भारतीय पंचांग अनुसार मौसम को छह भागों में बांटा गया है उनमें से एक है वसंत का मौसम। इस मौसम से प्रकृति में उत्सवी माहौल होने लगता है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति के सभी तत्व मानव, पशु और पक्षी उल्लास से भर जाते हैं। वसंत आते-आते शीत ऋतु लगभग समाप्त होने लगती है।
अति प्राचीन काल से हमारे यहां बसंतोत्सव मनाने की परंपरा रही है। कभी सरस्वती पूजा के रूप में तो कभी तो कभी आम्र तरू और माधवी लता के विवाह के रूप में। कभी अशोक दोहद के रूप में, तो कभी मदन देवता की पूजा के रूप में। कभी कामदेवायन- यात्रा के रूप में, तो कभी नवान्न खादनिका के रूप में। कभी अभ्यूब खादनिका तो कभी होली के हुड़दंग के रूप में। समूचा बसंत काल उत्सव का ही पर्याय नज़र आता है... प्रेम का। प्राचीन काल का यह वसंत उत्सव ही आज की आधुनिक संस्कृति में प्रेमी दिवस वेलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाने लगा है तो क्यों नहीं इसी दिन को प्रेम दिवस ही माकर मनाएं।
प्रेम के दो रूप होते हैं- एक वह जो वासना से भरा है और जिसे प्रेम कहना उचित नहीं और दूसरा वह जो समर्पण से भरा है जो सही मायने में सच्चा प्यार होता है। वसंत का प्यार। वृंदावन और बरसाना की गलियों में राधा और कृष्ण के प्रेम की चर्चा इस दिन से फिर से जीवित हो उठती हैं। यह दिवस आनंद और उल्लासपूर्वक नाचने-गाने का दिवस तो है ही साथ ही यदि आप अपने प्रेम का इजहार करना चाहें तो इससे अच्छा कोई दूसरा दिवस नहीं।
जरूरी नहीं कि प्रेमिका को ही कोई उपहार या फूलों का गुलदस्ता भेंट करें। अपने किसी मित्र, सहकर्मी, सहपाठी, पत्नी या गुरु के प्रति सम्मान और प्यार व्यक्त करने के लिए भी आप उपहार दे सकते हैं। यह भी जरूरी नहीं कि उपहार ही दें, आप चाहें तो प्रेम के दो शब्द भी बोल सकते हैं या सिर्फ इतना ही कह दें कि 'आज मौसम बहुत अच्छा' है।
जब फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाते हैं और हर तरफ तितलियां मंडराने लगती हैं, तब वसंत पंचमी का त्योहार आता है। वसंत ऋतु में मानव तो क्या, पशु-पक्षी तक उल्लास भरने लगते हैं। यूं तो माघ का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है, पर वसंत पंचमी का पर्व कुछ खास महत्व रखता है। यह भारतीय लोगों के लिए खास है। वेलेंटाइन डे की तरह यह प्रेम-इजहार का विशेष दिन है।