हमारे आगे तेरा जब किसी ने नाम लिया दिल-ए-सितम-ज़दा को हमने थाम थाम लिया
हम समझते हैं आज़माने को उज़्र कुछ चाहिए सताने को
राह-ए-तलब से दिल को न रोको, जाए अगर तो जाने दो गिर के संभलना बेहतर होगा, इक ठोकर खा जाने दो
दोनों ही बेमिसाल हैं दोनों ही लाजवाब सूरत रसूल की हो के *सीरत रसूल की------चरित्र
आलम से बेखबर भी हूँ, आलम में भी हूँ मैं साक़ी ने इस मक़ाम को आसाँ बना दिया
कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है जहाँ को अपनी तबाही का इंतिज़ार सा है
हमें तो शामे-ग़म में काटनी है ज़िन्दगी अपनी जहाँ वो हों वहीं ऎ चाँद ले जा चाँदनी अपनी
दिल के मकाँ में, आँख के आंगन में, कुछ न था जब ग़म न था, हयात के दामन में, कुछ न था
असर उसको ज़रा नहीं होता==रंज राहत फ़िज़ा नहीं होता ज़िक्र-ए-अग़यार से हुआ मालूम==हर्फ़े नासेह बुरा नहीं ह

मीर की ग़ज़लें

शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
नग़मा संजी है तेरी बुलबुल-ए-खुश लेह्जा अबस कान फूलों के हैं बेकार समाअत कैसी
आपकी याद आती रही रात भर 'चश्मेनम' मुस्कुराती रही रात भर
नये शीशा, न ये साग़र, न ये पैमाना बने जान-ए-मैखाना तेरी नर्गिस-ए-मस्ताना बने

ग़ज़ल : फ़िराक़ गोरखपुरी

शनिवार, 9 अगस्त 2008
रात भी नींद भी कहानी भी हाय, क्या चीज़ है जवानी भी

मीर की गज़लें

शनिवार, 9 अगस्त 2008
मुँह तका ही करे है जिस तिस का हैरती है ये आईना किस का

शाद अज़ीमाबादी

शनिवार, 9 अगस्त 2008
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ , खिलौने दे के बहलाया गया हूँ