तेरा-मेरा वो मधुर मिलन रात का सुबह से मिलन साये का शरीर से मिलन धरती का सूरज से मिलन
होता है क्षणिक किंतु आनंद उस मिलन का है अपार अधरों से जब छलकता है प्यार तो पतझड़ में भी खिलती है कोंपले
खुशी में भी छलकती है आँखें जीवन में छाता है उल्लास अपार वो तेरा-मेरा प्यार ...
शरमा के भीतर ही भीतर करती हूँ जब तेरा आलिंगन तब लगता है जिंदगी है कितनी खास भूल जाती हूँ चिंता और डर जब थाम लेता है तू हाथ तेरे संग हर दिन सुहाना और रंगी है हर रात।
मिलन की ये बेला बीत न जाए कहीं मन का ये मयूर हो न जाए उदास कहीं इस मिलन को यादगार बना दो तुम कब आओगे ये बता दो।