शायरी की शौकीन इंदौर की जनता को मुनव्वर राना की शायरी इतनी पसंद है कि वह मीलों दूर जाकर रात भर जागकर उन्हें सुनती हैं। मुनव्वर राना भी अपने इन चाहने वालों से प्यार करते हैं, उन्हें अपने ताज़ा और नए शेर सुनाते हैं और उनकी फरमाइशों को भी पूरा करते हैं। इंदौर में मुशायरे और कवि सम्मेलन होते ही रहते हैं। देश के कोने-कोने से शायर और कवि यहाँ आते हैं। इंदौरवासियों को इनमें जो सबसे अधिक पसंद है, वह है मुनव्वर राना-
- राना साहब आपने इंदौरवासियों पर ऐसा कौन-सा जादू कर दिया है कि वह रात भर जाग कर आपके शे'र सुनना और उनका आनंद लेना चाहते हैं? - जादू वाली तो कोई बात नहीं है। हाँ, मेरी गज़लों की विषयवस्तु शायद उनसे और उनके जीवन से जुड़ी होती हैं और फिर मेरी शायरी की भाषा भी एकदम सरल और आसान होती है, जिससे मैं उनके दिलों को गुदगुदाने में कामयाब हो जाता हूँ। - पुरानी शायरी और वर्तमान शायरी में आप क्या अंतर देखते हैं ? - देखिए, पुरानी शायरी में अधिकतर प्यार-मोहब्बत, शराब, शबाब की बातें हुआ करती थीं - औरत के एक-एक अंग का बखान (नाखून, अंगुली, हथेली, हाथ, कमर, पाँव, बाजू, सीना, आँख, नाक, कान, गरदन, भवें, पेशानी, बाल इत्यादि) किया जाता था। परंतु आज की शायरी इस बकवास से दूर निकल आई है। अब उसने कच्चे गोश्त की इस दुकान को सदा के लिए बंद कर दिया है।
शायरी की शौकीन इंदौर की जनता को मुनव्वर राना की शायरी इतनी पसंद है कि वह मीलों दूर जाकर रात भर जागकर उन्हें सुनती हैं। मुनव्वर राना भी अपने इन चाहने वालों से प्यार करते हैं, उन्हें अपने ताज़ा और नए शेर सुनाते हैं और उनकी फरमाइशों को भी पूरा करते हैं।
आज की शायरी में मानवता के विभिन्न कोणों को बड़ी सूझ-बूझ के साथ चित्रित किया जाता है। प्रेम-प्रसंगों के साथ ही आर्थिक पहलू को भी सामने रखा जाता है। उसे अनदेखा नहीं किया जाता है। इसलिए आज शायरी लोगों को उनकी अपनी शायरी दिखाई देती है। वह उन्हें जुबानी याद हो जाती है। लोग उससे स्वयं भी आनंदित होते हैं और दूसरों को सुनाकर उन्हें भी खुश कर देते हैं। शायरी में यह टर्निंग प्वाइंट आया शायद शाद आरफी और यगाना चंगेजी जैसे शायरों से। - शायरी में भाषा का उपयोग शब्दों के चुनाव के बारे में कुछ बताइए ? - देखिए, शायरी के शब्द हैं बनाव-श्रृंगार की वस्तुओं के समान जैसे बिंदिया, लिप्स्टिक, कंघा, परफ्यूम, पावडर, इत्यादि, जो किसी नौजवान सुंदर स्त्री के ड्रेसिंग टेबल पर सजे रहते हैं। शायरी की विषयवस्तु होती है, उस स्त्री के वस्त्र, जिन्हें वह अपनी रुचि, अपने मूड और मौसम के स्वभाव को देखते हुए चुनती है- शायरी की भाषा और शब्दों के इस सुंदर उपयोग को बताया और समझाया है, प्रसिद्ध शायर नज़ीर अकबराबादी ने।
उन्होंने अपनी शायरी की भाषा को इतना आसान और सरल बनाया कि लोग उन्हें हिन्दवी शायर कहने लगे। धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि दूसरे शायरों ने भी उनकी शैली को अपनाना प्रारंभ कर दिया। कठिन भाषा और बड़े-बड़े भारी शब्दों ने सदैव ही साहित्य को हानि पहुँचाई है। आज यह समझा जाने लगा है कि अच्छा शेर वही है, जिसकी भाषा इतनी सरल हो कि उसका अनुवाद ही न किया जा सके। शायरी में भाषा की यह सरलता भारत से ही होती हुई पाकिस्तान तक पहुँच गई है। दो शेर देखिए, एक भारतीय शायर का है और दूसरा पाकिस्तानी शायर का-
कृष्ण होते तो ज़रूर इनको ज़ुबाँ दे देते,मेरे आँसू है सुदामा के सवालों की तरह। - वसी सीतापुरीं
क्यूँ हवा आके उड़ा देती है आँचल मेरा,यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी। - परवीन शाकिर (पाकिस्तान)
- आप मुशायरों के सफलतम शायर हैं। मुशायरे के स्टेज पर तो अनेक शायर होते हैं, उन अन्य शायरों के चुनाव और स्तर के बारे में कुछ बताएँ। - देखिए, अब मुशायरे केवल शौक के लिए नहीं पढ़े जाते। अब इसमें ग्लैमर, दौलत, शोहरत इत्यादि बातें भी शामिल हो गई हैं। दौलत कमाने के लिए और जल्दी से प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए अनेक गैर शायर इसमें सम्मिलित हो गए हैं। किसी ने अपनी सुरीली और मीठी आवाज का सहारा लिया है। किसी ने उस्तादों और वरिष्ठ शायरों को पैसे देकर ग़ज़ल लिखवाकर मुशायरों में सम्मिलित होने का रास्ता खोज निकाला है। यह बीमारी इतनी बढ़ गई है कि 5 प्रतिशत भी अच्छे और सच्चे शायर मुशायरों में सम्मिलित नहीं होते।
50 प्रतिशत ऐसे शायर होते हैं, जो शायरी समझते ही नहीं। अब केवल टेबलेट से इस बीमारी को दूर नहीं किया जा सकता। अब तो ऑपरेशन ही इस बीमारी को दूर कर सकता है। यह ऑपरेशन कर सकते हैं मुशायरों को आयोजित करने वाले, वरिष्ठ और उस्ताद शायर वह अपनी गजलों को बेचना बंद कर दें। मुशायरे, जो हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है, उन्हें मुशायरा माफियाओं से बचाएँ।
- अब हम बात करना चाहेंगे आपकी शायरी की। ऐसा कहा जाता है कि आप 'माँ' के शायर हैं। आपकी ग़ज़लों में कहीं न कहीं माँ जरूर होती है। - यह सच है कि मेरी ग़ज़लों में माँ अक्सर मिल जाती है या यह कहिए कि शायरी में मेरी महबूबा मेरी माँ है। देखिए, ग़ज़ल के अर्थ होते हैं महबूब से बातें करना। शायर तो ऐसी स्त्रियों को भी अपना महबूब बना लेते हैं, जिनका कोई स्तर नहीं होता। कोठे पर बैठने वाली, मुजरा करने वाली जब महबूब बन सकती है तो 'माँ' क्यूँ नहीं? 'माँ' तो खुदा की पार्टनर होती है। खुदा को भी इंसान की उत्पत्ति के लिए माँ का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए 'माँ' की दुआओं में असर होता है। जब माँ इतनी पवित्र और महान है तो उसे महबूब बनाने में क्या बुराई है। मैं तो गर्व से कहता हूँ कि हाँ, मेरी महबूब मेरी 'माँ' है। सिरफिरे लोग हमें दुश्मने जाँ कहते हैं हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं मुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती है कि ये भी माँ की तरह खुशग्वार लगती है मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती किसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आई मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती है खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव से बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में है लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है इसी तरह के अनेक शेर माँ के लिए मैंने लिखे हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि मैंने दूसरे रिश्तों पर कुछ नहीं लिखा। मेरी शायरी में आपको बेटी, बहन, भौजाई और बचपन भी मिलेगा।
उछलते-खेलते बचपन में बेटा ढूँढ़ती होगी तभी तो देख के पोते को दादी मुस्कुराती है ओढ़े हुए बदन पे गरीबी चले गए बहनों को रोता छोड़ के भाई चले गए इन्हें फ़िकरापरस्ती मत सिखा देना के ये बच्चे ज़मीं से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं कसम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की खातिर ऐसी मिट्टी में मिलाना के खिलौना हो जाऊँ मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ ग़ज़ल वो सिनफ़े नाजुक है जिसे अपनी रफ़ाक़त से वो मेहबूबा बना लेता है बैं बेटी बनाता हूँ हम सायादार पेड़ जमाने के काम आए जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है अपने गाँव में सब कुछ भैय्या अच्छा लगता है नए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है परिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है ये चिड़िया मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है कहीं भी शाखे गुलदेखे ये झूला डाल देती है तो फिर जाकर कहीं बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल के घर आ के बेटी मुस्कुराती है खुदा मेहफूज़ रक्खे मुल्क को गंदी सियासत से शराबी देवरों के बीच भोजाई रहती है हमारे और उसके बीच/इक धागे का रिश्ता है हमें लेकिन हमेशा वो सगा भाई समझती है ये देखकर पतंगे भी हैरान हो गई अब छतें भी हिन्दू मुसलमान हो गईं।
- साहित्य के माध्यम से एकता और भाईचारे का संदेश क्या सरहदों से बाहर जाकर भी दिया जा सकता है। - अवश्य दिया जा सकता है और दिया जा रहा है। आप देख नहीं रहे हैं कि पड़ोसी मुल्कों के साहित्यकार भारत आते हैं और कितना मान-सम्मान पाते हैं। इसी प्रकार जब हम सरहद पार जाते हैं तो हमें भी सिर-आँखों पर बिठाया जाता है।
परंतु एक कड़वा सच यह है कि एक साहित्यकार के लिए भी सरहद पार जाना आसान नहीं है। वीज़ा बड़ी मुश्किल से मिलता है, जबकि साहित्यकार को साहित्यक आयोजनों में भाग लेने के लिए वीज़ा इतनी देर में मिल जाना चाहिए, जितनी देर में गर्म चाय ठंडी होती है। साहित्यकारों में एकता और भाईचारा हमेशा से रहा है और आज भी है। हम लोग विदेशों में जाकर इसी प्रेम का प्रचार-प्रसार करते हैं। नफरत की दीवारें तो राजनेताओं द्वारा खड़ी की जाती हैं। साहित्यकार विदेशों में केवल साहित्यकार नहीं होता। वह अपने देश का नुमाइंदा होता है, जो कि एक एम्बेसेडर (राजदूत) के समान होता है। सियासत नफरतों का जख्म भरने ही नहीं देती जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है। जख्म को न भरने देने वाली यह मक्खी है सियासत लेकिन हमने भी नफरत को मोहब्बत से मिटाने का हुनर सीख लिया है। जो मुझको साँप कहता है उससे में इक रोज़ जाकर लिपट गया, उसे चंदन बना दिया परिंदों ने कभी रोका नहीं रस्ता परिंदों का खुदा दुनिया को चिड़ियाघर बना देता तो अच्छा था हज़ारों सरहदों की बेड़ियाँ लिपटी हैं पैरों से हमारे गाँव को भी पर बना देता तो अच्छा था
- भारत और पाकिस्तान में कुछ अच्छी शायरी करने वाले युवा शायरों के नाम बताने का कष्ट करें - पाकिस्तान में - इफ़्तिख़ार आरिफ़, अहमद फ़राज़ (युवा नहीं हैं), नसीर तुराबी, शहजाद अहमद, असलम कोलसरी, अजीम बे़हजाद अच्छा लिख रहे हैं। इसी तरह भारत में नौशाद, मोमिन, तारिक़ क़मर, मोइन शादाब, शाहिद अंजुम, खुरशीद अकबर अच्छा लिख रहे हैं। महिलाओं में पाकिस्तान की रेहान रूही, क़मर, फ़हमीदा रियाज और किश्वर नाहीद अच्छा लिख रही हैं। साहित्य में साहित्यकार का स्तर उसकी रचनाओं से लगाया जाना चाहिए। देश-विदेश में मुशायरा पढ़ने से नहीं। ऐसा सोचा गया तो मीर गालिब तो कभी विदेश गए नहीं। वर्तमान में मुशायरे उर्दू साहित्य को हानि पहुँचा रहे हैं। मुशायरों में पुरानी सभ्यता और रवायतों को कायम किया जाना चाहिए। - भारत में उर्दू के भविष्य के बारे में आप क्या सोचते हैं ? - भारत में उर्दू को बचाना है तो सबसे पहले उर्दू अकादमियों को समाप्त कर देना चाहिए। इनसे सरकारी फंड नष्ट हो रहा है। दावतें उड़ाई जा रही हैं। हवाई जहाजों से यात्राएँ की जा रही हैं और उनमें बैठकर अँग्रेजी के अखबार पढ़े जा रहे हैं। मैंने अकादमी के किसी अधिकारी के पास कभी उर्दू का अख़बार नहीं देखा।
प्रत्येक जिले में उर्दू इंसपेक्टर की नियुक्ति होनी चाहिए, जो सीधा कलेक्टर के मार्गदर्शन में काम करे।
- इंदौर और इंदौरवासियों के बारे में आपका क्या ख़्याल है। - इंदौर बहुत अच्छा शहर है। इसे देश की साहित्यिक राजधानी कहा जाना चाहिए। विभिन्न भाषाओं का संगम यहाँ है और सबको सम्मान मिलता है। उर्दू-हिन्दी में तो यहाँ अंतर ही दिखाई नहीं देता। मेरा प्यार, मेरा दिल, मेरा सहयोग, मेरी दुआएँ सदैव इंदौरवासियों के साथ हैं।