दिशा अनुसार करें रंगों का प्रयोग

- नेहा कश्यप
 
रंग जीवंतता के प्रतीक हैं। विभिन्न रंगों से प्रेम हमारी अलग-अलग मनोभावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। मानव जीवन पर उसके भवन की ऊर्जा का गहरा प्रभाव पड़ता है और इस ऊर्जा को संतुलित करने का विज्ञान है वास्तु शास्त्र।
 
किसी भी भवन में गृहस्वामी का शयनकक्ष तथा कारखानों, कार्यालयों में दक्षिण-पश्चिम भाग में जो भी कक्ष हो, वहाँ की दीवारों व फर्नीचर आदि का रंग हल्का गुलाबी अथवा नींबू जैसा पीला हो तो श्रेयस्कर रहता है।
 
गुलाबी रंग को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह आपसी सामंजस्य तथा सौहार्द में वृद्धि करता है। इस रंग के क्षेत्र में वास करने वाले जातकों की मनोभावनाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। इस भाग में गहरे लाल तथा गहरे हरे रंगों का प्रयोग करने से जातक की मनोवृत्तियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
 
इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के भवन में हल्के स्लेटी रंग का प्रयोग करना उचित रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह भाग घर की अविवाहित कन्याओं के रहने या अतिथियों के ठहरने हेतु उचित माना जाता है। किसी कार्यालय के उत्तर-पश्चिम भाग में भी स्लेटी रंग का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
 
भवन के दक्षिण भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना उचित माना जाता है। इस रंग के प्रयोग से मन में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है। इसके ठीक विपरीत इस भाग में यदि हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है तो सुस्ती एवं आलस्य की वृद्धि होती है। भवन में पूरब की ओर बने हुए कक्ष में सफेद रंग का प्रयोग किया जाना अच्छा रहता है। सफेद रंग सादगी एवं शांति का प्रतीक होता है।
 
इस स्थान पर चटख रंगों का प्रयोग करने से मन चंचल होगा। भवन में पश्चिम दिशा के कक्ष में नीले रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसा करने से वहाँ रहने वाले आज्ञाकारी और आदर देने वाले बने रहेंगे तथा उनके मन में अच्छी भावना बनी रहेगी।
 
नीला रंग नीलाकाश की विशालता, त्याग तथा अनंतता का प्रतीक है, वहाँ रहने वाले के मन में संकुचित या ओछे भाव उत्पन्न नहीं होंगे। वास्तु के उत्तर-पूर्वी भाग को हरे एवं नीले रंग के मिश्रण से रंगना अच्छा रहता है, यह स्थान जल तत्व का माना जाता है। इसलिए इस स्थान पर चटख रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भवन में दक्षिण-पूर्व का भाग अग्नि तत्व का माना जाता है। इस स्थान की साज-सज्जा में पीले रंग का प्रयोग उचित होता है।

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