दुश्मने जानी कैसे : मुनफरीद अशआर

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कह दिया तूने मुझे दुश्मने जानी कैसे
मर गया आज तेरी आँख का पानी कैसे - ख्वाजा जावेद अख्‍त

वक्त मुनसिफ़ है ज़रा करवट तो लेने दीजि
दूध का दूध और फिर पानी का पानी देखना - मज़हर महीउद्दी

यही तो वस्फ़ है मेरा, अगर मैं मर भी गय
जुड़ी रहेगी कोई दास्तान मेरे बाद - ख़र्शीद तल

दुनिया की आदत है इसमें हैरत क्य
काँच के घर पर पत्थर मारा जाता है - आलम ख़ुर्शी

है सद्र की इक एक गज़ल जाने फ़साह
लगता है के इस शख़्स ने क़ुरआन पढ़ा है - इदरीस सद्

देखना तेरे इक इशारे प
तोड़ दूँगा मैं रिश्तेनातों को - मासूम नज़

ये सर बलन्दी तेरे आशिक़ों की यूँ ही नही
जबीं पे आज भी मैं ख़ाकेदर को देखता हूँ - शकील ग्वालियर

अपने दामन में सितारों को पिरोने वाल
रोना कुछ काम भी आया तेरे रोने वाले - कृष्ण कुमार तूर

हमको जंगल में किसी का डर नही
आ बसे जब से दरिन्दे शहर में- सादि

देख किस हाल में अपने को नया करता हू
मैं किसी बीज सा मिट्टी में दबा करता हूँ - सुल्तान अहम

पता सभी को है इस बार फिर से कुछ अन्ध
हम आँख वालों को सपने हसीन बेच गए - नूर मोहम्मद नू

वो पेड़ जिसकी छाँव में ठहरा दिया हमे
शाखों पे उनकी एक भी पत्ता हरा नहीं - अनवारे इसला

सियासीवार भी तलवार से कुछ कम नहीं होत
कभी कश्मीर जाता है, कभी बंगाल कटता है - मुनव्वर राना

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