उस रिश्ते को क्या नाम दोगे जो मोहब्बत की सरहदों में शामिल नहीं तुझे दोस्त कहूँ तो कैसे मेरी दोस्ती के दरिया में साहिल नहीं तुझे भाई कहूँ तो लगता है भावनाओं को टटोलने से कुछ हासिल नहीं
काश कोई रिश्ता ऐसा हो जो लहू के रिश्ते से हो पाक दोस्ती की सीमाओं से हो आजाद आग के दरिया से परे खुद पर रखता हो विश्वास
जो खुद अपरिभाषित रहकर हमें सिखा जाएँ कुछ नई परिभाषाएँ, निराश हो रही जिन्दगी को दे जाएँ आशाएँ, जब मैं कहूँ ‘तुम’ तो तुम्हारा सर्वस्व छा जाएँ
मैं अपने मैं संकुचित ना रह जाऊँ कुछ अनकही भावनाओं को छू पाऊँ मेरे दोस्तों से तुम्हें शिकायत ना हो तुम्हारे यारों से ना मुझको हो गिला हर उस एक से कुछ बाँटा ही है जो भटके हुए समय में मिला
मगर इस बार वक्त भटका हुआ नहीं है अपनी ही भावनाओं में उलझा हुआ नहीं है बस तलाश है तो इक नाम की फिक्र नहीं है मुझको अंजाम की
हाथ बढ़ाने से रिश्ते नहीं बढ़ते बात बढ़ाने से काफिये नहीं मिलते आओ हम मिलकर समय को बढ़ाएँ रिश्तों को मानवीय सरहदों से आजाद कर जाएँ