Friend ship day: बदलते दौर में जहां रिश्तों में बदलाव हुआ है वहीं मित्रता का रिश्ता भी थोड़ा बहुत बदल गया है, लेकिन फिर भी मित्रता का रिश्ता सभी रिश्तों में सबसे अच्छा माना गया है। स्कूल से लेकर ऑफिस तक हमारे कई दोस्त रहे होंगे। उनमें से कुछ तो वक्त के साथ छुट गए और कुछ आज भी पक्के दोस्त बने हुए हैं जो समय समय पर मिल लेते हैं। आओ जानते हैं फ्रेंडशिप डे पर दोस्त के बारे में कुछ खास।
स्कूल का दोस्त (School Friendship): यदि आप स्कूल में ही अभी पढ़ रहे हैं तो आपके लिए उनमें से कुछ तो आपके पक्के दोस्त होंगे, जिनके साथ रहने, घूमने और बातचीत करने का मजा ही कुछ और है। यदि आप स्कूल छोड़कर कॉलेज में हैं या किसी ऑफिस में काम कर रहे हैं तो निश्चित ही आपको अपने स्कूल के दोस्तों की अकसर याद आती होगी, क्योंकि वे सभी निच्छल और निष्कपट होते थे या हैं। उस दौर में बगैर सोचे-समझे की गई दोस्ती में दोस्तों के साथ रहने और खेलने का मजा होता था। उनमें अंतरंगता होती थी। एक-दूसरे का खयाल रखते थे। समाज, जाति या धर्म का कोई भान नहीं था। हो सकता है कि स्कूल के कई दोस्तों में से कुछ दोस्त आज भी आपके दोस्त हो। यदि नहीं तो ढूंढें अपने स्कूल के दोस्तों को और उनसे फिर से दोस्ती कायम करें।
कॉलेज का दोस्त (Collage Friendship) : व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है उसमें देश, धर्म, समाज और संसार की चालाकियां समाने लगती हैं। इसीलिए कॉलेज तक आते-आते व्यक्ति तथाकथित रूप से समझदार हो जाता है। अब दोस्त भी बदल गए हैं और दोस्ती के मायने भी। कॉलेज में सच में ही दोस्ती तो सोच-समझकर ही करना चाहिए क्योंकि पता नहीं कौन सा दोस्त किस संगत में और किस गलत रास्ते पर चल रहा हो। यह उम्र सतर्क रहकर पढ़ाई पर ही फोकस करने ही होती है। कॉलेजी की दोस्ती में स्वार्थ भी हो सकता है और मजबूरी भी। ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति आपको स्वभाव से अच्छा लगे और वह स्वाभाविक ही आपका दोस्त बन जाए लेकिन फिर भी आप उसके प्रति आशंकित रहेंगे। वक्त बदल गया है तो लोग और दोस्ती भी बदल गई है। इसलिए 'पानी पिओ छानकर और दोस्त बनाओ जानकर' वर्ना आपकी जान पर बन सकती है या करियर बर्बाद हो सकता है।
वर्कप्लेस दोस्त (Workplace Friends) : जहां आप नौकरी या व्यापार करते हैं, ये वहां पर बने दोस्त होते हैं। ये आपके कलीग या सहकर्मी होते हैं। यह सबसे अच्छा दोस्त साबित हो सकते हैं क्योंकि आप 24 घंटे में से कम से कम 7 घंटे प्रतिदिन इनके साथ रहते हैं। यह आपकी जीवन के सबसे ज्यादा मददगार दोस्त होते हैं। हो सकता है कि एक बार आपका स्कूल, कॉलेज या मोहल्ले का दोस्त आपका साथ न दें लेकिन वर्कप्लेस का दोस्त आपका साथ जरूर देगा।
दोस्त का दोस्त (Friend of friend) : हमारी दोस्ती भी अकसर दोस्तों के माध्यम से ही होती। इसीलिए कई दफे यह होता है कि दोस्त का दोस्त हमारा पक्का दोस्त बन जाता है और पहले वाला दोस्त पीछे छूट जाता है। नहीं छूटता है तो वह दोस्त सोचता रहता है कि आजकल यह मुझे छोड़कर मेरे दोस्त के साथ अधिक रहता है। उसे लगता है कि मैं इनका दोस्त नहीं बल्कि इनकी दोस्ती कराने वाला एक माध्यम भर हूं लेकिन ध्यान रहे यदि आप उसकी उपेक्षा करते हैं तो आप कभी भी किसी के भी समक्ष अच्छे दोस्त साबित नहीं हो सकते क्योंकि इससे तो यह सिद्ध होता है कि कल को यदि आपको कोई और दोस्त मिल जाएगा तो फिर आप दोस्त के दोस्त को भी छोड़ देंगे।
प्रेमिका और प्रेमी (Lover Friendship): प्रेमी-प्रेमिका में दोस्ती की अपेक्षा तथाकथित प्रेम होता है। एक ऐसा प्रेम जो कभी भी किसी भी बात पर धराशायी हो सकता है, क्योंकि दोनों एक दूसरे से इतनी अपेक्षाएं जोड़ लेते हैं कि फिर जब उन अपेक्षाओं में से एक भी पूरी नहीं होती तो प्यार में दरारें पड़ना शुरू हो जाती हैं। दोस्ती स्वतंत्रता की पक्षधर है। यदि प्यार में दोस्ती का तड़का नहीं है तो प्यार पूरी तरह से बे-स्वाद ही रहेगा।
पति और पत्नी (Husband Wife Friendship) : दुनिया के कितने पति-पत्नी होंगे जो एक-दूसरे को दोस्त समझते होंगे, सुख-दुःख का साथी समझते होंगे? इसका आंकड़ा जुटाना मुश्किल है। यदि दोनों एक दूसरे की भावना को समझते हैं और अपनी बातें शेयर करते हैं तो समझा जा सकता है कि दोनों के बीच दोस्ती भी है। वर्ना तो पत्नियां तो सिर्फ घर और बच्चों को संभालने में ही लगी रहती हैं। कभी-कभार उसे घुमा-फिरा लाओ, साड़ी वगैरह दिला दो, बस हो गया फर्ज पूरा। पति कभी मुश्किल में होता है तो कई दफे तो पत्नियों को पता ही नहीं चलता और चलता भी है तो उसका साथ देने के बजाय उसे प्रवचन देने लगती हैं। या फिर थोड़ी-सी सलाह दे दो, अच्छा भोजना करा दो बस हो गया पूरा फर्ज। अंतरंगता और दोस्ती के क्या मायने होते हैं यह तो बहुत कम ही पति-पत्नी समझ पाते होंगे। हालांकि कई पति पत्नी अच्छे दोस्त भी होते हैं।
लड़का लड़की दोस्त (Boy girl friend): यदि दो लोगों के बीच समझदारी है तो लड़का और लड़की भी अच्छे मित्र बन सकते हैं। उनके बीच सिवाय दोस्ती के और कुछ भी नहीं होता है। हालांकि कई लोग इस दोस्ती को प्यार में बदल देते हैं। यह भी अच्छा है। इसमें भी कोई बुराई नहीं। प्यार में भी दोस्ती हो सकती है। ऐसा अक्सर देखा गया है कि लड़के और लड़की की दोस्ती को शंका पूर्वक देखा जाता है।
दुश्मन दोस्त (Friendship Day) : 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे।' ज्यादातर दुश्मनी दोस्तों से ही होती है, जो कि दोस्ती के विरुद्ध है। दरअसल दोस्त यदि सचमुच ही दोस्त है तो फिर दुश्मनी का सवाल ही नहीं उठता। दुश्मनी के कई कारण हो सकते हैं। चलताऊ कारणों में प्रतिस्पर्धा के कारण उपजी ईर्ष्या, दो दोस्तों के बीच एक लड़की और अहंकारपूर्ण बातें।
दोस्ती में लड़ाई का मजा (fun in friendship): यदि दो या चार दोस्त आपस में कभी सामान्य बातों या सामान्य तौर पर लड़ते-झगड़ते नहीं हैं तो दोस्ती में कभी प्रगाढ़ता नहीं आ पाएगी। नोकझोंक या सामान्य लड़ाई-झगड़े से दो दोस्त आपस में और अधिक जुड़ जाते हैं। इसलिए लड़ाई-झगड़ा करें लेकिन ऐसे शब्दों और वाक्यों का प्रयोग न करें जिससे आपके दोस्त का दिल दुखता हो या उसका इगो हर्ट होता हो।
अंतत: दोस्ती का दर्जा सभी रिश्तों से ऊपर माना गया है, तब दोस्ती का महत्व समझा जाना चाहिए। दोस्ती को ताजा बनाए रखने के लिए कुछ दूरियां बढ़ाकर पुन: नजदीकियां बढ़ाएं। वर्ष में एक दफे जरूर लम्बे टूर पर घूमने जाएं। रोज एक-दूसरे का हालचाल जरूर पूछें। जन्मदिन पर दोस्तों को छोटा-सा गिफ्ट देना न भूलें। आप अपने दोस्त की परवाह करेंगे तो दोस्त आपकी परवाह जरूर करेगा।