किसी भी भवन में गृहस्वामी का शयनकक्ष तथा कारखानों, कार्यालयों में दक्षिण-पश्चिम भाग में जो भी कक्ष हो, वहाँ की दीवारों व फर्नीचर आदि का रंग हल्का गुलाबी अथवा नींबू जैसा पीला हो तो श्रेयस्कर रहता है।
भवन के दक्षिण भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना उचित माना जाता है। इस रंग के प्रयोग से मन में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है। इसके ठीक विपरीत इस भाग में यदि हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है तो सुस्ती एवं आलस्य की वृद्धि होती है। भवन में पूरब की ओर बने हुए कक्ष में सफेद रंग का प्रयोग किया जाना अच्छा रहता है। सफेद रंग सादगी एवं शांति का प्रतीक होता है।
नीला रंग नीलाकाश की विशालता, त्याग तथा अनंतता का प्रतीक है, वहाँ रहने वाले के मन में संकुचित या ओछे भाव उत्पन्न नहीं होंगे। वास्तु के उत्तर-पूर्वी भाग को हरे एवं नीले रंग के मिश्रण से रंगना अच्छा रहता है, यह स्थान जल तत्व का माना जाता है। इसलिए इस स्थान पर चटख रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भवन में दक्षिण-पूर्व का भाग अग्नि तत्व का माना जाता है। इस स्थान की साज-सज्जा में पीले रंग का प्रयोग उचित होता है।