जन्नत पुकारती है...

- मुनव्वर राना
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एक बार फिर से मिट्टी की सूरत करो मुझे
इज्जत के साथ दुनिया से रुख्सत करो मुझे

जन्नत पुकारती है कि मैं हूं तेरे लिए
दुनिया गले पड़ी है कि जन्नत करो मुझे

हमारी बेरुखी की देन है बाजार की जीनत
अगर हम में वफा होती तो ये कोठा नहीं होता

न दिल राजी न वह राजी तो काहे की इबादत है
किए जाता हूं मैं सज्दा मगर सज्दा नहीं होता

फकीरों की ये बस्ती है फरावानी नहीं होगी
मगर जब तक रहोगे हां परेशानी नहीं होगी

(फरावानी-समृद्धि, आसानी से उपलब्ध होना)

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