पीले रंगों का पर्व वसंत पंचमी

वसंत पंचमी के पर्व पर वैसे भी चटख पीला रंग उत्साह और विवेक का प्रतीक माना जाता है।

इसके साथ सफेद रंग से जुड़ी शांति भी शामिल हो जाती है।

इस दिन खास तौर पर कई घरों में रंगोली सजाई जाती है।

कुछ लोगों के यहां केसर वाले पीले रंग के मीठे चावल खास इसी दिन बनाएं जाते है।

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कई परिवारों में आज भी वसंत पंचमी के दिन एक-दूसरे के घरों में मीठे चावल और केले भेंट किए जाते हैं। कई परिवारों द्वारा मंदिरों में हलवा और मिठाई दान करने की परंपरा है।

वसंत ऋतु के साथ होली के आगमन की दस्तक और सरस्वती पूजा का यह पर्व पुराने समय से ही युवाओं के लिए उत्साह वाला रहा है।


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ग्रामीण इलाकों में अपने खेतों में गेहूं, मटर, चना और दूसरी तरह की लहलहाती हरी-भरी फसलों को देखकर किसानों के मन प्रफुल्लित हो जाते हैं।

खेतों में दूर-दूर तक धानी-सरसों के फूलों की पीली चादर बरबस मन को मोह लेती है।

कोहरे और ओस से भीगी मिट्टी और रंगबिरंगे फूलों की मिली-जुली भीनी खुशबू अपनी ओर खींचती है।


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ऐसे समय में हर किसी का मन बिना मचलें नहीं रह सकता। ऐसा नजारा देखकर किसी भी कवि मन से श्रृंगार रस की एक से एक मनभावन कविताएं फूट पड़ना आम बात है।

इस दिन हजारों युवा विवाह के बंधन में बंध जाएंगे। पंचांग के अनुसार हिंदू धर्म में नवंबर के बाद शादियों पर प्रतिबंध लग जाता है। पर वसंत पंचमी के दिन से शादियां फिर से शुरू हो जाती हैं


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