निदा फ़ाज़ली की ग़ज़लें

धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो

सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाई बनाकर देखो

Aziz AnsariWD
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजाकर देखो

वो सितारा है चमकने दो यूँही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

फ़ासिला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
चाँद जब चमके ज़रा हाथ बढ़ा कर देखो

2. दुनिया जिसे कहते हैं बच्चे का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

अच्छा सा कोई मौसम तन्हा सा कोई आलम
हर वक़्त का रोना तो बकार का रोना है

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है

ये वक़्त जो तेरा है, ये वक़्त जो मेरा है
हर गाम पे पहरा है फिर भी इसे खोना है

ग़म हों कि खुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है, हँसना है न रोना है

आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आँगन को
आकाश की चादर है, धरती का बिछौना है

3. ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

उसी के चलने-फिरने, हंसने-रोने की हैं तस्वीरें
घटा क्या, चाँद क्या, संगीत क्या, बाद-ए-बहारी क्या

किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या

हमारा मीर जी से मुत्तफ़िक़ होना है नामुमकिन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का-भारी क्या