यूपी की सबसे ‘हॉट सीट’, जानिए किन दिग्गजों में है मुकाबला और क्या रहा है इन सीटों का ‘चुनावी इतिहास’
गुरुवार, 10 मार्च 2022 (12:10 IST)
चुनाव परिणाम आ रहे हैं, उत्तर प्रदेश में भाजपा एक बार फिर से अपना परचम फहरा रही है। सपा दूसरे नंबर पर आती नजर आ रही है, जबकि कांग्रेस हर बार की तरफ पिछड़ रही है। लेकिन यूपी में कई सीटें ऐसी हैं जो हॉट मानी जाती हैं। यहां मुकाबला भी तगड़ा है और चेहरे भी बहुत प्रभावी है।
आइए जानते हैं यूपी की इन हॉट सीटों के बारे में।
हॉट सीट 01, सिराथू, भाजपा प्रत्याशी : केशव प्रसाद मौर्य, सपा प्रत्याशी : पल्लवी पटेल
ऐसी ही यूपी की एक सीट है सिराथू। यहां से केशव प्रसाद मौर्य भाजपा के प्रत्याशी हैं। जबकि उनके सामने सपा की प्रत्याशी पल्लवी पटेल है। यानी यहां पर सपा और भाजपा के बीच मुकाबला है।
क्या है यहां का चुनावी इतिहास?
यहां 1993 से 2007 तक बसपा लगातार 4 बार जीतती रही। 2008 परिसीमन में सामान्य सीट हो गई। 2012 में केशव प्रसाद मौर्य भाजपा के टिकट पर जीते थे।
क्यों खास है ये सीट?
यह सीट कई मायनों में बेहद अहम है। बसपा के गढ़ में कमल खिलने के बाद भाजपा के लिए ये प्रतिष्ठा का सवाल है। दरअसल सिराथू के नतीजे प्रयागराज और प्रतापगढ़ की पूरी बेल्ट पर असर डालते हैं। केशव पिछड़े वर्ग के नेता हैं। यहां 34% पिछड़े वर्ग के वोटर में कुर्मी निर्णायक हैं। सपा के घटक दल अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल को उतारकर कुर्मी वोटबैंक में सेंधमारी की कोशिश हुई। बसपा से मुनसब अली उस्मानी से मुकाबला है।
क्या है इतिहास?
मथुरा सीट पर 2002 से 2017 तक 15 साल कांग्रेस के प्रदीप माथुर का कब्जा रहा। 2017 के चुनाव में श्रीकांत शर्मा जीते थे। सबसे ज्यादा 9 बार कांग्रेस, 5 बार भाजपा के प्रत्याशी जीतते आए हैं।
क्यों है खास?
सीएम योगी आदित्यनाथ के यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा चली थी। बाद में श्रीकांत ही प्रत्याशी घोषित हुए। ये सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा यहां दोबारा अपनी सत्ता नहीं खोना चाहेगी। लंबे समय तक भाजपा के प्रत्याशियों ने यहां कांग्रेस के सामने हार का मुंह देखा है।
क्या है इतिहास?
33 साल में 7 बार भाजपा, 1 बार हिंदू महासभा (योगी आदित्यनाथ के समर्थन से) का उम्मीदवार चुना गया।
क्यों है अहम?
सीएम योगी के सामने 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। ज्यादातर राजनीति में नए हैं। सपा ने भाजपा के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष और ब्राह्मण चेहरा स्व. उपेंद्र शुक्ल की पत्नी शुभावती को खड़ा किया। बसपा से ख्वाजा शमसुद्दीन और कांग्रेस से चेतना पांडेय, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से चंद्रशेखर चुनाव लड़ रहे हैं। योगी गोरखपुर से पूरा पूर्वांचल साध रहे हैं।
क्या है इतिहास?
1992 से ही यहां मुलायम सिंह यादव का यहां दबदबा रहा। 2007 से लेकर अब तक 3 बार सोबरन सिंह यादव ही चुनाव जीते हैं।
क्यों अहम है सीट?
यह सीट यादव बाहुल्य है। 28 साल से सपा के वर्चस्व में है सीट। सिर्फ 2002 के चुनाव में यहां सपा प्रत्याशी हारा था। 3.71 लाख कुल वोटर्स में 1.44 लाख यादव हैं। यहां से होने वाली जीत सिर्फ आगरा मंडल पर ही नहीं। इटावा, फर्रुखाबाद , शिकोहाबाद, कानपुर तक के इलाके पर असर डालती है। बसपा ने यहां कुलदीप नारायण और कांग्रेस ने यहां प्रत्याशी ही नहीं उतारा है।
हॉट सीट 05 फाजिलनगर, भाजपा प्रत्याशी : सुरेंद्र कुशवाहा,सपा प्रत्याशी : स्वामी प्रसाद मौर्य
क्या है इतिहास?
यहां से सपा के दिग्गज नेता विश्वनाथ मुस्लिम वोटर्स के सहारे 6 बार विधायक बने। 2 बार भाजपा गंगा कुशवाहा विधायक रहे।
क्यों है खास?
कुशवाहा और चनऊ बिरादरी के वोटर्स के दम पर गंगा कुशवाहा विधायक बने। इसलिए उनके बेटे सुरेंद्र कुशवाहा को टिकट दिया गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य 2 बार रायबरेली और 3 बार पडरौना से विधानसभा चुनाव जीते थे। कांग्रेस से मनोज कुमार सिंह और बसपा ने हाल ही में सपा छोड़कर आए इलियास अंसारी को उम्मीदवार बनाया है। यहां से होने वाली जीत पार्टी में कद बढ़ाने का काम करेगी।
हॉट सीट 06, नोएडा (गौतमबुद्धनगर)
भाजपा : पंकज सिंह
सपा : सुनील चौधरी
क्या है इतिहास?
नोएडा विस सीट 2012 में अस्तित्व में आई थी। 2017 में पंकज चुनाव जीते थे। सपा के सुनील चौधरी पिछले चुनाव में हारे थे।
क्यों है खास?
दिल्ली से सटे जिले गौतमबुद्धनगर की हाई प्रोफाइल सीट नोएडा पर दोबारा जीत मिलने से पंकज की सियासी जमीन मजबूत होती है। वो रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बेटे होने की छवि से भी बाहर निकल आएंगे। यहां 23 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। यहां सबसे ज्यादा 1.30 लाख ब्राह्मण, 1.10 लाख बनिया और करीब 25 हजार ठाकुर वोटर हैं। इस बार बसपा से कृपाराम शर्मा और कांग्रेस ने पंखुड़ी पाठक को चुनावी मैदान में उतारा है।
क्या है इतिहास?
1980 के चुनाव में कांग्रेस के नवाब सादिक अली खान और नवाब सिकंदर अली ने 1985 में ये सीट कांग्रेस के पाले में डाली थी। इसके बाद 8 विस चुनाव से सुरेश कुमार खन्ना जीत रहे हैं।
क्यों है खास?
ये भी भाजपा का गढ़ मानी जाती है। बसपा ने इस सीट से अधिकांश बार मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा। इससे मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता रहा। इस बार हाथी के साथ सर्वेश मिश्र मैदान में हैं। कांग्रेस आशा कार्यकर्ता पूनम पांडेय को उतारा हैं। शाहजहांपुर में होने वाली जीत-हार बरेली मंडल के सभी विधानसभा पर प्रभाव डालती है।
हॉट सीट 08 : कुंडा आईएनडी : कुंवर रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' सपा : गुलशन यादव
क्या है इतिहास?
1993 से कुंडा की सीट पर रघुराज प्रताप सिंह जीतते आ रहे हैं। इससे पहले एक बार भाजपा और दो बार कांग्रेस के पाले में ये सीट जा चुकी है।
क्यों खास है सीट?
यहां जातीय समीकरण से अधिक रघुराज प्रताप सिंह के नाम पर चुनाव लड़ा जाता है। सिंधुजा यहां 'गुंडा विहीन कुंडा' के नारे के साथ सियासी मैदान में कूद गई हैं। सपा ने गुलशन को प्रत्याशी बनाया है। सीधी टक्कर भी उन्हीं के बीच है।
क्या है इतिहास?
1993 तक यहां सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव जीतते आए। इसके बाद उनके भाई शिवपाल यादव इस सीट पर अजेय बने रहे।
क्यों खास है ये सीट?
इटावा की जसवंतनगर विधानसभा सीट पर चार बार के विधायक शिवपाल यादव के सामने भाजपा ने विवेक शाक्य को खड़ा किया है। दोनों के बीच सीधा मुकाबला होता दिख रहा है। इस टक्कर को देखते हुए शिवपाल कई बार भावुक होते दिखे हैं। इस पर शिवपाल सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं।
क्या है इतिहास?
मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के बावजूद कैराना में 4 बार भाजपा के प्रत्याशी जीते हैं। इससे पहले कांग्रेस ने भी यहां 5 विधानसभा चुनाव जीते हैं। 2017 के चुनाव में सपा के नाहिद हसन जीते थे।
क्यों है खास ये सीट?
कैराना सीट लंबे अरसे से पूर्व सांसद बाबू हुकुम सिंह और हसन परिवार की सियासी अदावत चली आ रही है। जिसमें कभी एक परिवार तो कभी दूसरा भारी पड़ता रहा है। 2014 के उप चुनाव और 2017 के आम चुनाव में हसन परिवार ने जीत दर्ज की है। नाहिद हसन यहां से विधायक बने हैं। इस बार नाहिद को नामांकन के अगले ही दिन गैंगस्टर में जेल भेजा गया था। लेकिन उन्हें सपा-रालोद के गठबंधन का फायदा मिल रहा है।