यह बारात अन्य पारंपरिक विवाह से मेल खाती है। बस अंतर यह है कि दूल्हा काठ का हथौड़ा होता है। जिस प्रकार माता अपने बेटे की शादी में नजर उतारती है, ठीक वैसे ही हथौड़े का संस्कार किया जाता है। बारात में चवन्नीकम, लेहड़ीबूची, छुरियल, सलोथर, खोचड़, जड़दार, मुर्रेदार, बैठकबाज, खुर्राट, लंतरानीबाज, लप्पूझन्ना, नकबहेल, नौरंगा, अंतरबाज, धारू-धप जैसे व्यंग्यपरक रूपक शामिल रहते हैं। इस विवाह में हास-परिहास और मस्ती कूट-कूटकर भरी होती है।