(1877-1938)
1.
परिन्दे की फ़रयाद
अगर कजरौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्रे जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा
अगर हंगामा ए शौक़ से है लामकाँ ख़ाली
ख़ता किसकी है यारब लामकाँ तेरा है या मेरा
इसे सुबहे अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़दाँ तेरा है या मेरा
मोहम्म्द भी तेरा, जिबरील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फेशीरीं तरजुमाँ तेरा है या मेरा
इसी कोकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रोशन
ज़वाले आदमे ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
2 . फिर चिराग़े लाला से
फिर चिराग़े लाला से रोशन हुए कोहो दमन
मुझको फिर नग़मों पे उकसाने लगा मुरग़े चमन
फूल हैं सेहरा में या परयाँ क़तार अन्दर क़तार
ऊदे ऊदे नीले नीले पीले पीले पैरहन
बरगे गुल पर रख गई शबनम का मोती बादेसुबह
और चमकाती है इस मोती को सूरज की किरन
हुस्ने बेपरवाह को अपनी बेनक़ाबी के लिए
हों अगर शेहरों से बन प्यारे तो शेहर अच्छे के बन
अपने मन में डूब के पा जा सुराग़े ज़िन्दगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन
मन की दुनिया में न पाया मैं ने अफ़्र्रंगी का राज
मान की दुनिया में न देखे मैंने शेख़ो बिरहमन
पानी पानी कर गई मुझको क़लन्दर की ये बात
तू झुका जब ग़ैर के आगे तो मन तेरा न तन
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3. सितारों से आगे
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तेहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़िज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़नाअत न कर आलमे रंगोबू पर
चमन और भी आशियाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़ो शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मानो मकाँ और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन मैं
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं।
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4. आता है याद मुझको
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें वो सब का चेहाचहाना
आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोंसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना
लगती है चोट दिल पर आता है याद जिस दम
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
वो प्यारी प्यारी सूरत वो कामिनी सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना
आती नहीं सदाएँ उसकी मेरे क़फ़स में
होती मेरी रिहाई ऐ काश मेरे बस में
क्या बदनसीब हूँ मैं घर को तरस रहा हूँ
साथी हैं सब वतन में मैं क़ैद में पड़ा हूँ
आई बहार कलियाँ फूलों को हँस रही हैं
मैं इस अँधेरे घर में क़िस्मत को रो रहा हूँ
इस क़ैद का इलाही दुखड़ा किसे सुनाऊँ
डर है यहीं क़फ़स में घबरा के मर न जाऊँ।
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