259 पुरुष मतदाता, 1 लाख 42 हजार और महिला वोटर और 23 हजार वोटर थर्ड जेंडर के है।
इस सीट पर अहम भूमिका मुस्लिम वोटर निभाते है, यदि मुस्लिम प्रत्याशी एक से अधिक खड़ा होता है, मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है तो इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होता है। मेरठ शहर क्षेत्र वैश्य, ब्राह्मण, दलित, त्यागी समेत पंजाबी आदि बिरादरी मतदाता भी है, लेकिन निर्णायक भूमिका में मुस्लिम वोटर हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने इस सीट पर हिंदू प्रत्याशी को उतारा था और उसका नुकसान भाजपा को सहना पड़ा था।
मेरठ शहर विधानसभा सीट 2017 में समाजवादी पार्टी के रफीक अंसारी ने जीत का परचम फहराया था। उन्होंने बीजेपी के पूर्व विधायक लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हराते हुए 1 लाख 3 हजार 217 वोट (52.99%) हासिल किये थे, जबकि लक्ष्मीकांत वाजपेयी को 74 हजार 448 वोट (38.22%) मिले थे। इसी सीट पर तीसरे नम्बर पर बसपा प्रत्याशी पंकज जौली ने 12636 वोट हासिल किये थे।
यदि बात करें समाजवादी पार्टी के वर्तमान विधायक रफीक अंसारी ने राजनीतिक सफर की तो उन्हें 1995 में पार्षद बनकर शुरुआत की थी। रफीक को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नजदीकी कहा जाता है, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड आंधी के बीच उन्होंने मेरठ शहर विधानसभा सीट पर कब्जा किया। हालांकि 2012 विधानसभा सीट पर बीजेपी के लक्ष्मीकांत से पराजित हुए थे।
आजादी के बाद से मेरठ शहर सीट पर विधायक
साल
विजेता
पार्टी
2017
रफीक अंसारी
समाजवादी पार्टी
2012
डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई
बीजेपी
2007
हाजी याकूब
यूपीयूडीएफ
2002
डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई
बीजेपी
1996
डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई
बीजेपी
1993
हाजी अखलाक
जनता दल
1989
डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई
भाजपा
1985
जय नारायण शर्मा
कांग्रेस
1980
मंजूर अहमद
कांग्रेस
1977
मंजूर अहमद
कांग्रेस
1974
मोहनलाल कपूर
जनसंघ
1969
मोहनलाल कपूर
जनसंघ
1967
मोहनलाल कपूर
जनसंघ
1962
जगदीश शरण रस्तोगी
कांग्रेस
1957
कैलाश प्रकाश
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1951
कैलाश प्रकाश
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
मेरठ शहर विधानसभा सीट का एक बड़ा हिस्सा पुराना शहर है। यहां पर कई ऐतिहासिक धरोहर आज भी मौजूद है, जिसमें से एक प्रमुख शहर घंटाघर है, इस घंटाघर में चारों तरफ घड़ी लगी है। शहर के स्थानीय लोग अक्सर गुनगुनाते नजर आते है कि घंटाघर की चार घड़ी, चारों में जंजीर पड़ी, जब-जब घंटा बोलता है खड़ा मुसाफिर हंसता है।
पौराणिक मान्याताओं के अनुसार यहां नौचन्दी मैदान क्षेत्र में एक तरफ स्थित चंडी देवी का मंदिर और दूसरी तरफ बालेमिंया की मजार है। कहा जाता है कि चंडी देवी के मंदिर में रावण की पत्नी मंदोदरी पूजा करने आती थी, जिसके कारण इसे रावण की ससुराल भी कहा जाता है। मेरठ का टाउन हाल और उसकी प्राचीन इमारत व पुस्तकालय इतिहास के साक्षी हैं।
मेरठ शहर की विशेष पहचान सूरजकुंड पार्क है, इस पार्क से मंदोदरी का विशेष लगाव रहा है, क्योंकि मंदोदरी के पिता मयदानव रावण का राजमहल हुआ करता था। शहर कोतवाली स्थित जामा मस्जिद, जली कोठी, ब्रह्मपुरी, भूमिया का पुल, खैरनगर, पुरानी तहसील इसकी पहचान है।
मेरठ शहर का लघु कुटीर उद्योग कैंची है, यहां की बनी कैंचियों ने देश-विदेश में अपनी पहचान बना रखी है। यहां की प्रमुख समस्याएं अपराध और अपराधी, दंगा-फसाद, साफ सफाई, बेरोजगारी व बिजली रही हैं।
मेरठ शहर विधानसभा सीट का गौरवशाली इतिहास रहा है, यहां आजादी के बाद कांग्रेस काबिज रही, बाद में जनसंघ से मोहनलाल कपूर ने हैट्रिक भी लगाई।
बीजेपी के लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी चार बार विधायक बने। यूडीएफ और सपा प्रत्याशी भी जीते। अब 2022 में मेरठ शहर विधानसभा सीट से पार्टियों ने अभी उम्मीदवार डिक्लेयर नही किये है। यदि इस सीट पर यह एक मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा होता हो, तो भाजपा को फायदा मिलेगा, लेकिन सपा और बसपा भी हिंदू उम्मीदवार देती है तो भाजपा को हार का सामना करना पड़ सकता है।