ईरानी यूरेनियम बना पहेली, डोनाल्ड ट्रंप के दावे में कितना है दम

Iran Uranium Puzzle: परमाणु बम बनाने के ईरानी प्रयासों को ध्वस्त करने के लिए इसराइल ने 13 जून की सुबह साढ़े तीन बजे इसराइल पर जो हमला शुरू किया, वह अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के हस्तक्षेप से 24 जून को थम तो गया है, पर अब प्रश्न यह है कि इसराइल की मंशा क्या पूरी हुई? युद्ध रुकवाने को लेकर आत्ममुग्ध ट्रम्प की आत्मप्रशंसा में कितना दम है?
 
युद्ध को कथित तौर पर जल्द ही रुकवाने के लिए, राष्ट्रपति ट्रम्प के आदेश पर अमेरिकी वायुसेना के राडार को चकमा देने वाले सबसे भारी-भरकम B2 विमानों ने, शनिवार 21 और रविवार 22 जून की रात, नतान्स और फोर्दो पर 13 टन से भी अधिक भारी, बंकर-विध्वंसक बम गिराए और इस्फहान के परमाणु संयंत्र पर क्रूज़ मिसाइलों से हमला किया।
 
बहुत ही भारी बमों का उपयोग : GBU-57 के नाम वाले 13 टन से भी अधिक भारी बम, पहाड़ी चट्टानों और इस्पत-प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट वाली संरचनाओं को 60 मीटर की गहराई तक भेद सकने की क्षमता रखते हैं। इस किस्म के कुल 14 बम गिराए गए। माना जाता है कि नतान्स के यूरेनियम संवर्धन संयंत्र का कुछ हिस्सा ज़मीन के बहुत नीचे है और फोर्दो तो पूरी तरह एक विशाल पहाड़ के भीतर बना है, इसीलिए अमेरिका को पहली बार इन बहुत ही भारी बमों का उपयोग करना पड़ा। 
 
किंतु, लगता है कि यह सारी कसरत उतनी कारगर नहीं रही, जितना दावा किया गया। स्वयं अमेरिकी मीडिया कहने लगा है कि ईरान का परमाणु बम कार्यक्रम इस अभियान से केवल कुछ महीनों के लिए ही पिछड़ जाएगा, न कि लंबे समय के लिए थम जाएगा। अमेरिका की ही सैन्य गुप्तचर सेवा DIA के आकलन के आधार पर दैनिक 'न्यूयॉर्क टाइम्स' और टेलीविज़न चैनल CNN का कहना है कि ईरान पर हुई बमबारियों से उसके भूगर्भीय संयंत्र नष्ट नहीं हुए हैं। 
 
ट्रम्प के झूठे दावे? राष्ट्रपति भवन की प्रवक्ता कैरोलीन लीविट ने इस 'अत्यंत गोपनीय' आकलन के मीडिया द्वारा प्रकाशन की कड़ी आलोचना की है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी एक टिप्पणी में उसे गलत बताया है। इस टिप्पणी को इस बात की पुष्टि माना जा रहा है कि दाल में कुछ न कुछ तो काला है। ट्रम्प ने भी अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर तुरंत लिखा, 'ईरान के परमाणु संयंत्र पूर्णतः ध्वस्त कर दिये गए हैं।' वे भला कैसे मान सकते हैं कि उनका कोई निर्णय गलत भी हो सकता है।
 
संवर्धित यूरेनियम छिपा दिया : सैन्य मामलों की गुप्तचर सेवा DIA ने अपने आकलन में बताया है कि पहाड़ के भीतर बने फोर्दो वाले संयंत्र के केवल प्रवेश द्वार क्षतिग्रस्त हुए हैं, इमारतें वगैरह नहीं। अपनी रिपोर्ट में इस सैन्य गुप्तचर सेवा का कहना है कि ईरान ने अपने संवर्धित यूरेनियम को पहले ही कहीं और छिपा दिया। CNN का मानना है कि ईरान का परमाणु बम कार्यक्रम 'बहुत हुआ, तो कुछ महीनों के लिए ही पिछड़ जाएगा।' ये कुछ महीने 6 महीनों से भी कम होंगे। अभी तो केवल पहली गोपनीय जानकारी सामने आई है, बाद में और भी पोलें खुल सकती हैं।
 
इस विवाद से पहले अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) का अनुमान था कि एक पहाड़ के अंदर छिपा होने पर भी यूरेनियम के संवर्धन की ईरानी सुविधा को काफी नुकसान पहुंचा है। एजेंसी का समझना था कि अमेरिकी वायुसेना ने अपने B-2 स्टील्थ बमवर्षकों को अपने पास के सबसे शक्तिशाली बंकर-विध्वंसक बमों- GBU-57 से अनायास ही लैस नहीं किया होगा। 
भूमिगत बंकर-विध्वंसक बम : इन बमों का संभवतः पहली बार इस्तेमाल हुआ है। ये बम 60 मीटर की गहराई तक धंसकर विस्फोट करने के सक्षम हैं। माना जाता है कि ईरान के यूरेनियम संवर्धन सेंट्रीफ्यूज एक पहाड़ के भीतर 90 मीटर की गहराई पर स्थित हैं। हालांकि, इसकी कोई स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है। IAEA के महानिदेशक, इटली के राफेल ग्रॉसी अपने निरीक्षकों के साथ लगातार संपर्क में रहे। उनमें से कुछ अभी भी ईरान में हैं। उनका सटीक स्थान और उनसे प्राप्त जानकारी फिलहाल अज्ञात है।
 
जो कुछ ज्ञात है, उसके अनुसार अमेरिकी बमों की विस्फोटक शक्ति यूरेनियम सेंट्रीफ्यूजों को भारी नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए, क्योंकि ये सेंट्रीफ्यूज हर प्रकार के कंपनों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। किसी पहाड़ में 90 मीटर की गहराई पर भी, बमबारी होने से कंपन फैलना संभव माना जाता है। इसलिए यह भी सोचा जा रहा था कि फोर्दो में GBU-57 जैसे शक्तिशाली बम के विस्फोट से सभी चीजें काफी हद तक नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगी। हालांकि ऐसा होगा ही, यह पूरी तरह से निश्चित भी नहीं था। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी IAEA के महानिदेशक ग्रॉसी का भी कहना था कि कोई भी – यहां तक कि IAEA भी –  फ़ोर्दो वाली ईरानी परमाणु सुविधा को हुए नुकसान का पूरी तरह से सही आकलन करने की स्थिति में नहीं है।
 
ईरान ने संवर्धित यूरेनियम छिपाया : ग्रॉसी ने 13 जून को IAEA बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की एक आपातकालीन बैठक बुलाई और उसमें ईरानी विदेश मंत्री द्वारा भेजे गए एक पत्र की ओर सबका ध्यान खींचा। यही वह दिन था, जब ईरानी परमाणु सुविधाओं पर इसराइली हवाई हमले शुरू हुए थे। ईरान के विदेश मंत्री ने पत्र में लिखा था कि वे 'परमाणु उपकरणों और सामग्रियों की सुरक्षा के लिए विशेष उपाय करेंगे।' समझने वालों के लिए यह एक इशारा था कि ईरान इतना मूर्ख नहीं है कि अपने संवर्धित यूरेनियम और प्रमुख उपकरणों को समय रहते वह कहीं और नहीं छिपाएगा।
 
ग्रॉसी ने भी यह नहीं बताया कि 'विशेष उपाय' का यह भी अर्थ हो सकता है कि अमेरिकी हमलों से बचाने के लिए अब तक संवर्धित यूरेनियम को ईरान किसी दूसरी जगह पर छिपा सकता है या शायद पहले ही छिपा चुका है। इसमें बम के लिए पहले से ही 60 प्रतिशत तक संवर्धित 400 किलोग्राम तक यूरेनियम शामिल हो सकता है। इस यूरेनियम को बाद में 90 प्रतिशत तक संवर्धित किया जा सकता है। तब ईरान अपेक्षाकृत शीघ्र ही बम बनाने का प्रयास भी कर सकता है।
 
ईरान में नए निरीक्षण की मांग : IAEA के महानिदेशक अब फिर से मांग कर रहे हैं कि ईरान नए निरीक्षण की अनुमति दे। IAEA कुछ निरीक्षक ईरान में ही हैं। ईरान का 60 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम भंडार इस समय किस जगह है, यह भी जानने की आवश्यकता है। IAEA का मुख्यालय जर्मनी के पड़ोसी ऑस्ट्रिया की राजधानी वियेना में है। वहां IAEA के विशेष सत्र के दौरान ईरानी प्रतिनिधि की प्रतिक्रिया से ऐसा लगा नहीं कि ईरान जल्द ही IAEA के निरीक्षकों के लिए अपने दरवाज़े खोलेगा। उसने तो इसराइल और अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु संयंत्रों वाली सुविधाओं पर हमलों की आलोचना करते हुए इसे 'अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधि' के लक्ष्यों के लिए एक "अपूरणीय झटका" बताया है। अफ़वाहें हैं कि ईरान इस संधि से बाहर निकलने का इरादा रखता है। 
 
वैश्विक परमाणु सुरक्षा के राजनय और सर्वोच्च संरक्षक राफेल ग्रॉसी इस गंभीर संकट के समय कूटनीति को तत्काल आगे बढ़ाने की पैरवी करते हैं। वे खुद को मध्यस्थ के रूप में भी पेश करते हैं, यहां तक कि तुरंत ईरान जाने के लिए भी तैयार हैं: कहते हैं, 'कूटनीति के लिए अभी भी एक रास्ता है। हमें इसे आगे बढ़ाना चाहिए, अन्यथा हिंसा और विनाश अकल्पनीय अनुपात तक पहुंच सकता है।'
 
शब्द शक्ति पर भरोसा : IAEA के महानिदेशक के पास कोई राजनीतिक शक्ति नहीं है। वे केवल अपने शब्दों और पद की शक्ति पर भरोसा कर सकते हैं, 'राजनीतिक साहस जुटाने' और 'किनारे से पीछे हटने' का आग्रह करते हैं। कहते हैं कि राजनीतिक साहस और अपने दुराग्रहों से पीछे हटना इससे पहले इतना महत्वपूर्ण कभी नहीं रहा।
 
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी IAEA के दुनिया भर में 180 सदस्य देश हैं। उत्तरी कोरिया ने इससे बाहर निकलने का विकल्प चुना है, अन्यथा लगभग सभी देश उसकी उपयोगिता के हामी हैं –  यहां तक कि वे देश भी, जो एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं। ग्रॉसी ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय IAEA समुदाय ने एक अन्य सैन्य संघर्ष में 'परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसे बनाए रखने' में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने यह नहीं बताया कि वह कौन-सा संघर्ष है। लेकिन, सभी जानते हैं कि उनका इशारा यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रामक युद्ध की तरफ है। ये दोनों देश IAEA के सदस्य हैं। ठीक वैसे ही, जैसे कि ईरान, इसराइल और अमेरिका।
 
कहा जा सकता है कि इसराइल और ईरान एक-दूसरे पर मिसाइलें चलाने और बमबारी करने से डेढ़ ही सप्ताह में इसलिए थक गए, क्योंकि इस थोड़े ही समय में दोनों देशों में जान-माल की जो क्षति और विध्वंस लीला मची, वह उनकी पूर्वकल्पना से कहीं अधिक भयावह निकली। उन्हें उनके दुस्साहस ने रोक दिया।

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