दोस्ती के भरम ने मार दिया, दुश्मनों से तो बच गए लेकिन दोस्तों के 'करम' ने मार दिया...
कल इक अदीब-ओ-शायर-ओ-नाक़िद मिले हमें, कहने लगे कि आओ ज़रा बहस ही करें
दि नेशन टाक्स इन उर्दू, दि पीपुल फ़ाइट इन उर्दू
डियर रीडर देट इज़ व्हाइ, आइ राइट इन उर्दू
'आह! वो रातें, वो रातें याद आती हैं मुझे'
आह, ओ सलमा! वो रातें याद आती हैं मुझे
नाम पूछा जो एक शायर से
हंस के बोले कि बूअली पुख है
मैंने पूछा कि पुख से क्या मतलब
मुस्क
मोहब्बत
जहाँ तुम को
नफ़रत ही नफ़रत नज़र आए
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे
दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे
मालिक ए दो जहान है मौला
मुझ पे भी इक नज़र करम की हो
मेरी निगाह
इतनी मोतबर कहाँ थी?
कि देखता मैं
तुझको तेरे अंदर
लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे
, दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे
, ये रूप, ये लोच, ये तरन्नुम, ये निखार
एक लम्हे के लिए
तेरा खयाल
चाँद तारों से मिला देता है