पेशकश : अज़ीज़ अंसारी
1. इक बेहर-ए-बेकराँ था अभी कल की बात है
मैं भी रवाँ-दवाँ था अभी कल की बात है
इक छत की आरज़ू में फिरा हूँ मैं दर-बदर
जन्नत मेरा मकाँ था अभी कल की बात है
रिश्ते हवा से बाँधे तो रोशन हुए चिराग़
वरना धुआँ-धुआँ था अभी कल की बात है
मिट्टी में मिल गई मेरी मिट्टी तो क्या हुआ
मैं था और आसमाँ था अभी कल की बात है
जब मेरे मुँह लगे हैं तो सीखी है गुफ़्तगू
हर लफ़्ज़ बेज़ुबाँ था अभी कल की बात है
2. नुमाइश कर न ज़ख़्मों की न कर इज़हार तू ग़म का
नमक से काम लेता हि ज़माना आज मरहम का
तुम्हें सोने नहीं देंगी हर इक तेह में दबी यादें
निकालोगे अगर संदूक़ से रूमाल रेशम का
तलातुम, ज़लज़ले, आँधी, इताब-ए-रब के मज़हर हैं
ये बादल कब बरस जाएँ भरोसा क्या है मौसम का
चुभन की लज़्ज़तें मुझसे कोई पूछे तो बतलाऊँ
जो नोक-ए-ख़ार पर ठहरा है वो क़तरा है शबनम का
थी बरकत एड़ियों की भी, करामत मामता की भी
निकल आता है क्या चश्मा यूँ ही सेहरा में ज़मज़म का
ज़माना लाख ओढ़े हक़ परस्ती की रिदा लेकिन
सलीब-ओ-दार है अंजाम आख़िर इब्न-ए-मरयम का
नसीर अब अस्र-ए-हाज़िर की ग़ज़ल को आईना कहिए
नज़र आने लगा है इसमें चेहरा सारे आलम का