मकान की विभिन्न दिशाओं में ऊँचाई और न्यूनता का प्रभाव भूस्वामी पर होता है। इसका शुभ-अशुभ फल निम्न प्रकार से जानना चाहिए। मकान यदि पूर्व दिशा की ओर नीचा हो, तो गृह स्वामी तरक्की करता है। दक्षिण दिशा की ओर ऊँचा हो तो गृह स्वामी के घर लक्ष्मी आती है, पश्चिम दिशा की ओर झुका या नीचा हो, तो धन का नाश और यदि पश्चिमी और दक्षिणी भाग कुछ ऊँचा तथा पूर्वोत्तर भाग कुछ नीचा हो, तो निश्चित रूप से शुभ समाचार प्राप्त होता रहेगा।
कई पंडितों ने चारों दिशाओं में ऊँचाई समान रखने की बात कही है, पर वास्तु का मत भिन्न है। पूर्वोत्तर में ऊँचा तथा दुर्गन्धयुक्त मकान पुत्र का नाश करने वाला होता है। वास्तु के अनुसार आठों दिशाओं में मकान के ऊँचे अथवा नीचे होने के परिणाम इस प्रकार जानें-
पूरब- आयु, सुख, यश वृद्धि, संतान का ह्रास। पश्चिम- संतान-हानि, रोग, संतान-वृद्धि, यश, सुख। उत्तर- मंगल कारक, यश हानि, रोग, शोक में वृद्धि। दक्षिण- रोग-विपदा, धन आगमन, स्वास्थ्य, आर्थिक परेशानी में वृद्धि।
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आग्नेय दक्षिण-पश्चिम कोण नैऋत्य से ऊँचा रहे, या अपेक्षा से नीचा हो तो अशुभ, वायव्य ईशान शुभ फल वायव्य तथा कोण की अपेक्षा अधिक। ईशान कोण की अपेक्षा ऊँचा हो, तो धन लाभ। नीचा हो, तो अग्नि, शत्रुभय आदि विपदा पैदा होती है। नैऋत्य व्यसन, बुरे, धन-धान्य की वृद्धि, जटिल रोग, शोक। वायव्य ईशान की अपेक्षा ऊँचा नीचा हो तो विवाद, होने पर मुकदमों में रोग, कष्ट नैऋत्य व विजय, धन नैऋत्य आग्नेय से नीचा हो, आग्नेय की अपेक्षा तो शुभफल ऊँचा होने पर अशुभ।
ईशान सम्पत्ति लाभ ऊँचा हो तो गरीबी। ईशान कोण की शुद्धि वास्तु शास्त्र के अनुसार मकान में ईशान कोण का महत्व ज्यादा है। ईशान कोण नीचा नहीं रहने से उस भवन में निवास करने वाले प्राणी कभी भी सुखी नहीं रह सकते। घर में असंतोष रहेगा। विकास कार्य नहीं होंगे।
जब ईशान कोण इतना महत्वपूर्ण है, तो उसे हमेशा शुद्ध व साफ रखना चाहिए। ईशान कोण की शुद्धि पर ही पूरे मकान की शुद्धि टिकी है।